सम्पादकीय

संक्रमणकी रफ्तार रोकनेके लिए तालाबंदी ही विकल्प


 रवि शंकर

देशमें कोरोना वायरसकी दूसरी लहरसे हाहाकार मचा हुआ है। रोजाना संक्रमणके लाखों नये मामले सामने आ रहे हैं। ऐसेमें देशमें फिरसे संपूर्ण लाकडाउनकी मांगपर बहस छिड़ गयी है। यह ठीक है अप्रैल माहमें कोरोना संक्रमणके बेलगाम होनेके बाद कई राज्योंने अपने यहां लाकडाउन लगाया है। लेकिन केंद्र सरकार इस बार देशव्यापी लॉकडाउन लगानेसे बच रही है। इस बार यह जिम्मा केंद्र सरकारने राज्योंपर छोड़ दिया है। इसकी कुछ राजनीतिक वजहें हो सकती हैं, लेकिन मुख्य वजहें अर्थव्यवस्थासे जुड़ी हैं। गौरतलब है कि पिछले साल मार्चमें जब केंद्र सरकारने लाकडाउन लगाया था तो इसका अर्थव्यवस्थाको भारी नुकसान हुआ था। इस भयावह अनुभवको देखते हुए ही शायद केंद्र सरकार एक बार फिर राष्ट्रव्यापी लाकडाउन लगानेसे बच रही है और कोशिश यह है कि जिन राज्योंमें कोरोनाके ज्यादा मामले आ रहे हैं, वहां राज्य सरकारें अपने स्तरपर सीमित लॉकडाउन लगायें। भारतमें दससे अधिक राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और शहरोंमें या तो क्षेत्रीय लाकडाउन लागू हैं या फिर रातका कफ्र्यू लगाया गया है। हालांकि भारतमें कोरोनाके बढ़ते मामलेंको देखते हुए देशके कई वैज्ञानिक, डाक्टर, एक्सपर्ट यहांतक कि सरकारकी खुदकी कोरोना टास्क फोर्सने भी देशमें १५ दिनोंके सम्पूर्ण लाकडाउन लगानेको कह रहे हैं तो फिर सरकार ऐसा कर क्यों नहीं रही है। यहांतक कि विपक्षके नेता राहुल गांधीने इसकी वकालत करते हुए कहा कि कोरोनाके प्रसारको रोकनेका एकमात्र तरीका पूर्ण लॉकडाउन है। भारतकी शीर्ष अदालतने भी मोदी सरकारको दूसरी लहरकी रोकथामके लिए लॉकडाउन लगानेकी सलाह दी थी। सुप्रीम कोर्टने सार्वजनिक सभाओं और संक्रमण फैलानेवाले सुपर स्प्रेडर कार्यक्रमोंपर प्रतिबंध लगानेका भी मशविरा दिया था। उन्हें लग रहा है कि भारतकी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं तहस-नहसके कगारपर पहुंच चुकी हैं और लाकडाउन लगाकर ही इसे दुरुस्त किया जा सकता है। लाकडाउन लगानेकी आवाज केवल देशके भीतरसे ही नहीं, बल्कि अमेरिका सहित कई अन्य देशोंसे भी उठी है। अमेरिकाके टॉप हेल्थ एक्सपर्ट और ह्वïाइट हाउसके मुख्य चिकित्सा सलाहकार डा. एंथोनी फॉसीने भी भारतमें कोरोना वायरसके तेजीसे बढ़ते मामलोंको लेकर चिंता जतायी है। डा. फॉसीने कहा कि कोरोनाके संक्रमण चेनको तोडऩेके लिए कुछ हफ्तोंके लिए सख्त लाकडाउनकी जरूरत है। इससे कोरोनाके प्रसारपर बहुत हदतक नियंत्रण पाया जा सकता है। फॉसीने कहा कि भारतमें कोरोना संक्रमण जारी रहनेसे लोग अस्पतालोंमें आक्सीजन और बेडके लिए परेशान हैं। दवाओंकी कालाबाजारी हो रही है। लोग पूरी तरहसे बेबस नजर आ रहे हैं। कोरोनाकी वजहसे भारत इस समय कठिन दौरसे गुजर रहा है। ऐसेमें तत्काल रूपसे पूरे भारतमें कुछ समयके लिए लाकडाउन लगा देनी चाहिए। इतना ही नहीं, डा. फॉसीने टीकाकरण तेज करनेका भी सुझाव दिया। कहा कि कुछ हफ्ते पहले यदि टीकाकरण अभियानको तेज किया जाता तो काफी हदतक संक्रमणपर अंकुश लगाया जा सकता था। उन्होंने कहा कि भारतमें लोगोंको वैक्सीन लगानेकी रफ्तार बहुत कम है जिसे जल्द बढ़ाना होगा। क्योंकि कोरोना वायरससे निबटनेमें टीकाकरणकी अहम भूमिका है। यदि १.४ अरबकी आबादीवाले भारतने अपनी जनसंख्याके केवल दो प्रतिशत लोगोंका पूर्ण टीकाकरण किया है तो अभी लंबी दूरी तय करनी है। भारतमें मेडिकल आक्सीजनके लिए मारामारी है। इसके लिए कमेटी गठित करनेकी जरूरत है। जिससे आक्सीजन और दवाओंकी आपूर्ति आसानीसे हो।

भारत सरकारपर सबसे बड़ा दबाव उन लाखों डाक्टरों और फ्रंटलाइन स्टाफका है जो देशके हजारों अस्पतालोंमें दिन-रात काम कर रहे हैं लेकिन अपनी आंखोंके सामने आक्सीजनकी कमीके कारण कई मरीजोंको दम तोड़ते देख रहे हैं। अस्पतालोंमें आईसीयू बेड, वेंटिलेटर और दूसरे स्वास्थ्य यंत्रोंकी सख्त कमीको देखते हुए वह चाहते हैं कि केंद्र सरकार कुछ हफ्तोंके लिए देशभरमें लाकडाउन लगाये, ताकि संक्रमणके फैलावको रोका जा सके और उन्हें कुछ राहत मिले। एम्सके निदेशक डा. रणदीप गुलेरियाने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि देशमें पिछले सालकी तरह इस बार भी पूर्ण लाकडाउन लगानेकी जरूरत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साल २४ मार्चकी शामको प्रधान मंत्रीने लाकडाउन लगाते समय कहा था कि जान है तो जहान है। लेकिन इस बार जबकि दूसरी लहर जानलेवा और भीषण है, प्रधान मंत्री लाकडाउनसे क्यों कतरा रहे हैं।

यह सत्य है कि पिछले साल देशभरमें अचानकसे लगाये गये लाकडाउनसे भारतकी अर्थव्यवस्था मंदीका शिकार हो गयी थी। एक-तिमाहीमें विकास दर २३.१९ प्रतिशत पहुंच गयी थी, ऐसी भयंकर गिरावट भारतकी अर्थव्यवस्थामें पहले कभी नहीं देखी गयी थी। उस समय प्रधान मंत्रीको चौतरफा आलोचनाका सामना करना पड़ा था। शायद इसी कारण वह एक और राष्ट्रव्यापी लाकडाउनके पक्षमें नजर नहीं आते हैं। लेकिन दूसरी तरफ देशभरमें डाक्टरों और अस्पतालोंमें काम करनेवाले स्वास्थ्य कर्मचारियोंकी बुरी हालत देखकर केंद्र सरकारको यह भी चिंता है कि कहीं डाक्टर और नर्स मानसिक और शारीरिक रूपसे जवाब न दे दें। सरकारी हलकोंमें यह एक बड़ी चिंताका विषय है। २०१४ में नरेंद्र मोदीके प्रधान मंत्री बननेके बाद देशका यह सबसे बड़ा मानवीय संकट कहा जा रहा है जिसमें दो लाखसे ज्यादा लोगोंकी मौत हो चुकी है। बहुतसे वैज्ञानिकोंका कहना है कि भारतमें दूसरी लहरका कहर ज्यादा इसलिए भी है क्योंकि कोरोना वायरसका नया वैरियंट ज्यादा खतरनाक है। फिर भी बीते महीने यानी २० अप्रैलको देशको संबोधित करते हुए मोदीने राज्योंसे लाकडाउनको अंतिम विकल्पके रूपमें लागू करनेके लिए कहा। पीएमने कहा कि इस दौरान आर्थिक गतिविधियां और लोगोंकी आजीविका कमसे कम प्रभावित हो। उन्होंने कहा था कि हमें देशको लाकडाउनसे बचाना है। संक्रमण रोकनेके लिए राज्योंको माइक्रो-कंटेनमेंट जोनपर फोकस करना चाहिए। हालांकि पीएमका यह बयान उस समयका है जब कोरोना संक्रमणमें तेजी आनी शुरू हुई थी और स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई नहीं थी। लेकिन अब स्थितियां दूसरी हैं। यही वजह है कि कोरोना संक्रमणकी चेन तोडऩेके लिए पूरे देशमें एक साथ पूर्ण लाकडाउन लगानेकी बहसने जोर पकड़ी है। बहुत सारे लोगोंका मानना है कि केंद्र सरकारको एक बार फिर पूरे देशमें तालाबंदी करनी चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार पिछले सालकी तरह इस बार पूर्ण लाकडाउन लगानेके पक्षमें नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि कोरोनाकी दूसरी लहरसे लड़ाईका आखिरी अस्त्र है लाकडाउन और देशके कई प्रदेशोंमें इसी हथियारके जरिये कोरोनाके बेकाबू रफ्तारपर ब्रेक लगानेकी कोशिश की जा रही है। लेकिन भारत सरकारकी दुविधा यह है कि पहले जान बचायें या अर्थव्यवस्था, लाकडाउनसे अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है जिसके कारण और भी जाने जा सकती हैं और बेरोजगारी चरमपर पहुंच सकती है। भले देशमें टीकाकरणका कार्यक्रम चल तो रहा है लेकिन देशमें सभी लोगोंको टीका लगानेका काम न तो आसान है और न ही जल्दीसे उसे पूरा किया जा सकता है। महामारीकी मौजूदा स्थितिको देखते हुए लोगोंका जीवन बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए। यह ठीक है कि पिछले वर्ष लगाये गये कोरोना लाकडाउनके फैसलेकी कड़ी आलोचना हुई थी। लेकिन इस बार हालात ज्यादा गंभीर है। इसलिए सरकारको एक बार फिरसे लाकडाउन लगानेपर विचार करना चाहिए। ऐसेमें जनताकी जान बचानेका एकमात्र रास्ता लाकडाउन ही बचा है। वर्तमान परिस्थितियोंको देखते हुए कहा जा सकता है कि लॉकडाउन समयकी मांग है।