सम्पादकीय

लाईलाज बनते भारतमें बंगलादेशी घुसपैठिये


आनंद शंकर मिश्रे

भा रतमें अवैध रूपसे रह रहे बंगलादेशियोंका मामला आज कोई नयी बात नही है। यह मुद्दा किसी न किसी बहाने आये दिन चर्चामें रहता है। वर्तमान समयमें बंगाल, असमके निर्वाचनमें ये अवैध बंगलादेशी मतदाता बनकर अहम भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। बंगालमें चुनावमें बंगलादेशी निर्णायककी भूमिकाका निर्वाह कर रहे हैं। केन्द्रकी पूर्व सरकारने संसदमें गृहमंत्रीके हवालेसे माननीय इन्द्रजीत गुप्त ने बताया था कि दो दशक पूर्वकी गणनामें भारतमें एक करोड़से ज्यादा बंगलादेशी अवैध रूपसे रह रहे हैं। असम व पश्चिम बंगालमें इनकी सर्वाधिक जनसंख्या है, इसके अतिरिक्त त्रिपुरा, नागालैण्ड में भी है। वर्तमान समयमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, दिल्ली में भी ये फैले हुये हैं। एनडीए सरकारमें तत्कालीन उपप्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणीने मुख्य सचिवकी बैठकमें उस समय यह बताया था कि देशमें १.५ करोड़ बंगलादेशी अवैध रूपसे रह रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी आईएमडीटी एक्टको खारिज कर दिया, इसके बाद तत्कालीन भारत सरकारकी किरकिरी हुई थी।

गौरतलब है कि भारतके तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर.सी.लोहाती की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खण्डपीठने असमगण परिषदके पूर्व सांसद सर्वानन्द सोनेवाल की जनहित याचिकापर अपने फैसलेमें असम राज्यमें गैरकानूनी तरीकेसे पहुंचने वाले बंगलादेशी नागरिकोंकी पहचानके लिये लागू विवादस्पद कानून (आईएमडीटी) इल्लीगल माईगे्रण्टस डिटरमिनेशन थू्र ट्राइब्यूनल आईएमडीटी को निरस्त करते हुये कहा था कि इसके तहत गठित सभी न्यायाधिकरण तत्काल प्रभाव से काम नहीं करेंगे। पूर्व सांसद सोनेवालने अपने याचिकामें कहा गया था कि असममें गैर कानूनी तरीकेसे रहने वाले बंगलादेशी नागरिकोंकी बढ़ती संख्याने राज्यमें क्षेत्रीय संतुलनको बिगाड़ कर रख दिया है और राजनीतिकदल इन्हें वोट बैंकके रूपमें इस्तेमाल कर रहे हैं। ध्यान देनेकी बात है कि अवैध बंगलादेशियोंकी पहचानके इरादेसे यह कानून कांगे्रस पार्टीके शासनकालमें १९८३ ई. में बनाया गया था जिसका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। पर असल अब तककी सभी सरकारें बंगलादेशीय अवैध नागरिकोंको देशसे बाहर निकालनेका जोखिम भरा काम नहीं करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस कानूनको समाप्त किये जानेपर विपक्ष एवं देश मूर्घन्यने कड़ी आलोचना की थी। वामपंथी दलोंने खुल विरोध किया था।

वास्तवमें भारतमें अवैध रूपसे रह रहे बंगलादेशियोंकी समस्या गम्भीर है और इससे सबसे ज्यादा पूर्वोत्तर राज्योंकी सुरक्षाकी गम्भीर खतरा पैदा हुआ है। इस खतरेको भांपकर ही कांगे्रसने १९८३ में तत्कालीन कांगे्रस सरकारने कानून बनाया था जिसमें अवैध प्रवासीकी नागरिकता सिद्ध करनेका दायित्व शिकायतकर्तापर थोपा गया था। आवश्यकता है सभी राजनीतिक दल आम सहमति बनाकर बंगलादेशियोंको पुन: बंगलादेश भेजनेपर विचार करना चाहिए आज हालत यह है कि बंगलादेशियोंकी लगातार घुसपैठसे बंगाल, असम, बिहार और अब उत्तर प्रदेशमें कई जिलोंमें समुदायोंको बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक बन जाने, सांस्कृतिक विविधता और विशेषतापर हो रहे हमलेके साथ आन्तरिक सुरक्षा एवं अपराधके ग्राफमें बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके अलावा इन घुसपैठियोंकी सम्बन्धित क्षेत्रके विभिन्न चुनावोंमें निर्णायक भूमिका होने लगी है क्योंकि इन लोगोंको सरकार द्वारा राशनकार्डके साथ-साथ मतदाता पहचान पत्र भी जारी कर दिये गये हैं। बंगालमें तो सूत्रोंने प्रमाणिकताके साथ स्पष्टï किये है कि राज्यकी सरकारने वोट बैंकके चलते अवैध बंगलादेशीको आधार कार्ड भी बनवा रखा है ताकि वर्तमान चल रहे निर्वाचनमें वोट बैंकका लाभ वर्तमान सरकार उठा सके।

आज हालात यह बन गये गये हैं कि भारतीय एवं बंगलादेशीय की शिनाख्त कैसेकी जाय। बंगलादेशियोंकी पहचान एक गम्भीर समस्या बन गयी है। घुसपैठिये स्थानीय संस्कृति अपनाकर भ्रम पैदा कर रहे हैं। बिहारके पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसादने बंगलादेशियोंको बिहारसे बाहर करनेकी जहमत उठायी थी लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो सके। जिन्हें बिहार प्रान्तसे बाहर किया गया वे समूहोंमें या तो पुन: वापस लौटे या फिर उनका समूह सटे प्रान्तोंमें शरणार्थी बन बैठा। दशकों पूर्व भारतमें प्रवेशकर गये अवैध बंगलादेशियों समुदायकी भारतमें तीसरी-चौथी पीढ़ी तैयार हो गयी है। बच्चे अब जवान हो गये हैं, जवान अब बूढ़े हो गये उन्हें एक खासा अनुभव हो चुका है। लड़के व जवान स्थानीय राजनेताओंसे पहले जुड़े और उनके रहमोकरमपर जीवन-यापन शुरू किया लेकिन आज एकीकरणके सूत्रमें बंधे बंगलादेशीय स्थानीय, क्षेत्रीय एवं प्रादेशिक राजनीति, निर्वाचनको प्रभावित ही नही कर रहे हैं बल्कि निर्णायक की भूमिकाका निर्वाह कर रहे हैं। बंगाल एवं असमके चल रहे निर्वाचनमें कई रणनीति दल इस बंगलादेशियोंके बूते ही सत्ता पानेका सपना देख रही हैं।

यह तो स्पष्टï हो चुका है कि सरकारोंका ईरादा इन बंगलादेशी घुसपैठियोंको बाईज्जत देशमें बनाये रखनेका है। राज्यकी सरकारोंके सिर ठीकरा फोड़कर केन्द्र सरकार अपना पल्ला झाड़ती रही है। सरकारका एक हास्यपाद कथन यह भी है कि सरकार इस घुसपैठियोंको पासपोर्ट, वीजा, परमीशन आदि नहीं देती ऐसेमें इस घुसपैठियोंकी गणना कर पाना सम्भव नहीं है। हाल में ही माननीय प्रधान मंत्री मोदी जी की बंगलादेशकी यात्रा सम्पन्न हुई। बंगलादेशकी प्रधान मंत्री शेख हसीना एवं श्री मोदी जी की कई महत्वपूर्ण बिन्दुओंपर वार्ता भी हुई लेकिन भारतमें बंगलादेशीय घुसपैठियोंका मामला पूरी तरह अछूता रहा। सभी सरकारके बयान यही साबित करते हैं कि सरकार इस मुद्देपर कभी भी गम्भीर नहीं रही। काररवाई करनी तो दूर बंगलादेश सरकारको अपने विरोध, पीड़ा एवं इस मुद्देसे अवगत करानेकी जहमत भी किसी ने नहीं उठायी। अब सवाल उठता है कि इन घुसपैठियोंको रोकने एवं भारतसे वापस भेजनेके लिये क्या किया जाय? बंगलादेशकी आर्थिक हालत पहलेसे बहुत जर्जर है। ऐसेमें भारतमें रह रहे लगभग आज डेढ़ करोड़ घुसपैठियोंको अपने यहां कैसे और क्यों पुनर्वासित करना चाहेगा?