विशेष कार्य पदाधिकारी ने नियुक्ति रद्द कर 48 घंटे में मांगी रिपोर्ट, अनियमितता उजागर होने के बाद भी क्यों नहीं की गयी काररवाई?
मुजफ्फरपुर। कोरोना काल के लिए ही सही निविदा के आधार पर जिन स्वास्थ्य कर्मियों (अतिरिक्त मानव बल) की बहाली की गई थी वह एक बार फिर से बेरोजगार हो गये हैं। सिविल सर्जन और जिलाधिकारी के बीच जारी आंखमिचौली के खेल में उनकी नियुक्ति हाशिए पर चली गई है। विदित हो कि बढ़ते कोरोना संक्रमण के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों की कमी महसूस किए जाने पर सरकार के निर्देश के आलोक में सिविल सर्जन स्तर पर विभिन्न पदों के लिए 740 स्वास्थ्य कर्मियों की बहाली की गई थी।
बहाली में पैसे के लेनदेन का मामला वायरल होने पर जिलाधिकारी द्वारा जांच कमेटी गठित की गई थी। बताया जाता है कि डीडीसी की अगुवाई में जांच रिपोर्ट में बहाली में अनियमितता उजागर हुआ था। इस मामले में तब डीएम स्तर पर काररवाई किये जाने की आहट बनी थी। इसी बीच बहाली पर उठते सवालों के बीच देर से ही सही सिविल सर्जन ने अचानक नियुक्तियों को रद्द कर दिया था।
इस बात पर नियुक्ति पत्र पाने वाले कर्मियों ने शुक्रवार को सदर अस्पताल परिसर में जमकर बवाल काटा। जमकर हंगामा- नारेबाजी की गई। पदाधिकारियों से हाथापाई हुई। पुलिस बल पर हमला किए गए। जवाब में पुलिस ने भी लाठियां भाजी। लेकिन सफलता उन स्वास्थ्य कर्मियों को हाथ लगी जो निविदा के आधार पर कथित पैसे के लेनदेन से नौकरी पाने में सफल हुए थे। सीएस ने अपने आदेश को वापस लेते हुए नियुक्ति को स्वीकृत किये जाने का एलान कर दिया।
हालांकि उनकी खुशियां अगले 24 घंटे के अंदर ही काफूर हो गई जब बिहार सरकार के विशेष कार्य पदाधिकारी आनंद प्रकाश ने पत्रांक संख्या 1541 के हवाले से नियुक्तियों को रद्द करने का आदेश जारी किया है। साथ ही सिविल सर्जन के द्वारा नियुक्तियों को रद्द करने के बाद पुनः मान्य घोषित किए जाने के मामले की जांच कर 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट तलब की है। यह भी पूछा है कि बहाली में अनियमितता उजागर होने पर जिनकी संलिप्तता सामने आयी उनके खिलाफ जांच क्यों नहीं की गयी?