पटना

बिहार में हो रही है ठंडे पानी में पकने वाली मैजिक राइस की खेती


असमिया बोका चाऊल है मैजिक राइस, स्वादिष्ट और अत्यधिक पौष्टिक भी

फुलवारीशरीफ। क्या आपने कभी ऐसे चावल के बारे में सुना है, जो ठंडे पानी में पक जाता है। बिहार के फुलवारीशरीफ प्रखंड स्थित सिमरा गांव के किसान उज्ज्वल कुमार इस चावल की खेती कर रहे हैं। उज्ज्वल ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें किसानों के लिए काम करने वाली संस्था आवाज एक पहल के माध्यम से इस चावल के बारे में जानकारी हुई।

तत्पश्चात उन्होंने संस्था कि कार्यालय जाकर इसकी खेती की विस्तृत जानकारी ली और प्रायोगिक तौर पर 5 कट्ठे में इसकी खेती की शुरुआत की। फिलहाल खेतों में फसल लहलहा रही है और नवंबर तक इसकी कटाई होने की उम्मीद हैं। उज्ज्वल ने बताया कि बिहार के लिए यह नवीन प्रयोग है। उन्हें भरोसा है कि सीमित उत्पादन के कारण बिहार में उन्हें अच्छा दाम मिलेगा और यह खेती उनके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। यह खाने में स्वादिस्ट और अत्यधिक पौष्टिक भी है। बोका चाउल (चावल) में 10.73 प्रतिशत फाइबर सामग्री और 6.8 प्रतिशत प्रोटीन है, गौहाटी विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है।

आवाज एक पहल के लव-कुश ने बताया कि मूल रूप से असम में यह चावल पाया जाता है, जिसे आप बिना पानी में उबाले खा सकते हैं। इस चावल का नाम है बोका चाउल (चावल) या असमिया मुलायम चावल (ओरीजा सातिवा)। पिछले वर्ष बिहार में इसका एक्सपेरिमेंटल खेती चंपारण के प्रगतिशील किसान विजय गिरि ने किया था। एक्सपेरिमेंट सफल रहा और बंपर उत्पादन हुआ।

इस वर्ष सामाजिक संस्था आवाज एक पहल ने इस चावल की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बिहार के कुछ प्रगतिशील किसानों को इसका बीज मुफ्त में उपलब्ध कराया है। इसी कड़ी में फुलवारीशरीफ के उज्ज्वल को भी बीज उपलब्ध कराया गया था। संस्था के सदस्य वीरू बताते हैं कि आसाम के नलबारी, बारपेटा, गोलपाड़ा, बक्सा, कामरूप, धुबरी और कोकराझार ऐसे जिले हैं, जहां इसकी खेती बहुतायत से होती है।

बोका चाउल (चावल) का इतिहास 17वीं से जुड़ा है। बिना ईंधन के आप इसे पका सकते हैं, बस आप को सामान्य तापमान पर इसको थोड़ा-सा पानी में भिगोना होगा। चना, मुंग या बादाम अंकुरित होने के बाद जैसा होता है ये चावल भी वैसा ही हो जायेगा।

बोका चाउल (चावल) को जीआई टैग के साथ पंजीकृत किया गया है।  असम राज्य का अब इस चावल पर अब जीआई टैग मिलने कानूनी अधिकार हो गया है। बोका चाउल (चावल) को असम के लोग गुड़, दूध, दही, चीनी या अन्य वस्तुओं के साथ खाते हैं। इस चावल का उपयोग स्थानीय पकवानो में भी किया जाता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए यह चावल वरदान साबित हो सकता है। बिहार में हर साल बाढ़ आती हैं और उसमें फंसे लोग सिर्फ रुखे-सूखे अनाज खाकर अपना पेट भरते हैं। ऐसे में अगर उनके पास मैजिक चावल की उपलब्धता होगी, तो उनका भरपूर पोषण हो सकेगा। बोका चाउल (चावल) को असम के लोग जून के महीने में बोते हंै और दिसंबर के महीने में इसे काटते हैं।