पटना

बिहारशरीफ: अस्पतालों की सफाई में हुए घोटाले की जांच आखिर क्यों है लंबित?


      • दो आउटसोर्सिंग एजेंसी ने इस मामले में की है लाखों का हेराफेरी
      • अगर जांच हुई तो भवन निर्माण के कनीय से लेकर कार्यपालक अभियंता भी होंगे कार्रवाई की जद में
      • डीएम ने पांच माह पूर्व गठित की कमेटी, बदल गये एक डीडीसी लेकिन नहीं हुआ अब तक जांच पूरा

बिहारशरीफ। जिले के अस्पतालों की सफाई व्यवस्था आउटसोर्सिंग के माध्यम से चलती रही है। पिछले दिनों आउटसोर्सिंग एजेंसी द्वारा गलत नापी का सहारा लेकर लाखों रुपये का सरकारी राजस्व का चूना लगाया गया था। हालांकि बाद में मामला प्रकाश में आने पर आउटसोर्सिंग एजेंसी के पेमेंट पर रोक लगाकर इसकी जांच के लिए जिलाधिकारी द्वारा कमेटी बना दी गयी थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि पांच माह से अधिक बीत गया, लेकिन अब तक जांच पूरा नहीं हुआ और कमेटी के एक चेयरमैन बदल भी गये, दूसरे चेयरमैन का भी कार्यकाल लगभग तीन महीना बीत गया। शुरुआत में जो कमेटी बनी थी उसमें जांच टीम के सदस्यों की संख्या चार थी। बाद में जांच टीम के सदस्यों की संख्या बढ़कर नौ हो गयी, बावजूद इसके जांच जस का तस पड़ा हुआ है। ना जाने इसके पीछे मंशा क्या रही होगी या फिर आउटसोर्सिंग एजेंसी का प्रभाव रहा होगा।

बिहारशरीफ सदर अस्पताल सहित जिले के विभिन्न अस्पतालों में आउटसोर्सिंग से साफ-सफाई का काम होता रहा है। इसी के तहत पिछले सत्र में मेसर्स हैंडीकैप्ड रिहैबिलिटेशन वेलफेयर सोसाइटी, नारायणपुर, भोजपुर (आरा) एवं मेसर्स आफताब इंफोकॉम प्राइवेट लिमिटेड, बेगुसराय द्वारा साफ-सफाई का काम किया गया था।

निविदा के आलोक में उक्त दोनों एजेंसी को काम मिला था, जिसके बाद कार्यपालक अभियंता भवन प्रमंडल नालंदा से स्वास्थ्य संस्थानों की मापी का अनुरोध किया गया था ताकि उसी मापी के अनुसार निर्धारित दर पर भुगतान हो सके। वर्ष 2018 के अगस्त महीना से जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा लगातार जांच का अनुरोध भवन प्रमंडल से लगातार किया जाता रहा। कई स्मार पत्र के बाद 11 दिसंबर 2019 को नालंदा भवन प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता द्वारा मापी उपलब्ध कराया गया।

कार्यरत एजेंसी का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार द्वारा निर्धारित प्रपत्र में निविदा प्रकाशन हेतु बाहरी एवं आंतरिक परिसर की मापी की आवश्यकता थी। इस आलोक में जिला पदाधिकारी सह अध्यक्ष द्वारा निर्देश दिया गया था कि कार्यपालक अभियंता नालंदा भवन प्रमंडल बिहारशरीफ की मापी कराया जाय, परंतु 15 फरवरी के पत्र के बावजूद 20 फरवरी 2021 तक मापी नहीं की गयी और कार्य करने में असहमति जतायी गयी। तब जाकर मापी की जिम्मेवारी कार्यपालक अभियंता स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन बिहारशरीफ को सौंपी गयी।

जब स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन की मापी आयी तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की नींद हीं उड़ गयी। जिस क्षेत्र की सफाई उक्त दोनों आउटसोर्सिंग एजेंसी द्वारा की जा रही थी और उक्त आलोक में जिस नापी पर भुगतान किया जा रहा था वही क्षेत्र की दोबारा नापी जब दूसरे विभाग ने की तो वह काफी कम था। बताते चले कि पहली नापी भवन प्रमंडल द्वारा हुई थी। जब दोनों की मापी में अंतर सामने आया तो आनन फानन में जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा आउटसोर्सिंग एजेंसी के भुगतान पर रोक लगाने का आग्रह जिलाधिकारी से की गयी और उन्हें वस्तु स्थिति से अवगत कराया गया। जिला पदाधिकारी ने तत्काल दोनों आउटसोर्सिंग एजेंसी का भुगतान बंद करते हुए जांच के लिए कमेटी बना दी।

डीएम द्वारा निर्गत आदेश में यह स्पष्ट कहा गया कि नालंदा भवन प्रमंडल बिहारशरीफ द्वारा जिले के विभिन्न स्वास्थ्य इकाईयों के आंतरिक परिसर का किये गये नापी प्रतिवेदन एवं स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन कार्य प्रमंडल बिहारशरीफ द्वारा आंतरिक परिसर का किये गये नापी प्रतिवेदन में काफी अंतर है। ऐसे स्थिति में आउटसोर्सिंग के विपत्रों का भुगतान करना उचित नहीं प्रतीत होता। इस आलोक में पूर्व में नालंदा भवन प्रमंडल बिहारशरीफ द्वारा आंतरिक परिसर में किये गये नापी प्रतिवेदन एवं स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन बिहारशरीफ द्वारा किये गये नापी प्रतिवेदन की जांच हेतु उप विकास आयुक्त नालंदा की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की जाती है। 10 जून 2021 को नालंदा डीएम का आदेश निकला, जिसमें जांच कमेटी के अध्यक्ष डीडीसी और सदस्य में सीनियन डिप्टी कलक्टर किशन कुमार, पथ प्रमंडल हिलसा के कार्यपालक अभियंता तथा एनएच-1 बिहारशरीफ के कार्यपालक अभियंता को सदस्य बनाया गया। लेकिन इस कमेटी द्वारा कोई भी जांच नहीं की गयी। समय के साथ-साथ उप विकास आयुक्त का भी स्थानांतरण हो गया।

हालांकि इसके पूर्व 01 जुलाई 2021 को तात्कालीन उप विकास आयुक्त ने एक प्रतिवेदन निकाला जिसमें जांच के लिए बैठक हुई और इसके बाद स्थलीय जांच हेतु फिर से जांच दल का गठन हुआ, जिसमें सीनियर डिप्टी कलक्टर किशन कुमार, पीडब्लूडी हिलसा के कार्यपालक अभियंता, एनएच-1 के कार्यपालक अभियंता के अलावे इस दल में पथ प्रमंडल के कनीय अभियंता धीरज कुमार, पथ प्रमंडल हिलसा के कनीय अभियंता चंद्रशेखर चौधरी, एनएच-1 के कनीय अभियंता अनिल कुमार, एलएईओ के कनीय अभियंता रवि कुमार, नालंदा भवन प्रमंडल के कनीय अभियंता विकास कुमार एवं चंदन कुमार को शामिल किया गया।

समय के साथ-साथ तत्कालीन उप विकास आयुक्त का स्थानांतरण हो गया। नये उप विकास आयुक्त के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने योगदान दी और तब यह संभावना व्यक्त की जाने लगी कि आउटसोर्सिंग एजेंसी द्वारा फर्जी नापी कर किये जा रहे घोटाले का अब वृहत जांच हो सकेगा। निश्चित तौर पर आउटसोर्सिंग एजेंसी के अलावे फर्जी मापी दिखाने वाले भवन प्रमंडल के कनीय अभियंता, सहायक अभियंता तथा कार्यपालक अभियंता भी कार्रवाई के जद में आते। लेकिन नये उप विकास आयुक्त के कार्यभार संभाले तीन महीना का समय बीतने को है, लेकिन जांच यथावत पेंडिंग है।

लाखों रुपये के गबन के इस मामले का जांच पूरा नहीं होने पर तरह-तरह की चर्चाएं है। आखिर अब तो समय ही बतायेगा कि इस मामले में जांच होती भी है या नहीं या फिर आउटसोर्सिंग एजेंसी द्वारा पूरे मामले की लीपापोती कर ली जाती है।