पटना (आससे)। संतानों की सलामती और दीर्घायु के लिए माताओं ने बुधवार को बुधाष्टमी योग में जितिया व्रत निर्जला रखा। शाम में जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना की। और, संतानों की लंबी आयु के साथ कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना की। कथा सुनी। गुरुवार को सूर्योदय के ठीक बाद माताएं पारण करेंगी। इसके पूर्व मंगलवार को माताओं ने नहाय-खाय के साथ व्रत शुरू कियाथा। इसी दिन सरगही (दही, चूड़ा, शरबत, दवा आदि) सूर्योदय के पूर्व किया। ऐसा कहा जाता है कि एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा और उपवास करते देखा।
उपवास के दौरान लोमड़ी भूख के कारण बेहोश हो गयी और चुपके से उसने भोजन कर लिया। दूसरी ओर चील ने पूरे समर्पण के साथ व्रत किया। इसका परिणाम यह हुआ कि लोमड़ी से पैदा हुए सभी बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही खत्म हो गये और चील की संतान लंबी आयु के लिए धन्य हो गयी। इस कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान और राजा थे। जीमूतवाहन ने अपने भाइयों को राज्य की सभी जिम्मेदारियां दीं और पिता की सेवा के लिए जंगल चले गये। जंगल में उन्हें एक बुढिय़ा रोती हुई मिली।
उन्होंने बुढिय़ा से रोने का कारण पूछा। इस पर उसने बताया कि वह नागवंशी परिवार से है। उसका एक ही बेटा है। हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था। यह सुन जिमूतवाहन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को जीवित लेकर आयेंगे। वह खुद गरुड़ का चारा बनने का विचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं।
गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से जिमूतवाहन को लेकर चट्टान पर चढ़ जाता है। उसे हैरानी होती है कि जिसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा है। वह जिमूतवाहन से पूछता है। गरुड़ जिमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है। मान्यता है कि तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए जितयिा व्रत मनाया जाता है।