सम्पादकीय

राहत और चुनौती


देशके लिए यह राहतकी बात है कि पिछले १२५ दिनोंके अन्दर कोरोनाके नये मामलों और मृतकोंकी संख्यामें उल्लेखनीय गिरावट आयी है और ठीक होनेवालोंकी संख्या भी बढ़ी है। मंगलवारको केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयने पिछले २४ घण्टोंके सन्दर्भमें जो आंकड़े जारी किये हैं उसके अनुसार ३०,०९३ नये मामले सामने आये और ३७४ लोगोंकी मृत्यु हुई तथा ४५,२५४ लोग ठीक हुए। पाजिटिविटी दर पांच प्रतिशतसे नीचे २.०६ प्रतिशतपर आ गयी है। लेकिन चिन्ताकी बात यह है कि कोरोना महामारीकी दूसरी लहरके लिए जिम्मेदार माने जानेवाला डेल्टा वेरिएण्टके मामले अधिक मिल रहे हैं। देशमें प्रतिदिन मिल रहे नये मामलोंमें ८० प्रतिशत डेल्टा वेरिएण्टके हैं। इसीका परिणाम है कि देशके कई हिस्सोंमें दूसरी लहरका प्रकोप बना हुआ है। डेल्टा वेरिएण्ट इसी वायरसके अल्फा वेरिएण्टसे ४० से ६० प्रतिशततक अधिक संक्रामक है। भारतीय सार्स-कोव-२ जिनोमिक्स कंसोर्टियम (इंसाकाग) के सह अध्यक्ष डाक्टर एन.के. अरोड़ाका कहना है कि भारतमें पिछले वर्ष अक्तूबरमें पहली बार महाराष्टï्रमें सामने आये डेल्टा वेरिएण्टको पहले डबल म्यूटेंटके नामसे जाना जाता था जिसे बादमें विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे डेल्टा वेरिएण्ट नाम दिया। धीरे-धीरे यह देशमें चारों तरफ फैल गया और ८० प्रतिशत मामले डेल्टा वेरिएण्टके मिल रहे हैं। ब्रिटेन और अमेरिका सहित ८० देशोंमें यह वेरिएण्ट फैल चुका है। डेल्टा वेरिएण्टका प्रसार गम्भीर चिन्ताका विषय है और इसका सफलतापूर्वक सामना करना बड़ी चुनौती है। तीसरी लहरके खतरेको देखते हुए अब और आक्रामक ढंगसे इसका मुकाबला करना होगा। इसमें टीकाकरण महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है लेकिन इसकी गति कमजोर पड़ गयी है। २१ जूनको टीकाकरणकी नयी नीति बनानेके बाद प्रतिदिन एक करोड़ लोगोंको टीका लगानेका लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन उसका ४० से ५० प्रतिशत लक्ष्य ही रोजाना हासिल हो पा रहा है। छह माहके अभियानके दौरान अबतक ४१ करोड़ लोगोंको ही टीके लगाये जा सके। इसलिए टीकाकरण अभियानको युद्ध स्तरपर चलानेकी जरूरत है। इसके लिए पर्याप्त टीकेकी खुराकोंकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए तभी जनताको सुरक्षा कवच उपलब्ध कराया जा सकेगा।

अस्पतालोंपर सख्ती

सर्वोच्च न्यायालयका जीवनकी कीमतपर शोषणका केन्द्र बने अस्पतालोंको बंद करनेका निर्देश उचित और न्यायसंगत है। शीर्ष न्यायालयने सोमवारको ऐसे अस्पतालोंपर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोरोना महामारी संकटकालके दौरमें बड़े रियल इस्टेट उद्योग बने अस्पतालको मानव जीवनको संकटमें डालकर फलने-फूलनेका अवसर नहीं दे सकते, इन्हें बन्द कर देना ही बेहतर होगा। न्यायालयकी टिप्पणी राज्य सरकारोंके लिए कड़ा सन्देश है जिसपर गम्भीरतासे विचार करते हुए इसे अमलमें लानेकी जरूरत है। अस्पताल कठिनाईके समयमें रोगियोंको राहत प्रदान करनेके लिए होते हैं, न कि खुदको समृद्ध बनानेके लिए। आपदाके समयमें अस्पताल मानवताकी सेवा करनेके बजाय बड़े उद्योग बने हुए हैं। दो-तीन कमरोंके फ्लैटमें चलनेवाले नर्सिंग होम लोगोंके लिए खतरा बने हुए हैं। आवासीय कालोनियोंमें इस तरहके नर्सिंग होमको काम करनेकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसे नर्सिंग होममें सुरक्षा मानकोंकी भी पूरी तरह अनदेखी की जाती है, जो भवन उपनियमोंका उल्लंघन है इसमें सुधार लानेकी जरूरत है। कोविड अस्पतालोंमें हुई अग्निकांडकी घटनाओंसे शासन-प्रशासनने कोई सबक नहीं लिया। ये घटनाएं मानवीय त्रासदी हैं जो हमारी आंखोंके सामने घटित हुईं, फिर भी हम इन अस्पतालोंकी ओरसे आंखें बन्द किये हुए हैं और इन्हें फलने-फूलनेका मौका दे रहे हैं जिससे इस तरहके निजी अस्पतालोंकी संख्या बढ़ती जा रही है जिनका मरीज और उनके परिजनोंके साथ अस्पतालके भुगतानके लिए किये जा रहे अमानवीय व्यवहार शर्मको भी शर्मसार करनेवाले हैं। यह राज्य सरकारोंका दायित्व है कि ऐसे अस्पतालोंकी निगरानी करें और मरीजोंके उत्पीडऩके विरुद्ध कड़े कदम उठायें।