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बाबाके गाल सजा गुलाल


रंगभरी एकादशी पर गौरा के गौने में पहुंची काशी, खूब उड़े अबीर-गुलाल, धर्म की नगरी हुई होलियाना

आस्था, उमंग और उल्लास का ऐसा रंग जो हर रंग पर हावी हो जाय। उत्सव ही ऐसा कि जो रोम-रोम में उत्सवी संचार कर दे। वर्षभर इस अवसर की प्रतीक्षा और इस पर्व में शामिल होने की होड़ काशी के लोगों में होती है। रंगभरी एकादशी…। सात समंदर पार तक इसकी चमक-दमक और सोशल संसार में इसकी धमक फाल्गुन मास की शुरुआत से ही देखने-सुनने को मिलने लगती है। पर्व पर काशी विश्वनाथ गौरा का गौना लेकर जाते हैं और उनके साथ उनकी बारात के रूप में पूरी काशी शामिल होती है। इसी दिन बाबा के गाल पर गुुलाल अर्पित करके उनसे होली खेलने की अनुमति मांगी जाती है और पांच दिनी पर्व शुरू हो जाता है।

फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाये जाने वाला यह पर्व काशीवासियों के रग-रग में बसता है। बुधवार को टेढऩीम स्थित महंत आवास पर बाबा विश्वनाथ और माता गौरा की रजत चल प्रतिमा का पालकी दर्शन पूर्वाह्नï आरती के बाद शुरू हो गया। इससे पहले प्रतिमाओं का पंचामृत स्नान कराने के बाद उनको नवीन वस्त्र धारण कराने के बाद विविध आभूषण, माला-फूल से उन्हें सजाया गया। समस्त अनुष्ठïान वैदिक ब्राह्मïणों और महंत परिवार के सदस्यों की ओर से की गई। पूजन के उपरांत बाबा को दूल्हा स्वरूप में श्रृंगार किया गया और इसके बाद दर्शन-पूजन का सिलसिला निरंतर चलता रहा। सायंकाल निर्धारित समय पर बाबा की पालकी निकलने से पूर्व श्री काशी विश्वनाथ की सप्तर्षि आरती अपराह्नï ही कर दी गई। इसकी सूचना दिये जाने के बाद पालकी की शोभायात्रा महंत आवास से निकाली गई। इस दौरान बाबा का बखान नवोदित कलाकारों ने शिवांजलि से किया। गायन, वादन और नृत्य की प्रस्तुति से उन्हें शीष नवाया। टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास के भूतल पर बने कक्ष से बाबा की पालकी यात्रा बुधवार को अबीर-गुलाल की बौछार के बीच निकाली गई। सैकड़ों साल के इतिहास में पहली बार बाबा और मां  पार्वती की चल प्रतिमाएं टेढ़ीनीम स्थित महंत आसाव से निकाल कर साक्षी विनायक, ढुंढिराज विनायक और अन्नपूर्णा मंदिर होते हुए विश्वनाथ मंदिर तक गई। चल प्रतिमाओं का दर्शन करने के लिए काफी संख्या में काशीवासी और विशिष्टजन पहुंचे। पालकी उठने का समय हो जाने के बाद भी लोग दर्शन के लिए कक्ष में प्रवेश करने के लिए भीड़ में जूझते रहे। डमरुओं की गर्जना बीच राजसी ठाट में बाबा माता गौरा के साथ पालकी पर सवार हुए। माता गौरा की गोद में गणेश थे। महंत आवास के बाहर मुख्य गली से मंदिर के मुख्य द्वार के बीच पालकी पर मथुरा से मंगाये गये खास गुलाल की वर्षा होती रही। डमरू दल लगातार गर्जना करता रहा। शाम पांच बजकर नौ मिनट पर जैसे ही मंदिर से अर्चकों का दल महंत आवास की गली में पहुंचा समूचा वातावरण हर-हर महादेव के घोष से गुंजायमान हो उठा। कर्पूर से आरती के बाद महंत डाक्टर कुलपति तिवारी दोनों हाथों में जलती मोबत्तियां लेकर बाबा की पालकी उठाने का संकेत किया। बाबा की पालकी महंत परिवार के सदस्यों द्वारा कंधों पर उठाते ही चारों तरफ से अबीर और गुलाब के साथ गुलाब की पंखुडिय़ां उड़ाई जाने लगीं। शंखों का नाद एक साथ होने लगा। आगे-आगे डमरू दल और पीछे-पीछे बाबा की पालकी विश्वनाथ मंदिर की ओर बढ़ी। टेढ़ी नीम में नौ ग्रहेश्वर महादेव मंदिर से आगे बढ़ते ही 21 किलो गुलाब की पंखुडिय़ों की वर्षा कराई गई। महंत आवास से निकल कर साक्षी विनायक तक पहुंचते-पहुंचते ही सबके सफेद वस्त्र लाल हो गए थे। इससे पूर्व महंत आवास पर पारंपरिक शिवांजलि का सांकेतिक आयोजन किया गया। पार्वती संग सदा शिव खेल रहे होली, भूत, प्रेत बैताल करते ठिठोली…Ó सरीखे गीतों ने भक्तों को बांधे रखा। अमित त्रिवेदी, डाक्टर अमलेश शुक्ल अमन के गीतों ने उत्सवी संचार किया। जौनपुर के सौरभ शुक्ला, स्नेहा महर्षि, अनुराधा सिंह, विदुषी वर्मा ने मिल कर कार्यक्रम प्रस्तुत किया। संचालन कन्हैया दुबे केडी ने किया।