साप्ताहिक

मोदीकी अमेरिका यात्रा


प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी बुधवारसे प्रारम्भ हुई अमेरिका यात्रा विश्वके बदलते राजनीतिक परिदृश्य और नयी चुनौतियोंके सन्दर्भमें अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। इस यात्राके दौरान जहां भारत-अमेरिकाके बीच द्विपक्षीय सम्बन्धोंको और प्रगाढ़ बनानेका प्रयास किया जायगा वहीं विश्वमें बढ़ते आतंकवाद और अफगानिस्तानके ताजा घटनाक्रमोंके परिप्रेक्ष्यमें नयी रणनीति बनानेमें भी यह सहायक साबित होगी। अमेरिकी राष्टï्रपति जो बाइडेनके आमंत्रणपर तीन दिवसीय यात्रापर प्रस्थान करनेसे पूर्व प्रधान मंत्री मोदी इस यात्राकी सफलताके प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं और उन्होंने यह भी संकेत किया है कि राष्टï्रपति बाइडेनके साथ भारत-अमेरिकी वैश्विक साझेदारी और आपसी हितके क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दोंपर विचारोंका आदान-प्रदान होगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकीके क्षेत्रमें सहयोगके अवसरोंका पता लगानेके लिए वह अमेरिकाकी उपराष्टï्रपति कमला हैरिससे भी भेंटके लिए इच्छुक हैं। अमेरिकी राष्टï्रपतिसे प्रधान मंत्री मोदीकी पहली बार आमने-सामने वार्ता होने जा रही है, जिसमें अनेक महत्वपूर्ण विषयोंपर बातचीतकी सम्भावना है। इसके अतिरिक्त क्वाड लीडरके शिखर सम्मेलनमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापानके नेताओंसे भी प्रधान मंत्री मोदीकी विस्तृत वार्ता होगी। आस्ट्रेलियाके प्रधान मंत्री स्काट मारिसन और जापानके प्रधान मंत्री योशीहिद सुगा भी क्वाड बैठकमें सहभागिता करेंगे। क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलियाका मजबूत संघटन है, जो हिन्द-प्रशान्त क्षेत्रके लिए साझा दृष्टिïकोणके आधारपर भविष्यकी प्राथमिकताओंकी पहचान करनेका अवसर प्रदान करता है। अमेरिकी राष्टï्रपतिने क्वाड देशोंके नेताओंकी पहली शिखर बैठक मार्चसे डिजिटल माध्यमसे आयोजित की थी और हिन्द-प्रशान्त क्षेत्रको लेकर प्रतिबद्धता प्रकट की थी। इसका परोक्ष रूपसे चीनको सन्देश देना था। प्रधान मंत्री अपनी यात्राके अन्तिम दिन संयुक्त राष्टï्रसभाको भी सम्बोधित करेंगे, जिसमें कोविड महामारी, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तनके मुद्दोंपर वे अपनी बात रखेंगे। विशेष बात यह है कि प्रधान मंत्री मोदीकी यह यात्रा ऐसे समयमें हो रही है जब भारत मजबूत स्थितिमें है। भारतकी मजबूत आर्थिक स्थितिका प्रभाव विश्वकी बड़ी कम्पनियोंपर पड़ेगा और वे भारतमें निवेश बढ़ानेपर सकारात्मक निर्णय भी कर सकती हैं। इस दृष्टिïसे प्रधान मंत्रीकी यात्रासे अच्छे परिणाम आनेकी सम्भावनाएं प्रबल हुई हैं।

राजनीतिक दलोंको नसीहत

राजनीतिमें आपराधिक पृष्ठïभूमिवाले नेताओंकी बढ़ती संख्या लोकतंत्रके लिए शुभ नहीं है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयको बार-बार राजनीतिक दलोंको नसीहत देनी पड़ती है, लेकिन उसका असर राजनीतिक दलोंपर कितना पड़ता है यह विचारणीय विषय है। वर्ष १९९३ में बोहरा समितिकी रिपोर्ट और संविधानके कामकाजकी समीक्षाके लिए बने राष्टï्रीय आयोग (एनसीआरडब्लूसी) की रिपोर्टमें भी आपराधिक पृष्ठïभूमिवाले व्यक्तियोंकी बढ़ती संख्यापर चिन्ता जताते हुए राजनीतिको अपराधमुक्त बनानेके लिए अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये थे, लेकिन उसपर कितना अमल किया गया उसका अन्दाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि इसके बादसे लगातार उनकी संख्यामें वृद्धि हो रही है। वर्तमानमें ऐसी स्थिति बन गयी है कि राजनीतिक दलोंके मध्य इस बातकी प्रतिस्पर्धा होती है कि किस दलके कितने उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठïभूमिके हैं, क्योंकि बाहु और धन-बल बढऩेसे उनकी जीतनेकी सम्भावना बढ़ जाती है। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनावोंके आंकड़ोंपर नजर डालें तो इसमें लगातार वृद्धिका क्रम बना हुआ है, जो लोकतंत्रके लिए खतरेकी घंटी है। न्यायालयने भी माना है कि राजनीतिक दलोंका रवैया कानूनके शासनको कमतर करने और गणतंत्रात्मक संरचनाको क्षति पहुंचानेवाला है। ऐसी स्थितिमें इलाहाबाद उच्च न्यायालयके न्यायमूर्ति पी.के. श्रीवास्तवकी राजनीतिक दलोंको अपराधियोंको टिकट न देनेकी नसीहतका कितना असर होगा यह तो आनेवाले चुनावोंमें ही पता चल सकेगा। हालांकि चुनाव आयोगने भी राजनीतिको अपराधीकरणसे मुक्त करनेके लिए कई नियम बनाये हैं, लेकिन राजनीतिक दल इन नियमोंकी खुलेआम धज्जियां उड़ाते हैं इसलिए चुनाव आयोगको नियमोंको और कड़ा कर उसकी सतत निगरानी और काररवाई सुनिश्चित करना होगा। इसके साथ ही जनताको भी ऐसे उम्मीदवारोंको नकारना होगा, जो आपराधिक पृष्ठïभूमिके हैं।