पटना

बिहारशरीफ: दुनिया भर में गिरते भू-जल स्तर पर नालंदा विश्वविद्यालय में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन


विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने जल संचय और जागरूकता को बताया भू-जल का भविष्य

बिहारशरीफ (आससे)। दुनिया भर में भूजल के गिरते स्तर पर नालंदा विश्वविद्यालय स्थित मिनी ऑडिटोरियम में देश-विदेश के पर्यावरणविदों की एक परिचर्चा सह कार्यशाला का आयोजन गुरुवार को आयोजित हुआ। स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायरनमेंट स्ट्डीज द्वारा आयोजित इस कार्यशाला के पहले दिन पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने अपने विचार और सुझाव रखे।

कार्यशाला के पहले दिन ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरणविद् और विशेषज्ञ डॉ. तमारा जैक्शन, डॉ. पीटर डिल्लोन और डॉ. बसंत महेश्वरी ने एक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी प्रणाली पर अपने विचार रखे। इन्होने दुनिया भर में गिरते भूजल स्तर के बारे में विस्तार से बताया साथ ही उन्होने ये भी बताया कि आने वाले दिनों में इसके क्या दुष्परिणम सामने आ सकते हैं। इसके साथ ही उन्होने इस समस्या पर अंकुश लगाने के उपायों के बारे में भी बताया। उन्होने बताया कि इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए जागरुकता की शुरुआत ग्रामीण स्तर से करनी होगी। उन्होने खास तौर से भारत में जल प्रबंधन पर किए गए शोध के बारे में बताया।

इस कार्यशाला में नई दिल्ली से इंडियन एसोसिएशन ऑफ हाइड्रोजियोलोजिस्ट के सचिव डॉ. दिपांकर साहा ने भी शिरकत की। उन्होने कार्यशाला में मौजूद स्थानीय किसानों को जल प्रबंधन के प्रति जागरुक किया। उन्होंने बताया कि भू-जल के अत्याधिक दोहन के कारण किस तरह से पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। डॉ. साहा ने किसानों को आगाह करते हुए कहा कि अगर रिचार्ज पिट की मदद से भू-जल का बेहतर प्रबंधन नहीं किया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में खेती के साथ-साथ पीने के लिए भी पानी नहीं बच पाएगा।

कार्यशाला में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा से आए विशेषज्ञ डॉ. रविश चन्द्रा ने भी सौर ऊर्जा की मदद से सिंचाई के बेहतर संसाधनों के बारे में बताया। उन्होने बताया कि अगर भू-जल को संरक्षित करना है तो किसानों को सिंचाई के लिए भू-जल की जगह आहर-पाइन, तालाब और नदी जैसे पारंपरिक संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए।

दो दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला के पहले दिन चेन्नई के पर्यावरणविद् प्रोफेसर एल-इलान्गो, इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीटड्ढूट की जल प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ. अदिती मुखर्जी, आत्मा के प्रोजेक्ट डायरेक्टर श्री संदीप राज और मेघ पाइन अभियान के श्री एकलव्य प्रसाद ने भी शिरकत की और भूजल प्रबंधन के बारे में अपने विचार रखे।

राजगीर के मेयार और नेकपुर गांव में एक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी  प्रणाली को विकसित करने वाले नालंदा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने भी कार्यशाला में इस प्रणाली के बारे में विस्तार से बताया। जिसमें प्रो. सरनाम सिंह, डॉ. सोमनाथ बंदोपाध्याय, डॉ. प्रभाकर शर्मा, डॉ. अभिराम शर्मा और डॉ. किशोर धावला ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को धरातल पर लाने की राह में उन्हे किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा। साथ ही उन्होने इस प्रणाली से मिलने वाले फायदे के बारे में भी विस्तार से बताया।

कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे नालंदा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुखबीर सिंह ने भी भूजल प्रबंधन के बारे में अपने विचार रखे। कार्यशाला में बड़ी संख्या में मेयार और नेकपुर गांव के ग्रामीण और किसान भी पहुंचे और विशेषज्ञों से मिले सुझाव पर अमल करने की प्रतिबद्धता दोहराई।

कार्यशाला के दूसरे दिन 26 फरवरी को जल प्रबंधन के विशेषज्ञ मेयार और नेकपुर गांव जाकर वहां विकसित किए गए एक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी प्रणाली का जायजा लेंगे और वहां के स्थानीय ग्रामीणों और किसानों से चर्चा करेंगे और इस प्रणाली से मिलने वाले फायदे के बारे में उन्हे विस्तार से बताएंगे, इसके अलावा विशेषज्ञ किसानों और ग्रामीणों से उनकी राय और समस्याओं पर भी चर्चा करेंगे।

नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुनैना सिंह ने अपने संदेश में स्थानीय समाज के प्रति नालंदा विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य ना सिर्फ ज्ञान का प्रसार करना है। बल्कि इसका उद्देश्य नई जानकारियों के माध्यम से स्थानीय समाज को विकसित और जीवनशैली को और बेहतर बनाना है। उन्होने उम्मीद जताई कि एएसआर यानि एक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी प्रणाली की मदद से स्थानीय भूजल स्तर में ना सिर्फ इजाफा होगा।

बल्कि किसानों को सिंचाई के बेहतर विकल्प भी मिलेंगे। डॉ. सिंह ने इस प्रणाली को विकसित करने के लिए विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को बधाई दी और इस प्रणाली को विकसित करने में मदद करने वाले एसीआईएआर यानि ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च का आभार जताया।