सम्पादकीय

मोदी और हैरिसकी मुलाकातके मायने


अवधेश कुमार  

भारत-अमेरिकाके बीचकी मुलाकातको जिस प्रकारका माहौल बनाया गया था, वैसा कुछ नहीं हुआ। जिस गर्मजोशीसे कमला हैरिस प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीसे मिली और दोनोंके संयुक्त संवाददाता सम्मेलनमें जिस ढंगकी प्रतिक्रियाएं और हाव-भाव व्यक्त किये गये उनसे साफ था कि बातचीत बिल्कुल सहज सामान्य और मित्रवत् माहौलमें ही संपन्न हुआ। यह प्रश्न अवश्य उठाया जा सकता है कि कमला हैरिसके साथ इस मुलाकातसे निकला क्या। भारतीय मीडियामें कमला हैरिस द्वारा सीमा पार आतंकवादके मुद्देपर मोदीके वक्तव्यका किया गया समर्थन सबसे बड़ी सुर्खियां बनी हुई है। सीमा पार आतंकवाद भारतके लिए दक्षिण एशियामें सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा है और चूंकि पाकिस्तानका स्रोत है और वह भारतके विरोधमें किसी सीमातक जाने और काम करनेको तैयार है इसलिए भारतीय कूटनीतिमें इस विषयका खासकर अमेरिकाके राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपतिसे बातचीतमें महत्वपूर्ण मुद्दा होना ही था। प्रतिनिधिमंडलके साथ बातचीतमें इस विषयपर क्या निकला इसके बारेमें जानकारी नहीं है किंतु पत्रकारवार्तामें कमला हैरिसने कहा कि सीमा पार आतंकवाद बड़ा मुद्दा है, पाकिस्तानमें आतंकवादी हैं, उनको वहां समर्थन मिलता है और पाकिस्तानको इसपर रोक लगानी चाहिए ताकि भारत एवं अमेरिका दोनोंकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इस तरह उन्होंने भारतकी सुरक्षा चिंताओंको अमेरिकाकी सुरक्षा चिंतासे भी जोड़ दिया है। यह भारतीय कूटनीतिकी बड़ी सफलता है। साफ है कि पिछले कुछ समयसे अफगानिस्तानमें परिवर्तनके साथ भारतीय कूटनीति जिस तेजीसे सक्रिय हुई, परराष्टï्रमंत्रीका अमेरिका दौरा हुआ, विदेश सचिव, सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदिने अपने अमेरिकी समकक्षसे बातचीत कर की उनका भी असर है। उन वार्ताओंमें यह विषय महत्वपूर्ण था कि यदि पाकिस्तानका प्रभाव अफगानिस्तानमें बढ़ा तो वह भारतके साथ अमेरिका और दुनियाके लिए खतरा बन सकता है।

पहले भी पाकिस्तानके कारण ही अमेरिका एवं अमेरिकी केन्द्रोंपर आतंकवादी हमले हुए। जो बाइडेन और कमला हैरिस इन शक्तियोंसे परिचित हैं। इसलिए उनके ऐसे बयान स्वाभाविक ही हैं। उनकी पृष्ठभूमिको देखते हुए यह महत्वपूर्ण है कि उन्होंने भारतकी सीमा पार आतंकवाद संबंधी चिंताओंके स्वरमें स्वर मिलाया है। किंतु क्या इससे हम बहुत ज्यादा उम्मीद कर सकते हैं। इसका सीधा और सपाट उत्तर है, नहीं। २००० में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटनकी यात्राके साथ अमेरिकाने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादको स्वीकार किया था। जब बिल क्लिंटन पाकिस्तान गये उन्होंने सारे नेताओं एवं सैनिक अधिकारियोंके समक्ष आतंकवादपर पाकिस्तानकी नीतिको लेकर अत्यंत ही कठोरतासे खरी-खरी सुनायी थी। तबसे अमेरिकाकी स्पष्ट नीति आतंकवादके विरुद्ध रही है। भारतकी चिंताओंका सभी राष्ट्रपतियोंने समर्थन किया है। यह अलग बात है कि सब कुछ जानते हुए भी अमेरिकाने पाकिस्तानके विरुद्ध कभी कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है। ज्यादासे ज्यादा हथियारोंकी आपूर्ति रोक दिये, स्थगित कर दिये, जो वित्तीय सहायता है उनमें कटौती किया, कुछ समयके लिए उसे रोक दिया। पाकिस्तान आतंकवादके विरुद्ध निर्णायक काररवाई करे इसकी दृष्टिसे अमेरिकाने राजनयिक, सामरिक और आर्थिक तीनों स्तरोंपर कभी ठोस कदम नहीं उठाया। इसलिए कमला हैरिस बोले या जो बाइडेन जबतक अमेरिका किसी निर्णायक काररवाईके लिए या कदम उठानेकी तैयारी नहीं दिखाता हमें ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

इस बयानका अर्थ इतना ही है कि जो बाइडेन प्रशासन पाकिस्तान केंद्रित आतंकवाद संबंधी भारतीय सूचनाओं एवं दृष्टिकोणसे सहमत है तथा भविष्यमें यदि भारत कोई काररवाई करता है तो उसे अमेरिकी विरोधका सामना नहीं करना पड़ेगा। दूसरा अर्थ यह है कि  पाकिस्तानके विरुद्ध अमेरिकाके तेवर सार्वजनिक रूपसे आतंकवादको लेकर थोड़े कड़े बने रहेंगे। अबतक राष्ट्रपति बाइडेनने इमरान खानको फोनतक नहीं किया है। इमरान खान इसी चिंतामें दुबले भी हुए जा रहे हैं। यह सामान्य बात नहीं है कि एक समय जो अमेरिका आतंकवादके विरुद्ध संघर्षमें पाकिस्तानको अपना पार्टनर समझता था। वहांका राष्ट्रपति कार्यभार संभालनेके लगभग आठ महीना बीत जानेके बादतक पाकिस्तानके प्रधान मंत्रीसे बातचीत करनेकी भी जहमत नहीं उठ रहा। इससे पाकिस्तानकी अमेरिकी प्रशासनकी दृष्टिमें क्या हैसियत है इसका पता चल जाता है। किंतु हमें अपनी लड़ाई स्वयं ही लडऩी है। अमेरिकाको अपने लिए जो भी देश खतरा दिखा वहांके लिए उसने निर्णायक कदम उठाये। इराक, लीबिया, सीरिया, अफगानिस्तान हो सबके लिए अमेरिकाने कदम उठाये लेकिन पाकिस्तानके विरुद्ध उसने न जाने क्यों एक छोटे हिस्सेका ध्यान भी केंद्रित नहीं किया। अफगानिस्तानसे अनर्थकारी वापसीके साथ अमेरिकाने यह संदेश दे दिया है कि जो बाइडेन और कमला हैरिस प्रशासनके तहत वह आतंकवादके विरुद्ध सैन्य काररवाईसे अपना हाथ खींच रहा है। इसमें हमें ज्यादा उम्मीद करनेकी आवश्यकता नहीं है। परन्तु भारतीय कूटनीति इस दिशामें सक्रिय होना चाहिए। कमला हैरिस या जो बाइडेन प्रशासनके ऐसे बयानोंसे पाकिस्तान तथा उनके दोस्तोंपर दबाव बढ़ता है। इसका एक विश्वव्यापी संदेश भी जाता है। कमसे कम इससे यह सुनिश्चित होता है कि अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तानके पक्षमें आतंकवादके संदर्भमें किसी प्रकारकी नीति बनाने या कदम उठाने नहीं जा रहा है। यह हमारे लिए संतोषका विषय है।

प्रधान मंत्री मोदीने कमला हैरिसको भारत आनेका निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिकाके उप राष्ट्रपतिके रूपमें आपका चुनाव एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक घटना रही है। आप विश्वभरमें बहुतसे लोगोंके लिए प्रेरणास्रोत हैं और मुझे विश्वास है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन एवं आपके नेतृत्वमें हमारे द्विपक्षीय संबंध नयी ऊंचाई छुयेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय आपका स्वागत करनेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैं आपको भारत आनेका निमंत्रण देता हूं। कमला हैरिसने कहा कि भारत अमेरिकाका एक बहुत ही महत्वपूर्ण साझेदार है। जब भारत कोविडकी दूसरी लहरसे परेशान था अमेरिकाको भारतके लोगोंकी आवश्यकता और उसके लोगोंके टीकाकरणकी जिम्मेदारीका समर्थन एवं सहयोग देनेका गर्व है। हैरिसने कोविड टीकेके निर्यातको बहाल करनेकी भारतकी घोषणाका स्वागत किया और इस बातपर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत प्रतिदिन करीब एक करोड़ लोगोंका टीकाकरण कर रहा है। निश्चित रूपसे सारे उद्ïगार भारत और मोदी सरकारके पक्षमें जाते हैं। इससे भारतकी व्यापक चिंता करनेवाले लोग निश्चित रूपसे प्रसन्न होंगे लेकिन जिन्होंने झंडा उठाकर रखा था कि कमला हैरिस उनके ही अनुसार किसी न किसी तरहका नकारात्मक बयान मोदीके समक्ष देगी उन्हें निश्चित रूपसे निराशा होगी।