टीके पर लोगों का भ्रम मिटाया, घर-घर जाकर 350 लोगों का किया कोविन पर रजिस्ट्रेशन
मुजफ्फरपुर। सरैया प्रखंड के चकना पंचायत की राजनंदिनी जीविका में एचएनएस एमआरपी हैं। अपने कार्यक्षेत्र में सामाजिक इंजीनियरी की जो मिसाल राजनंदिनी ने पेश की है वह समाज के सभी युवाओं और सक्षम लोगों के लिए मिसाल है। दो वर्षों के अपने कार्य में गर्भवतियों और धात्री महिलाओं से लेकर नवजातों के स्वास्थ्य समस्या पर काम कर रही थीं। पर कोरोना काल की चुनौती को राजनंदिनी सबसे अहम मानती हैं। इसी बीच दिल्ली एम्स के डॉक्टरों के द्वारा एक प्रशिक्षण ने राजनंदिनी को हौसला दिया। जिसमें टीके पर अलग -अलग तरह की तकनीकी जानकारी मिली। राजनंदिनी ने इस प्रशिक्षण का इस्तेमाल अपने कार्यक्षेत्र के दौरान किया। जिसने टीके के प्रति एक नई सोच लोगों के मन में पैदा की।
घर से की शुरुआत
राजनंदिनी कहती हैं कि जब कोरोना की दूसरी लहर चली,उस समय 45 प्लस के लोगों को टीके दिए जा रहे थे। लोग कोरोना के अनुरुप नियमों का पालन तो कर रहे थे, पर टीके के प्रति आकर्षित नहीं थे। कारण अनेक थे। किसी को विपरीत प्रभाव का डर था तो किसी में अन्य चीजों का। यहां तक कि मेरे घर में भी मेरे पिता जो 45 प्लस के हैं उन्हें भी टीका लेने में डर लग रहा था। उसी दौरान मेरे पिताजी संक्रमित हो गए। संक्रमणमुक्त होने के बाद उन्हें मैंने समझाया। उन्होंने टीका ले लिया। यह देखकर घर के अगल -बगल के भी लोग टीका लेने लगे। वहीं मैं जिससे भी मिलती उन्हें टीके पर भ्रम का निराकरण करती।
पेश की सामाजिक इंजीनियरिंग की बेहतरीन मिसाल
राजनंदिनी कहती हैं कि 45 प्लस के लोगों में तो जागरुकता आ रही थी। तब तक 18 प्लस के लोगों के टीके का नंबर आ चुका था। मैं देख रही थी जिनके पास साधन नही थे वह टीके के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पा रहे थे। कारण कि पोर्टल पर स्लॉट तुरंत ही बुक हो जा रहे थे। फिर मैंने घर-घर घूमना शुरु किया। सरैया, चकना, मणिकपुर और बहिरवारा गांवों में 18 प्लस के युवाओं का कोविन पर रजिस्टर करने लगी। करीब 350 लोगों के मैंने स्लॉट बुक किए। खुशी की बात है कि सभी ने टीका भी ले लिया है। इस काम को करने में मुझे दस दिन लगे। अगर यही सामाजिक इंजीनियरिंग समाज के कुछ कद्दावरों के मन में भी आ जाए तो शत् प्रतिशत टीके के आच्छादन की बात दूर नहीं होगी।