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राहुल गांधी ने संकेतों में किया इशारा, नहीं बनेंगे कांग्रेस अध्यक्ष; कहा- मेरा दिमाग स्पष्ट है


कन्याकुमारी : भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सस्पेंस चाहे खत्म न किया हो, मगर यह कहते हुए ‘मैंने निर्णय ले लिया है, मेरे मन-मस्तिक में मैं बहुत स्पष्ट हूं, पार्टी के हो रहे चुनाव में यदि मैं खड़ा नहीं हुआ तब जवाब दूंगा’ लगभग साफ संकेत दे दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए वे तैयार नहीं हैं। राहुल के इन इशारों से करीब-करीब यह तस्वीर भी साफ होती दिख रही है कि अध्यक्ष के लिए उनसे इतर कांग्रेस को नए वैकल्पिक चेहरे की तलाश करनी पड़ेगी।

‘भाजपा-संघ परिवार के खिलाफ जारी रहेगी राजनीतिक लड़ाई’

अध्यक्ष की कुर्सी से दूरी बनाने के इन संकेतों के बीच भी राहुल गांधी ने भाजपा-संघ परिवार के खिलाफ अपनी वैचारिक राजनीतिक लड़ाई में किसी तरह का समझौता नहीं करने की प्रतिबद्धता दोहरायी और पलटवार करते हुए कहा कि इनके नफरत और भय से देश को हुए नुकसान को दुरूस्त करने के लिए वे पदयात्रा कर रहे हैं।

 

‘पार्टी के चुनाव तक इंतजार करें’

कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3570 किमी की अपनी पदयात्रा के दूसरे दिन नागरकोइल से आगे बढ़ते हुए रास्ते में एक प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने अध्यक्ष बनने से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जब पार्टी के चुनाव होंगे तो यह बहुत स्पष्ट हो जाएगा कि मैं अध्यक्ष बनूंगा या नहीं और तब तक आप इंतजार कीजिए। अगर मैं कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में खड़ा नहीं होता तो आप मुझसे पूछ सकते हैं और तब मैं जवाब दूंगा कि मैंने क्यों नहीं किया।

‘मैंने अपना फैसला कर लिया है’

पार्टी की कमान थामने की दुविधा पर राहुल ने कहा ‘मेरा दिमाग स्पष्ट है और मैंने अपना फैसला कर लिया है, मैं बहुत स्पष्ट हूं और जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होगा तब मैं जवाब दूंगा।’

 

‘मैं नहीं कर रहा यात्रा की अगुआई’

भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व करने को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए भी राहुल ने कुछ यही संकेत देने की कोशिश की कि यात्रा किसी तरह पार्टी का नेतृत्व थामने से नहीं जुड़ी है। वे यात्रा की अगुआई नहीं कर रहे और इसमें कुछ भी विरोधाभासी नहीं है। कांग्रेस पार्टी के सदस्य के तौर पर एक सहभागी के रूप में वह यात्रा कर रहे हैं।

17 अक्टूबर को होगा कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा हो चुकी है ओर 24 सितंबर से नामांकन शुरू होंगे और 17 अक्टूबर को चुनाव होने हैं। कांग्रेस का संपूर्ण संगठन, तमाम नेता-कार्यकर्ता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए जोर लगा रहे हैं लेकिन पदयात्रा के दूसरे दिन उनके संकेतों से साफ है कि चौतरफा दबाव के बावजूद वे अपने पुराने रूख पर अडि़ग हैं।

 

राहुल ने कार्यसमिति का अध्यक्ष बने रहने का प्रस्ताव ठुकराया

2019 लोकसभा चुनाव में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी ने कार्यसमिति के अध्यक्ष बने रहने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। साथ ही गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की वकालत की थी। हालांकि पार्टी की पिछले कुछ अर्से से गहराई चुनौतियों को देखते हुए नेतृत्व संभालने को लेकर वे रणनीतिक सस्पेंस बनाए हुए थे। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का ऐलान होने के बाद पहली बार नागरकोइल में संकेतों के जरिए ही सही मगर इस सस्पेंस की धूल चाहे लगभग साफ कर दी।

‘नफरत और भय के सहारे किया जा रहा धार्मिक ध्रुवीकरण’

भाजपा-संघ के पदयात्रा को परिवार बचाओ यात्रा बताने पर पलटवार करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यह उनकी राय है मगर सच्चाई यही है कि भारत के संस्थागत ढांचों पर इन्होंने कब्जा कर लिया है। देश पर एक ही विचारधारा थोपने की कोशिश की जा रही है जिसका कोई विजन नहीं है। यात्रा का मकसद लोगों से जुड़ना, उनकी बातें सुनना और उन्हें समझाना है कि किस तरह नफरत और भय के सहारे देश का धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है।

 

‘देश में दो विचारधाराएं’

भाजपा-संघ से लड़ने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए उन्होंने कहा कि देश में दो विचारधाराएं हैं जिनके बीच एक हजार साल से लड़ाई चल रही है, यह लड़ाई जारी रहेगी, हम अपनी भूमिका निभाते रहेंगे।

पदयात्रा को सार्थक मान रहे राहुल

पदयात्रा में शामिल होने को लेकर राहुल ने कहा कि कांग्रेस के वैचारिक आदर्शों और निजी तौर पर भी इसे वे सार्थक मान रहे। भले ही आज की राजनीति में यह फैशन नहीं है। लेकिन उनका चीजों को देखने का अपना एक अलग नजरिया है और उम्मीद है कि इस यात्रा से हमारे खूबसूरत देश के बारे में और कुछ खुद के बारे में समझ बढ़ेगी ओर चार महीने बाद वे थोड़ा और समझदार हो जाएंगे।

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‘विपक्ष को एकजुट करने पर चर्चा जारी’

यात्रा विपक्ष को कैसे एकजुट करेगी, इस पर राहुल ने कहा कि बेशक विपक्ष को एक साथ लाने में यह मददगार होगी, लेकिन विपक्षी एकता का मसला एक अलग कवायद है। साथ आना पूरे विपक्ष की जिम्मेदारी है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है, इसमें हर पार्टी की भूमिका है और इस पर चर्चा जारी है।

‘दबाव में लोग थाम रहे भाजपा का दामन’

कांग्रेस में नेताओं के असंतोष और पार्टी छोड़ने के सवाल पर राहुल ने कहा कि इसके लिए भाजपा के पास ज्यादा साधन है ओर वे उनका विरोध करने वालों के खिलाफ दबाव डालते हैं। सीबीआइ, ईडी, इनकम टैक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। हम राजनीतिक राजनीतिक दलों से लड़ने के आदी हैं। लेकिन अब लड़ाई पार्टियों के बीच नहीं है बल्कि राष्ट्र की संपूर्ण सत्ता और विपक्ष की संरचना के बीच है। यह आसान लड़ाई नहीं है और बहुत से लोग इसमें लड़ना नहीं चाहते ओर इसलिए दबाव में चुपचाप भाजपा का हाथ थाम लेने में ही अपनी भलाई देख रहे हैं।

 

‘ध्यान हटाने के लिए बदला जा रहा नाम’

राजपथ के नए नामकरण के साथ भाजपा सरकार के नाम बदलने की नीति पर राहुल गांधी ने कहा कि जो भविष्य में कुछ ऑफर नहीं कर सकता और जिसका विजन संपूर्ण दिवालियापन का शिकार हो, वह ध्यान हटाने के लिए नाम बदलने की फितरत में जुटा रहता है।