सम्पादकीय

योगसे खुशी


श्रीश्री रविशंकर
योगके अनगिनत लाभ हैं। यह स्वस्थ, तनाव और कुंठामुक्त जीवनकी ओर बढ़ाता है। योग मानवताको दी गयी सबसे बड़ी देन है। धनसे जिस प्रकार खुशी मिलती है। योग एक ऐसा धन है, जिससे हमें संपूर्ण आराम मिलता है। योगसे न सिर्फ हमारा शरीर रोगमुक्त होता है, बल्कि समाज भी हिंसा रहित होता है। संशयसे मुक्त मन, बुद्धिकी स्पष्टता, आघात मुक्त स्मृति और दुखसे मुक्त आत्मा तो प्रत्येक मानव जीवनका अधिकार है। सभी लोग इस मकसदको पानेके लिए तड़प रहे हैं। योग इसका आसान-सा उत्तर है। लोग सोचते हैं कि योग महज कसरतभर है। ऐसा नहीं है। योग तो व्यक्तिका व्यवहार बदल देता है। व्यवहार व्यक्तिके तनावके स्तरसे सीधे संबंध रखता है। यह उस व्यक्तिमें मित्रताके भाव जाग्रत करता है। योग हमारे वाइब्रेशनमें फर्क लाता है। हम अपनी उपस्थितिसे कई बार बहुत कुछ अभिव्यक्त कर देते हैं, जितना कि हम बोलकर नहीं कर सकते। यदि हम क्वांटम भौतिकीकी तर्जपर बात करें तो हमारी अपनी वेबलेंथ और वाइब्रेशन होती हैं। जब हमारा संवाद टूटता है, तब हम अकसर कहते हैं कि हमारी वेबलेंथ नहीं मिली। हमारा संवाद इस बातपर निर्भर करता है कि हम दूसरोंसे किस तरह संवाद करते हैं। यहां योग हमारे मनको साफ करता है। योग हमारे अंदर कौशल विकासको बढ़ाता है। गीतामें श्रीकृष्ण कहते हैं, योगका अर्थ अपने कार्योंमें दक्षता लाना है। योग सिर्फ कसरत नहीं है, बल्कि किसी विशेष परिस्थितिमें दक्षताके साथ यदि आप कार्य कर रहे हैं तो वह भी योग ही है। नवीनता, पूर्वाभास, कौशल और बेहतर संवाद, यह सभी योगके ही प्रतिफल हैं। यह शरीर, मन और भावनाओंको सार्वभौमिक ऊर्जाके साथ जोड़ता है। योगका अर्थ है जोडऩा। जीवनके समस्त तत्वोंको विधिवत जोडऩा। आज बड़ी संख्यामें लोग अवसादसे ग्रसित हैं। सभीको शांति और खुशी चाहिए। खुशी तभी संभव है, जब हम अंदरसे खुश हों। योगका मकसद है दैनिक जीवनमें हमारी खुशी और मुस्कराहट बनी रहे। योग मानवको समग्र व्यक्तित्व विकासकी ओर ले जाता है। यह आंतरिक शक्तिको मजबूत करता है। यह मानव विकासके लिए पूर्ण विज्ञान है। तनाव मुक्त होने और प्रगतिशील होनेके लिए योग और ध्यानको जीवनका हिस्सा बनायें।