डा. एस. एन मिश्र
कोरोनाकी दूसरी लहरमें जहां टीकाकरणकी जरूरत ज्यादा महसूस की जा रही है वहीं भारतके टीकाकरण सिस्टमपर भी खूब आलोचनाके घेरेमें है। भारतके टीकाकरण प्रोग्रामके बारेमें कई तरह भ्रांतियां फैल रही हैं। कुछ आधे-अधूरे सच हैं तो कुछ सफेद झूठ हैं। केंद्र सरकार पिछले सालके मध्यसे ही सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टीका निर्माता कम्पनियोंसे लगातार संपर्कमें है और उनसे टीका हासिल करनेके प्रयास कर रही है। फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्ना कम्पनियोंके कई दौरकी वार्ताएं हो चुकी हैं। सरकारने इन कंपनियोंको भारतमें टीका निर्माण और वितरण संबंधी हरसंभव सहायता देनेका प्रस्ताव पहले ही दे रखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन फ्रीमें उपलब्ध हैं। हमें समझना होगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर टीका खरीदना दुकानपर दवा खरीदने जैसा नहीं होता है। वैक्सीनकी सप्लाई वैश्विक स्तरपर सीमित होती है। कम्पनियोंके सीमित स्टाकके साथ अपनी खुदकी प्राथमिकताएं होती हैं, अपनी योजनाएं और कुछ सीमाएं भी होती हैं। वह अपने देशोंको वैसी ही प्राथमिकता देती हैं जैसे हमारे टीका निर्माता अपने देशको प्राथमिकता देना चाहते हैं। जैसे ही फाइजरने जैसे ही उसकी टीकाकी उपलब्धताके बारेमें बताया, केंद्र साकार और कंपनीने मिलकर टीकाके आयातपर तेजीसे काम करना शुरू कर दिया है।
भारत सरकारके प्रयासोंका ही नतीजा है कि स्पूतनिक ट्रायल्समें तेजी आयी और उसे समयपर स्वीकृति मिल गयी रूसने पहले ही स्पूतनिक टीकेके दो खेप भेज दिये हैं और हमारी कंपनियोंको तकनीक हस्तांरण कर दिया है जिससे हमारी कम्पनियां जल्दी ही स्पूतनिक टीकेका निर्माण शुरू कर देंगी। हम फिर सभी अंतरराष्ट्रीय टीका निर्माताओंसे अपने निवेदनपर जोर दे रहे हैं कि वह भारतमें आकर भारत और दुनियाके लिए टीकेका निर्माण करें। सच यह है कि केंद्र सरकारने तो सक्रिय तौरसे काम करते हुए अमेरिकी एफडीए, ईएमए, यूकेके एमएचआरए और जापानके पीएमडीए और डब्ल्यूएचओके आपातकाल उपयोग सूचीसे स्वीकृत टीकेके प्रवेश अप्रैलमें ही सरल कर दिया था। इन टीकेको अब पहलेसे ब्रिजिंग ट्रायलकी जरूरत नहीं होगी। इस प्रावधानमें और सुधार करते हुए दूसरे देशोंकी स्थापित टीका निर्माताओंके लिए ट्रायलकी आवश्यकतामें पूरी छूट दे दी गयी है। किसी भी विदेशी निर्माताके ड्रग कंट्रोलर संबंधी आवदेनको लंबित नहीं रखा गया है। केंद्र सरकारने भारतमें ही टीका उत्पादनके लिए एक कारकर सहजकर्ताके तौरपर साल २०२० की शुरुआतसे ही काम शुरू कर दिया था। फिलहाल केवल भारत बायोटेक कम्पनीके पास ही इंटेलेक्चुल प्रोपर्टी है जो भारतीय कंपनी है। भारत सरकारने भारत बायोटेक कंपनीके खुदके प्लांट्सके बढ़ानेके लिए तीन और कंपनियोंके कोवैक्सीन उत्पादन सुनिश्चित किया है। भारत बायोटेकके प्लांटकी भी संख्या एकसे चार हो चुकी है। इस कम्पनीका टीका उत्पादन अक्तूूबरतक एक करोड़ प्रतिमाहसे दस करोड़ प्रति माह होने जा रहा है। इसके अलावा तीन सार्वजनिक क्षेत्र मिलकर दिसंबरतक चार करोड़ डोजका उत्पादन करनेका लक्ष्य बनाकर चल रहे हैं।
सरकारके प्रोत्साहनसे ही सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्डका उत्पादन ९.५ करोड़ प्रति माहसे ११ करोड़ प्रति माह करने जा रहा है। सरकार रूससे साझेदारी कर रही है जिससे डा. रेड्डीके समन्वयसे छह कंपनियां स्पूतनिकका उत्पादन करेंगी। केंद्र सरकार जायडस किला, बायोईके प्रयासोंका समर्थन कर रही है। साथ ही जेनेवामें स्वदेशी टीकेको कोरोना सुरक्षाके तहत विकसित करनेके लिए अनुदान दे रही है और राष्ट्रीय लैबको भी तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है। भारत सरकारकी सहायतासे भारत बायोटक नाकमें डालनेवाली एक डोजवाली वैक्सीन भी विकसित कर रही है जो दुनियामें गेमचेंजर साबित हो गयी है। इस सालके अंततक दो सौ करोड़ डोजका उत्पादन हो सकता है। अनिवार्य लाइसेंसिंग बहुत आकर्षक विकल्प नहीं है क्योंकि यह कोई फार्मूलाकी तरह काम नहीं करता है जो काम आयगा। लेकिन सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनका प्रशिक्षण, कच्चे मालको हासिल करना, उच्च स्तरकी बायोसुरक्षा लैब ऐसी चीजें हैं जिनकी जरूरत हैं।
तकनीकी हस्तांतरण एक अहम चीज है जो उसी कंपनीके हाथ रहती है जो शोधकार्य करती हैं। हकीकतमें सरकार अनिवार्य लाइसेंसिंगसे एक कदम आगे गयी है और सुनिश्चित कर रही है कि भारत बायोटक और तीन दूसरी कंपनियां कोवैक्सीनका उत्पादन बढ़ायें। इसी तरहकी प्रक्रिया स्पूतनिकके साथ भी चल रही है। सोचिये अक्तूबर २०२० में मॉडर्नाने घोषणा की थी कि वह किसी भी ऐसी कम्पनीपर मुकदमा दर्ज नहीं करेगी जो उसकी वैक्सीन बनायगी। फिर भी एक कंपनीने ऐसा नहीं किया। इससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग एक छोटा मुद्दा है। यदि टीका बनाना आसान होता तो क्या विकसित देशोंमें इसकी कभी इतनी कमी होती? केंद्र सरकार टीका निर्माताओंकी फंडिंगसे लेकर, उत्पादन तेज करनेके लिए और विदेशोंसे जल्दी भारतमें वैक्सीन लानेके लिए उन्हें तेजीसे स्वीकृति देनेतकका काम कर रही है। केंद्रकी बनायी वैक्सीन सभी राज्योंको फ्रीमें दी गयी है। भारत सरकारने राज्य सरकारोंको उनके खास निवेदनपर टीका हासिल करनेके लिए छोड़ा है। राज्य देशमें उत्पादन क्षमता और टीका हासिल करनेमें आनेवाली परेशानियोंसे पूरी तरहसे परिचित हैं भारत सरकारने ही जनवरीसे अप्रैलतकका पूरा टीकाकरण कार्यक्रम चलाया और मईकी तुलनामें यह काफी अच्छा रहा। लेकिन जिन राज्योंने पिछले तीन महीनोंमें भी अपने स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्सको भी पूरी तरहसे वैक्सीन नहीं दी है, वह चाहते हैं कि टीकाकरण कार्यक्रम और खुले और उसका विकेंद्रीकरण हो। स्वास्थ्य राज्योंका विषय है उदार टीका नीति राज्योंके उन्हें लगातार ज्यादा शक्तियां देनेके निवेदनका नतीजा है जो वह करते रहे हैं। वैश्विक टेंडरने भी किसी तरहके नतीजे नहीं दिये हैं जो हम राज्योंको पहले दिनसे बता रहे हैं। टीकेकी दुनियामें कमीकी बात नहीं हैं। बात यह है कि उन्हें इतने कम समयमें नहीं बनाया जा सकता है। केंद्र सरकारने सहमत हुए दिशा-निर्देशोंके आधारपर पारदर्शी तरीकेसे राज्योंको पर्याप्त मात्रामें वैक्सीन उपलब्ध करायी है।
सच तो यह है कि राज्योंको टीकेकी उपलब्धतापर पहलेसे बता दिया जाता है। निकट भविष्यमें टीकेकी उपलब्धता बढ़ेगी और अधिक मात्रामें आपूर्ति संभव हो सकेगी। गैर-केंद्र सरकारी चैनलोंमें राज्योंको २५ प्रतिशत डोज और निजी अस्पतालोंको २५ प्रतिशत डोज मिल रहे हैं। फिर भी राज्योंके इन २५ प्रतिशत डोजके प्रबंधनमें आ रही समस्याओंके चलते राज्या अलग मांग कर रहे हैं। वैक्सीन आपूर्तिको लेकर पूरी जानकारी होनेके बाद भी टीवी आदिपर हमारे कुछ नेताओंका लोगोंमें डर पैदा करनेवाला बर्ताव दुर्भाग्यपूर्ण है। यह राजनीति करनेका समय नहीं हैं हमें इस लड़ाईको एकजुट होकर लडऩा होगा। अभीतक दुनियाके किसी भी देशने बच्चोंको वैक्सीन देना शुरू नहीं किया है। विश्व स्वास्थ्य संघटनने भी बच्चोंको वैक्सीन देनेपर कोई अनुशंसा नहीं की है। बच्चोंको वैक्सीन लगानेपर कुछ अध्ययन जरूर हुए हैं जो उत्साहजनक हैं। वहीं भारतमें बच्चोंपर ट्रायल ज्लदी ही शुरू होनेवाला है। फिर भी बच्चोंका वैक्सीनेशन कुछ ह्वïाट्सऐप ग्रुपकी चिंताओं या कुछ नेताओंकी राजनीतिके आधारपर शुरू नहीं किया जा सकता। इस तरहका निर्णय हमारे वैज्ञानिकोंको सही आंकड़ोंके उपलब्ध होनेपर उनके आधारपर करना होगा।