सम्पादकीय

भारतमें लोकतंत्रकी अवहेलना


विष्णुगुप्त  

अमानतुल्लाह खानकी बयानबाजीपर भारतीय राजनीतिकी चुप्पी और सोशल मीडियापर धमकीको व्यापक समर्थन मिलना चिन्तित करता है। आम तौरपर यह माना जाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थामें जहांपर संविधान सर्वश्रेष्ठ होता है वहां किसी भी समस्याका समाधान संविधान है। यदि कोई विचार या फिर हिंसा संविधानको चुनौती देनेवाले होते हैं तो उसपर राजनीति सक्रिय होती है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहांपर स्वयंभू तालिबानी संस्कृतिकी कोई जगह नहीं है और न ही इस तालिबानी संस्कृतिका समर्थन किया जा सकता है। परन्तु राजनीतिकी खामोशी चिंताजनक है। हिन्दू नेताओंकी बयानबाजीपर कौन हिन्दू युवक किसी मुस्लिम और ईसाई धर्मगुरुकी जुबान काटने या फिर गर्दन काटनेके लिए तैयार होते हैं? फिल्मी हीरो आमिर खानने अपने एक कार्यक्रममें सरेआम हिन्दू प्रतीकोंकी खिल्लियां उड़ायी, अपमानित की। लेकिन किस हिन्दूने आमिर खानकी जुबान या गर्दन काटा।

पिछले दिनों नाईजीरियामें ईशनिंदाकी एक बहुत बड़ी बर्बर घटनाने दुनियाको हिलाकर रख दिया। नाईजीरियाके एक पानी विक्रेतापर कथित तौरपर ईशनिंदाका आरोप था। उसपर जैसे ही आरोप लगा, पुलिसने उसे अपने हिरासतमें ले लिया। वह अपनी बेगुनाहीका सुबूत देता रहा। उसे यह अहसास था कि वह पुलिसकी सुरक्षामें है, इसलिए उसकी जानपर कोई खतरा नहीं है। परन्तु यह उसकी भूल थी। उसे यह समझ नहीं था कि ईशनिंदाकी झूठी खबरपर भी लोग भी हिंसक और बर्बर बनकर टूट पड़ते हैं, मिनटों-मिनटमें हजारोंकी भीड़ जुटी और फिर हत्या हो गयी। मुस्लिम देशोंमें ऐसी हिंसक घटनाएं तो हमेशा घटती रहती है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, लेबनान और सीरिया जैसे मुस्लिम देश जहांका संविधान-कानून सहित सोचने और समझनेकी कसौटी इस्लामिक सोच होती है वहांपर ऐसी घटनाएं न केवल आम है, बल्कि दुनियाके लिए चिंताका विषय हैं। खास कर काफिरोंके खिलाफ हिंसा सिर चढ़कर बोलती है। मुस्लिम देशोंमें हिन्दू, ईसाई और अन्य गैर-मुसलमानोंको सरेआम काफिर कहा जाता है। काफिरका अर्थ इस्लाम नहीं माननेवाले यानी जो मुसलमान नहीं है। ईशनिंदा हिंसामें हजारों काफिरोंको मौतके घाट उतार दिया जाता है। काफिरोंकी चल और अचल संपत्ति हथियानी है, लव-जिहादका शिकार बनाना है तो फिर ईशनिंदा बहुत बड़ा हथकंडा है। ईशनिंदा हिंसाका शिकार बनाकर लक्षित इच्छाएं पूरी कर ली जाती है। पाकिस्तानमें आसिया बीबीका प्रसंग चर्चित था, आसिया बीबीके प्रश्नपर पूरा यूरोप और अमेरिकातक आगबबूला थे। आसिया बीबी ईसाई महिला थी, उसपर कट्टर मुसलमानोंकी कुदृष्टि थी, कुदृष्टिके कारण आसिया बीबीका पक्का ईसाई होना था। कट्टर मुसलमानोंने जब अपनी कुइच्छाएं पूरी नहीं होते देखी तो फिर ईशनिंदाका आरोप जड़ दिया गया। आसिया बीबीके घर जला दिये गये, उसकी जान लेनेकी कोशिश हुई। कई सालोंतक पाकिस्तानकी जेलमें रही। यूरोप और अमेरिकाके दबावपर उसे न्याय तो मिला परन्तु पाकिस्तान छोडऩेके लिए उसे बाध्य होना पड़ा। इसके अलावा आसिया बीबीके घर जलानेवाले, उसपर हिंसा बरपानेवालोंपर कोई काररवाईतक नहीं हुई।

जमानतुल्लाह खान जैसोंने भारतमें भी ईशनिंदाके खिलाफ हिंसक मानसिकता उपन्न कर रखा है। कमलेश तिवारी इस प्रकरणके उदाहरण हैं। कमलेश तिवारी हिन्दू महासभाके नेता थे। उन्होंने आजम खानके हिन्दू संघटनोंपर अस्वीकार बातोंका जवाब दिया था जिसे कट्टर मुसलमानोंने ईशनिंदा मान लिया था। जिस प्रकार आम आदमी पार्टीके विधायक अमानतुल्लाह खानने मंहत यति नरसिम्हानंद सरस्वतीकी जबान काटने और गर्दन काटनेकी अपील की है उसी प्रकार कई मुल्ला-मौलवियोंने कमलेश तिवारीकी गर्दन काटने और हत्या करनेकी धमकियां दी थी। हत्या करनेपर पुरस्कारकी घोषणा की थी। उस समय भी लोग, मीडिया, कानून सभी खामोश थे। दुष्परिणाम अमानवीय रहा। मुस्लिम युवकों द्वारा कमलेश तिवारीको पहले गोली मारी गयी फिर गल्ला रेतकर हत्या कर दी गयी। सिर्फ इतना ही नहीं, ईशनिंदाकी दुनियामें कहीं भी घटना होती है भारतमें कट्टरपंथी मुसलमान हिंसा बरपानेसे पीछे नहीं रहते हैं। पिछले साल ही फ्रांसमें ईशनिंदाके आरोपमें एक शिक्षककी हत्या हुई थी, उसके बाद पूरा यूरोप-अमेरिकाके साथ पूरी मानवता कांप उठी थी। परिणामस्वरूप फ्रांसके राष्टï्रपति मैक्रोंने जिहादियोंके खिलाफ कहा था कि इसपर कानून बनाया जायेगा। फ्रांसके शासकका यह बयान कहींसे भी अप्रिय नहीं था। परन्तु पूरी दुनियामें इस्लामके माननेवाले लोग हिंसक हो गये। भारतमें भी मैक्रोंके खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए थे। मुस्लिम प्रदर्शनकारी फ्रांसके शासकके सिर कलम करनेके सरेआम नारे लगाते थे। म्यांमारमें रोहिंग्या आतंकवादके खिलाफ प्रतिक्रियामें उठे सैनिक कदमपर भारतके मुसलमानोंकी प्रतिक्रियाएं भी डरावनी थी। म्यांमारकी सैनिक काररवाईके खिलाफ मुसलमानोंने मुंबईमें शहीद ज्योति स्मारक तोड़ा था और लखनऊमें महात्मा बुद्धकी मूर्तियोंको अपमानित किया था।

अमानतुल्लाह खानने जिस तरहसे महंत यदि नरसिम्हानंद सरस्वतीके खिलाफ जुबान और गर्दन काटनेकी अपील की है उसके खतरे गंभीर हैं। बात-बातपर आग उगलनेवाली कम्युनिस्ट पार्टियां, कांग्रेस, जातिवादी, क्षेत्रीय पार्टियोंके साथ कथित तौरपर लोकतांत्रिक कहनेवाले संघटनोंकी खामोशी बहुत कुछ बयान करती है। इनकी खामोशी कहती है कि ये मुस्लिम कट्टरता और मुस्लिम सांप्रदायिकता इनके लिए कोई विमर्शका विषय नहीं है। ये सिर्फ हिन्दुओंको ही कोसने और अपमानित करनेकी बात करते है। कम्युनिस्ट पार्टियां, कांग्रेस, जातिवादी-क्षेत्रीय पार्टियां यह सोचती हैं कि अमानतुल्लाह खान जैसोंपर चुप्पी साध कर मुस्लिम सांप्रदायिकता और हिंसक मानसिकतापर खामोशीके साथ अपना वजूद बचा लेंगे तो उनकी यह सोच पूरी तरहसे आत्मघाती है। यदि कमलेश तिवारीकी तरह यति नरसिम्हानंद सरस्वतीका हश्र हुआ तो फिर हिन्दू समाजकी प्रतिक्रिया भी असहज कर सकती है। धैर्य जब टूटता है तो फिर प्रतिक्रिया भी भयानक होती है। इसलिए मुस्लिम धर्मगुरुओंकी जिम्मेदारी भी अमानतुल्लाह खान जैसोंपर लगाम लगानेकी है।