श्रीराम शर्मा
आपको गरीबीने घेर रखा है, पैसेका अभाव रहता है, आपकी आवश्यकताएं धनाभावमें पूरी नहीं होतीं। आप दुखी रहते हैं, परन्तु हम पूछते हैं कि क्या दुखी रहनेसे आपकी दरिद्रता दूर हो जायगी। यदि आप समझते हैं कि हां हो जायगी तो आप भूल करते हैं। आप कम पढ़े हैं, विद्या पास नहीं है, काम बिगड़ जाते हैं, सफलता नहीं मिलती, विघ्न उपस्थित हो जाते हैं, वियोग सहना पड़ रहा है, कलह रहती है, ठगी और विश्वासघातका सामना करना पड़ता है, अत्याचार और उत्पीडऩके शिकार हैं या ऐसे ही किसी कारणवश आप खिन्न हो रहे हैं। क्या आप शोक-संतापमें डूबे रहकर इन कष्टोंको हटाना चाहते हैं। बीते कलकी अप्रिय घटनाओंपर आंसू बहाना, आनेवाले कलको ठीक वैसा ही बनाना है। भूतकालीन कठिनाइयोंके त्राससे इस समय भी संतप्त रहना, इसका अर्थ तो यह है कि भविष्यमें भी इन्हीं बातोंकी पुनरावृत्ति आप चाहते हैं इसलिए उठिये खिन्नता और उदासीनताको दूर भगा दीजिए। बीतेपर रोना, आनेवाले कलका नये ढंगसे निर्माण कीजिए। शोक, संताप, निराशा और उदासीनताका परित्याग करके प्रसन्नताको ग्रहण कीजिए। खड़े होइये और एक कदम आगे बढ़ाइये। प्रभुने आपको रोनेके लिए नहीं प्रसन्न रहनेके उद्देश्यसे यहां भेजा है। रुखी रोटी खाकर हंसिये और कल चुपड़ी रोटी खानेका प्रयत्न कीजिए। आजकी परिस्थितिपर संतुष्ट रहिये और कलके लिए नया आयोजन कीजिए। खिन्न मत होइये, क्योंकि हम आपको प्रसन्न रहनेका मंत्र बता रहे हैं। इसे ध्यानसे सुनिये। मंत्र हंसता हुआ भविष्य, हंसते हुए चेहरेका पुत्र है। जो प्रसन्न रहेगा उसे प्रसन्न रखनेवाली परिस्थितियां भी मिलेंगी। साधारण मनोरंजन कार्यों तथा व्यवहारोंमें इस रहस्यको आये दिन देखा जा सकता है कि जो काम दूसरोंको प्रसन्न करनेवाले होते हैं अथवा जिन कामोंसे हम दूसरोंको प्रसन्न कर पाते हैं वह ही काम हमें अधिकसे अधिक प्रसन्न किया करते हैं। एक खिलाड़ी गेंद खेलता है और विपक्षीपर एक गोल कर देता है तो उसे अपनी सफलतापर प्रसन्नता होती है, किंतु तभी जब उसके साथी भी प्रसन्न होते हैं। यदि किसी कारणसे उसकी यह सफलता दर्शकों अथवा साथियोंको प्रसन्न न कर पाये तो उसे स्वयं भी प्रसन्नता न होगी। एक शिल्पी भवन बनाता है। यद्यपि वह उसका नहीं होता तथापि वह इसलिए प्रसन्न होता है कि उसका यह काम दूसरोंको प्रसन्न कर सकता है। कोई कवि कोई रचना करता है, किंतु उसकी प्रसन्नतामें वास्तविकता तभी आती है जब दूसरे भी प्रसन्न होते हैं।