सम्पादकीय

भारतवंशियोंपर भरोसा


विश्वके शक्तिशाली देश अमेरिकाके निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन कल बुधवारको अपने पदका शपथग्रहण करेंगे जिसपर विश्वकी निगाहें भी टिकी हुई हैं, क्योंकि पिछले दिनों डोनाल्ड ट्रम्पके समर्थकोंने जिस प्रकार संसद भवन परिसरमें हिंसक घटनाओंको अंजाम दिया था उससे अमेरिकी लोकतन्त्रपर गहरा आघात पहुंचा था। अमेरिकी प्रशासन पूरी तरहसे सतर्क है और सत्तापरिवर्तनकी प्रक्रियाको शान्तिपूर्ण ढंगसे सम्पन्न करानेके लिए कटिबद्ध है। राजधानी वाशिंगटनकी पूरी तरह किलेबंदी कर दी गयी है जिससे कि किसी प्रकारकी अप्रिय घटनाएं नहीं होने पायें। सत्तापरिवर्तनके इस क्रमसे सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडनने अपने प्रशासनिक तंत्रमें भारतवंशियोंपर बड़ा भरोसा जताया है और बीस अहम पदोंपर भारतवंशियोंको नामित कर भारतका गौरववर्धन भी किया है। जिन भारतवंशियोंको नामित किया गया है उनमें १७ भारतवंशी शक्तिशाली ह्वाइट हाउसमें जिम्मेदारी सम्भालेंगे। अहम पदोंपर १३ महिलाओंको भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी है। पहली बार दो कश्मीरियोंको महत्वपूर्ण पद दिया गया है। यह पहला अवसर है जब राष्ट्रपतिके प्रशासनमें इतनी बड़ी संख्यामें भारतीय-अमेरिकियोंको नामित किया गया है। इससे अमेरिकी प्रशासनमें भारतीय मूलके अमेरिकियोंका महत्व बढ़ेगा, जो उचित भी है। अमेरिकाकी कुल आबादीका एक प्रतिशत भारतीय मूलके अमेरिकी हैं। इस छोटे समुदायसे अमेरिकी प्रशासनमें पहली बार इतनी बड़ी संख्यामें भारतवंशियोंको स्थान दिया गया है। अमेरिकामें पहली बार महिला उपराष्ट्रपतिके रूपमें कमला हैरिस अपना दायित्व सम्भालेंगी, जो भारतीय मूलकी हैं। बाइडन प्रशासनमें अभी कई पद रिक्त हैं, जहां भारतीय मूलके अमेरिकियोंको नामित किया जाना तय है। इनमें नीरा टण्डन और डाक्टर विवेक मूर्ति भी शामिल हैं। अमेरिकी प्रशासनमें भारतवंशियोंका बढ़ता महत्व भारत और भारतवंशियोंका बड़ा सम्मान है। अपनी प्रतिभा और योग्यताका परिचय देकर भारतवंशियोंने अपना परचम लहराया है जो देशके लिए गर्व और गौरवका विषय है। उम्मीद की जाती है कि बाइडनका कार्यकाल भारतके हितोंके लिए काफी अनुकूल होगा। इससे भारत और अमेरिकाके आपसी रिश्तोंमें मजबूती आयगी और परस्पर सहयोग भी बढ़ेगा। शपथ लेनेके बाद बाइडन अनेक ऐसे महत्वपूर्ण कदम उठायेंगे जो भारतीयोंके लिए सुखद होंगे। साथ ही भारत-अमेरिकी सम्बन्धोंमें एक नये दौरकी शुरुआत होगी और इसका विश्वकी राजनीतिपर भी काफी अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
उपभोक्ताहितोंकी उपेक्षा
कोरोना महामारी संकटके दौरमें जहां एक ओर कर संग्रहमें तमाम मुश्किलें सामने आयीं वहीं दूसरी ओर उत्पाद शुल्कमें ४८ प्रतिशतकी जबरदस्त वृद्धि चौंकानेवाली है। खाता महानियंत्रक (सीजीए) के आंकड़ोंके अनुसार यह वृद्धि पेट्रोल-डीजलपर टैक्समें रिकार्ड वृद्धिके बदौलत हुई। पेट्रोल-डीजलकी खपतमें कमीके बावजूद अप्रैलसे नवम्बर २०२० में उत्पाद शुल्क संग्रह १.९६ लाख करोड़से ज्यादाका होना अप्रत्याशित है। महामारीके कारण अन्तरराष्ट्रीय बाजारमें कच्चे तेलकी कीमत दो दशकके निचले स्तरपर पहुंच गयी। इसके बावजूद सरकारने मार्चसे मई २०२० के बीच पेट्रोल-डीजलपर उत्पाद शुल्कमें भारी वृद्धि की थी। मार्चमें जहां इन दोनोंके उत्पाद शुल्कमें तीन रुपये प्रति लीटरकी वृद्धि की गयी, वहीं मईमें पेट्रोलपर दस रुपये और डीजलपर १३ रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया था जिसके चलते पेट्रोलपर उत्पाद शुल्क ३२.९८ रुपये और डीजलपर ३१.८३ रुपये प्रति लीटर हो गया है। पेट्रोलमें ३९ प्रतिशत और डीजलमें ४२.५ प्रतिशत हिस्सा केन्द्र सरकारकी ओरसे लगाये जानेवाले उत्पाद शुल्कका होता है। करोंमें वृद्धिसे केन्द्रके राजस्वमें वृद्धि तो अवश्य हुई लेकिन जनताकी मुसीबतें बढ़ी हैं। सरकारके इन दोनों पेट्रोलियम पदार्थोंमें रिकार्ड टैक्स वृद्धि किये जानेसे खुले बाजारमें पेट्रोल और डीजलकी कीमतमें अच्छीखासी वृद्धि हुई है जिसका खामियाजा उपभोक्ताओंको भुगतना पड़ रहा है। पेट्रोल-डीजलकी कीमतोंमें वृद्धिका असर ट्रांसपोर्टपर पडऩा स्वाभाविक है जिससे मूलभूत आवश्यक वस्तुओंकी कीमतें बढ़ी हैं जो जन-सामान्यकी मुसीबतें बढ़ानेवाली हैं। महंगीकी मारसे गरीब और मध्यम वर्ग पहलेसे ही त्रस्त है। ऐसी स्थितिमें पेट्रोल और डीजलकी कीमतोंमें वृद्धि उचित नहीं है। यह उपभोक्ता-हितोंके विरुद्ध है जिसपर सरकारको गम्भीरतासे विचार करनेकी आवश्यकता है। देश इस समय संकटके दौरसे गुजर रहा है और जनता भी परेशान है इसलिए जरूरी है कि सरकार जनहितमें पेट्रोल और डीजलके उत्पाद शुल्कमें कटौती करे।