सम्पादकीय

भगवानका स्वरूप


डा. विनोद

श्रीमद् भागवत साक्षात भगवानका स्वरूप है इसीलिए श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसके पठन एवं श्रवणसे भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं। मनकी शुद्धिके लिए इससे बड़ा कोई साधन नहीं है। सिंहकी गर्जना सुनकर जैसे भेडिय़े भाग जाते हैं, वैसे ही भागवतके पाठसे कलियुगके समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं। इसके श्रवण मात्रसे हरि हृदयमें आ विराजते हैं। भागवतमें कहा गया है कि बहुतसे शास्त्र सुननेसे क्या लाभ हैं। इससे तो व्यर्थका भ्रम बढ़ता है। भोग और मुक्तिके लिए तो एकमात्र भागवत शास्त्र ही पर्याप्त है। हजारों अश्वमेध और वाजपेय यज्ञ इस कथाका अंशमात्र भी नहीं हैं। फलकी दृष्टिसे भागवतकी समानता गंगा, गया, काशी, पुष्कर या प्रयाग कोई भी तीर्थ नहीं कर सकता।  सम्मानके साथ सेवाका अवसर दिलानेमें सहायक। जनमानसमें भागवतका विशिष्ट स्थान है, अत: भागवतके ज्ञाताके लिए रोजगारकी समस्या आड़े नहीं आती। आज लाखों लोग भागवत प्रवक्ता बनकर स्वयं धन कमा रहे हैं और दूसरोंको भी जीवन-यापनका अवसर प्रदान कर रहे हैं। इस प्रकार भागवतका ज्ञान प्राप्त करके तथा प्रवचनकार बनकर कोई भी व्यक्ति धनके साथ-साथ सम्मान और यश भी अर्जित कर सकता है। कितना और कब करें पाठ। क्योंकि बहुत दिनोंतक चित्तवृत्तिको वशमें रखना तथा नियमोंमें बंधे रहना कठिन है, इसलिए भागवतके सप्ताह श्रवणकी विधि उत्तम मानी गयी है। भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, आषाढ़ और श्रावण मासके शुभ मुहूर्तमें कथा सप्ताहका आयोजन होना चाहिए। तथापि भागवतमें स्पष्टत: कहा गया है कि इसके पठन-श्रवणके लिए दिनोंका कोई नियम नहीं है। इसे कभी भी पढ़ा-सुना जा सकता है। मात्र एक, आधे या चौथाई श्लोकके अर्थ सहित नित्य पाठसे अभीष्ट फलोंकी प्राप्ति हो सकती है। जिस घरमें नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। केवल पठन-श्रवण ही पर्याप्त नहीं। इसके साथ अर्थबोध, मनन, चिंतन, धारण और आचरण भी आवश्यक है। इस प्रकार त्रिविधि दु:खोंके नाश, दरिद्रता, दुर्भाग्य एवं पापोंके निवारण, काम-क्रोध आदि शत्रुओंपर विजय, ज्ञानवृद्धि, रोजगार, सुख-समृद्धि भगवतप्राप्ति एवं मुक्ति यानी सफल जीवनके संपूर्ण प्रबंधनके लिए भागवतका नित्य पठन-श्रवण करना चाहिए, क्योंकि इससे जो फल अनायास ही सुलभ हो जाता है वह अन्य साधनोंसे दुर्लभ ही रहता है। वस्तुत: जगतमें शुककथा (भागवत शास्त्र) से निर्मल कुछ भी नहीं है। इसलिए भागवत रसका पान सभीके लिए सर्वदा हितकारी है।