सम्पादकीय

राहतके बीच चिन्ता भी


देशमें कोरोना संक्रमणमें गिरावटकी प्रवृत्ति और संक्रमितोंसे अधिक स्वस्थ होनेवालोंकी संख्यामें वृद्धि निश्चित रूपसे बड़ी राहतका संकेत है लेकिन मृतकोंकी संख्यामें वृद्धि गम्भीर चिन्ताका विषय है। मंगलवारको ४०२५ मरीजोंकी मृत्युसे चिन्ताका बढऩा स्वाभाविक है। विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्लूएचओ) की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथनने भारतमें मृतकोंकी मौजूदा स्थितिका उल्लेख करते हुए यह भी संकेत किया है कि अगस्ततक संक्रमणसे दस लाख लोगोंकी मृत्यु होनेकी आशंका है। साथ ही यह भी कहा है कि आंकड़ोंमें परिवर्तन भी सम्भव है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयने बुधवारको पिछले २४ घण्टोंके सन्दर्भमें जो आंकड़े प्रस्तुत किये हैं उसमें राहतकी बात यह है कि ठीक होनेवाले मरीजोंकी संख्या निरन्तर बढ़ रही है। इस अवधिमें जहां तीन लाख ४८ हजार ४२१ नये मामले दर्ज किये गये वहीं तीन लाख ५५ हजार ३३८ मरीज संक्रमणसे मुक्त हुए हैं। सक्रिय मरीजोंकी संख्या भी कम हो रही है। ६१ दिनोंके बाद पहली बार सक्रिय मामलोंमें कमी देखी गयी है। १५ राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशोंमें स्थिति सुधर रही है। महाराष्टï्र, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडुमें उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न मौतके आंकड़ेको लेकर है। पंजाब, केरल, ओडिसा, पश्चिम बंगाल सहित १८ से अधिक राज्योंमें हालत चिन्ताजनक बने हुए हैं। १८२ जिलोंमें संक्रमण दरमें गिरावटकी प्रवृत्ति है। देशके ५३३ जिलोंमें अब भी संक्रमण दर दस प्रतिशतसे अधिक है। ऐसे जिलोंमें संक्रमण रोकनेके उपायोंको सख्तीसे लागू करनेकी जरूरत है। जांचकी रफ्तारको बढ़ाया जा रहा है। साथ ही टीकाकरण अभियानमें तेजी लानेके प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन टीकेकी कमी इसमें सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। अनेक केन्द्रोंपर टीकेके अभावमें टीकाकरण बन्द हो गया है। इससे उन लोगोंको निराशा हाथ लग रही है जो पिछले कई दिनोंसे टीका लगवानेके लिए प्रयास कर रहे हैं। टीकेकी पर्याप्त आपूर्ति अत्यन्त ही आवश्यक है। साथ ही सरकारी टीकाकरण केन्द्रोंकी व्यवस्थामें भी सुधार करनेकी जरूरत है। प्रचण्ड गर्मीके दिनोंमें लोग घण्टोंतक लाइनमें लगे रहते हैं। इन केन्द्रोंपर कोरोना प्रोटोकालका पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे संक्रमणके खतरे बढ़ सकते हैं। सरकारको इस दिशामें शीघ्र ठोस कदम उठानेकी आवश्यकता है।

नदियोंमें संक्रमित शव

कोरोना संक्रमणसे जहां हवा संक्रमित हो रही है, वहीं कोरोना मरीजोंका शव नदियोंमें बहाया जाना गम्भीर चिन्ताका विषय बन गया है। नदियोंमें जल संक्रमित होनेसे भारतकी बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होगी और उनके जीवनपर बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसे तत्काल रोका जाना जन-जीवनके लिए जरूरी है। उत्तर प्रदेश और बिहारमें नदियोंसे शवोंका मिलना कहीं बड़े खतरेका संकेत तो नहीं है। बिहारके बक्सरमें गंगा किनारे मिली लाशोंका हालांकि निस्तारण किया गया वहीं गाजीपुरमें भी गंगा घाटपर ५२ शवोंका मिलना यह जाहिर करता है कि लोग कोरोना संक्रमितोंका अन्तिम संस्कार न कर उसे नदियोंमें बहा रहे हैं। पिछले दो दिनोंमें ११० शव बरामद हो चुके हैं। बलियामें भी गंगाके किनारे १२ से ज्यादा शव मिले हैं। यह आशंका भी जतायी जा रही है कि बक्सरमें मिली लाशें भी उत्तर प्रदेशसे ही बहकर आयी हैं। ऐसा इसलिए कि गंगा गाजीपुर और बलियासे होते हुए बक्सरतक जाती है। गंगामें मिली लाशोंको दफनाया जा रहा है। इसकी जांचके लिए हालांकि कमेटी और निगरानी कमेटी बनायी गयी है लेकिन इसे रोकनेकी जिम्मेदारी क्षेत्रके जन-प्रतिनिधियोंकी है। उनको अपने क्षेत्रोंमें पूरी निगरानी रखनी चाहिए जिससे कोरोना संक्रमितोंका अन्तिम संस्कार सुनिश्चित हो सके और नदियोंकी पवित्रता बनी रहे। हालांकि पानीसे शरीरमें वायरस जानेके कोई सबूत तो मिले नहीं हैं लेकिन विशेषज्ञोंकी माने तो दूसरी गम्भीर बीमारियां हो सकती हैं। गंगा ही नहीं, यमुना नदीमें शवोंको बहते देखा गया जो स्थितिकी गम्भीरताको और बढ़ाता है। कोरोना महामारीको लेकर प्रतिदिन नये पाजिटिव मामले भले ही कम हो रहे हों, परन्तु राज्यके ३८ मेंसे ३३ जिले ऐसे हैं जहां कोरोना संक्रमणका पाजिटिव केस २०से ३० प्रतिशत बना हुआ है। ऐसेमें प्रशासनको आपसी तालमेलके साथ ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे नदियोंमें कोरोना संक्रमितोंके शवको बहानेसे रोका जा सके। इसके लिए सख्त कदम उठानेकी जरूरत है। जन-प्रतिनिधियोंको भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।