सम्पादकीय

विश्व शांतिमें रक्षकोंकी भूमिका


योगेश कुमार गोयल 

संयुक्त राष्ट्र अधिकार पत्रपर ५० देशोंके हस्ताक्षर होनेके साथ ही संयुक्त राष्ट्रकी स्थापना हुई थी, जो एक ऐसा अंतराष्ट्रीय संघटन है, जो अपनी स्थापनाके बादसे ही विश्व शांतिके साथ मानवाधिकार, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनोंको सुविधाजनक बनानेके लिए कार्यरत है। इसकी स्थापना द्वितीय विश्वयुद्धके विजेता देशोंने मिलकर इस उद्देश्यसे की थी ताकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय संघर्षके मामलोंमें हस्तक्षेप करनेसे भविष्यमें पुन: विश्वयुद्ध जैसे हालात न उभरने पायें। इन देशोंमें अमेरिका, यूके, फ्रांस, रूस इत्यादि दुनियाके शक्तिशाली देश शामिल थे। संयुक्त राष्ट्रके संस्थापकोंको उम्मीद थी कि वह इसके जरिये युद्धको सदाके लिए रोक पायंगे किन्तु १९४५ से १९९१ के शीत युद्धके समय विश्वके विरोधी भागोंमें विभाजित होनेके कारण शांति रक्षा संघको बनाये रखना बहुत कठिन हो गया था। २९ मई १९४८ को संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहला संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन स्थापित किया गया था। उस समय इसरायल तथा अरब देशोंके बीच फैली अशांतिको दूर करनेके लिए वहां यूएन द्वारा शांतिरक्षक सैनिकोंकी तैनाती की गयी थी।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप तथा मध्य पूर्वमें ७१ शांति अभियानोंकी स्थापना की गयी। दुनियाभरमें शांतिबहाल करनेमें संयुक्त राष्ट्रके शांतिरक्षकोंकी अहम भूमिका रहती है, जो कठिनसे कठिन परिस्थितियोंमें भी अपनी जान दांवपर लगाकर कार्य करते रहे हैं और फिलहाल विश्वभरमें एक लाखसे भी अधिक पुरुष एवं महिला बतौर शांति रक्षक यूएनके शांति अभियानोंमें संलग्न हैं, जिनमें विभिन्न देशोंमें करीब ९६ हजार सैनिकों और पुलिसबलके अलावा लगभग १५ हजार आम नागरिक और हजारों स्वयंसेवक यूएनके शांति रक्षा मिशनमें शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्रके शांति मिशनमें सबसे ज्यादा संख्या इथोपिया और बंगलादेशके शांति रक्षकोंकी है और इन दोनों देशोंके बाद इसमें सर्वाधिक योगदान देनेवाले देशोंमें भारत है। फिलहाल सात हजारसे भी अधिक भारतीय सैन्य और पुलिस जवान अफगानिस्तान, कांगो, हैती, लेबनान, लाइबेरिया, मध्य पूर्व, साइप्रस, दक्षिण सूडान, पश्चिम एशिया और पश्चिम सहारामें संयुक्त राष्ट्रके शांति मिशनोंमें शांति रक्षाके लिए तैनात हैं।

जहांतक यूएनके शांति मिशनोंमें भारतकी भूमिकाकी बात है तो सबसे पहले नवम्बर १९५० से जुलाई १९५४ तक चले कोरियाई युद्धके दौरान भारतकी ओरसे इस मिशनमें १७ अधिकारी, ९ जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) तथा ३०० सैनिक तैनात किये गये थे। भारत हथियारोंसे लैस एक दलको १९५६ से १९६७ के बीच संयुक्त राष्ट्रकी आपातकालीन सेनामें भेजनेवाला देश भी बना था। उस अवधिके दौरान भारतकी ओरसे ३९३ अधिकारी, ४७० जेसीओ तथा १२३८३ जवान संयुक्त राष्ट्रके मिशनमें शामिल हुए थे। १९६० से १९६४ तक चले यूएसओसी कांगो मिशनमें भारतीय वायुसेनाके छह कैनबरा बॉम्बर एयरक्राफ्ट भी तैनात किये गये थे, जिनमें ४६७ अधिकारी, ४०१ जेसीओ तथा ११३५४ जवानोंने हिस्सा लिया था और उस मिशनमें ३९ सैनिकोंने अपने प्राण भी गंवाये थे। १९९२ से १९९३ तक कम्बोडियामें भारतने सीजफायरकी निगरानी की थी तथा चुनावके दौरान भी कम्बोडियाकी सहायता की थी। उस दौरान भारतकी ओरसे संयुक्त राष्ट्रके इस मिशनमें १३७३ सैनिकोंकी तैनाती की गयी थी।

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष २००२ में प्रस्ताव संख्या एईएस ५७/१२९ के जरिये आम नागरिकोंकी सुरक्षाके लिए पहली बार शांति रक्षा मिशनको अधिकार दिये गये और २९ मईको शांति रक्षक दिवसके रूपमें नामित किया गया, तभीसे प्रतिवर्ष इसी दिनको संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवसके रूपमें मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्रकी अपनी कोई स्वतंत्र सेना नहीं होती और शांति रक्षाका प्रत्येक कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है। यूएनके शांति रक्षा कार्योंमें भाग लेना वैकल्पिक होता है और कनाडा तथा पुर्तगाल ही विश्वमें अबतक सिर्फ दो ऐसे देश हैं, जिन्होंने प्रत्येक शांति रक्षा अभियानमें हिस्सा लिया है। शांति रक्षक दल संयुक्त राष्ट्रको उसके सदस्य देशों द्वारा प्रदान किये जाते हैं, जो प्राय: ऐसे क्षेत्रोंमें भेजे जाते हैं, जहां हिंसा कुछ समय पहलेसे बंद है ताकि वहां शांति संघकी शर्तोंको लागू रखते हुए हिंसाको रोककर रखा जा सके।

यूएनका शांति रक्षा मिशन इस साल अपनी ७३वीं सालगिरह मना रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेसका कहना है कि दुनियाभरमें हिंसक संघर्षोंमें फंसे लाखों लोगोंके लिए शांति रक्षा एक आवश्यकता एवं आशा है तथा शांति रक्षाको और ज्यादा प्रभावी बनानेके लिए जरूरत है कि हम सब मिलकर इसके लिए काम करें ताकि लोगोंको सुरक्षा दी जा सके और शांतिको बढ़ावा मिल सके। उनका कहना है कि वैश्विक शांति और सुरक्षामें संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा एक अहम निवेश है लेकिन इसके लिए मजबूत अंतरराष्ट्रीय संकल्प चाहिए। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अब एक्शन फॉर पीस कीपिंग पहलकी शुरुआत की गयी है, जिसका मूल उद्देश्य यूएन मिशनोंको मजबूत, सुरक्षित और भविष्यके लिए उपयुक्त बनाना है। यूएनके पिछले ७३ वर्षोंके शांति रक्षक अभियानोंमें जहां अबतक दुनियाभरके ३८०० से भी ज्यादा शांति रक्षकोंने अपने प्राणोंकी आहूति दी, वहीं इनमें भारतके शहीद हुए शांति रक्षकोंकी संख्या करीब १७० है, जो किसी भी अन्य देशके मुकाबले सर्वाधिक है। वर्ष २०१७ में संयुक्त राष्ट्रके किसी भी शांतिरक्षक अभियानमें भारतके किसी भी शांतिरक्षकको अपने प्राणोंकी आहूति नहीं देनी पड़ी थी।

अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस वैश्विक शांतिके लिए अपने प्राणोंकी आहूति देनेवाले ऐसे संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकोंकी स्मृतिके सम्मानमें मनाया जाता है, जिन्होंने शांति स्थापनामें अपने प्राणोंका बलिदान दे दिया। इस दिन संयुक्त राष्ट्रके शांति प्रबंधन कार्योंमें अपने उच्च स्तरकी व्यावसायिकता, समर्पण और साहसका प्रदर्शन करते अपनी जान गंवानेवाले शांतिरक्षकोंको श्रद्धांजलि दी जाती है। शांति रक्षकोंको मरणोपरांत डैग हैमारस्जोल्ड मैडल प्रदान किया जाता है। यह पदक कर्तव्य निर्वहनके दौरान अदम्य साहस और बलिदानके लिए दिया जाता है। इस सम्मानकी स्थापना वर्ष २००० में संयुक्त राष्ट्रके दूसरे महासचिव डैग हैमारस्जोल्डकी स्मृतिमें की गयी थी, जिनकी १९६१ में एक विमान हादसेमें मौत हो गयी थी। शांतिरक्षक अत्यधिक जोखिम उठाते हुए प्रतिदिन विभिन्न देशोंमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चोंकी हिंसासे रक्षा करते हैं।