रांची

मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने झारखंड के आदिवासी आंदोलन को दिखाई नई राह


मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने झारखंड के आदिवासी आंदोलन को दिखाई नई राह
रांची। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को नई दिल्ली में झारखंड की राजधानी रांची के नागपुरी गीतकार मधु मंसूरी हंसमुख और सरायकेला के छऊ गुरु शशधर आचार्य को पद्मश्री से सम्मानित किया। वर्ष 2020 में ही इन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की गयी थी। साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर द्वारा सामाजिक योगदान के लिए ‘निनाद सम्मान’ झारखंड आदिवासी आंदोलन से जुड़े गायक-गीतकार मधु मंसुरी हंसमुख झारखंड के लोगों के बीच उनके गीत खासे लोकप्रिय हैं। उनके गीतों ने झारखंड क्षेत्र में सांस्कृतिक मशाल का काम किया है। नागपुरी भाषा के प्रसिद्ध गायक मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने झारखंड के आदिवासी आंदोलन को नई राह दिखाई है। पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख रांची जिले के रातू प्रखंड के सिमलिया के रहने वाले हैं। नागपुरी गीत के जरिए इन्होंने झारखंड का नाम देश-विदेश में रोशन किया है। इतना ही नहीं, झारखंड आंदोलन में भी इन्होंने अहम भूमिका निभाई। इन्हें नागपुरी गीतों का राजकुमार कहा जाता है। जल-जंगल-जमीन और झारखंड आंदोलन पर इन्होंने कई गीत लिखे हैं। मधु मंसूरी हंसमुख ने कहा कि झारखंड की जनता का प्यार ही है कि ये सम्मान उन्हें प्राप्त हुआ है। वे इसे श्रोताओं को समर्पित करते हैं। गांव छोड़ब नाहीं…जैसे चर्चित गीत लिखने वाले मधु मंसूरी ने अपनी आवाज में इसे गाकर और भी मशहूर कर दिया है। आठ साल की उम्र से ही लोकगीत गा रहे मधु मंसूरी हंसमुख को 73 साल की उम्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 1948 में जन्मे हंसमुख ने आदिवासी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और रीति-रिवाज को जिंदा रखने का महत्त्वपूर्ण काम किया है। छऊ गुरु शशधर आचार्य झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के रहने वाले हैं। छऊ नृत्य के जरिए इन्होंने देश-विदेश में झारखंड का नाम रोशन किया है। छऊ नृत्य में इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। 2020 में ही इन्हें पद्मश्री देने की घोषणा हुई थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिल्ली में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।