सम्पादकीय

ध्यानकी चेतना 


श्रीश्री रविशंकर

व्याकुलतासे रहित मन ध्यान है। वर्तमान क्षणमें स्थित मन ध्यान है। दुविधा और प्रत्याशा रहित मन ध्यान है। वापस स्रोततक पहुंच चुका मन ध्यान है। विश्राम तभी संभव है, जब आप अन्य सभी काम छोड़ दें। जब आप इधर-उधर घूमना, काम करना, सोचना, बात करना, देखना, सुनना, सूंघना, चखना, यह सब काम बंद कर देते हैं तो आपको विश्राम मिलता है। जब सभी ऐच्छिक क्रियाओंको रोकते हैं, तब आप विश्राम कर पाते हैं या नींद ले पाते हैं। नींदमें, केवल अनेच्छिक क्रियाएं जैसे श्वास, हृदयगति, पाचन, रक्त संचार आदि चलती रहती है। परंतु यह संपूर्ण विश्राम नहीं  है। जब मन स्थिर हो जाता, केवल तभी पूर्ण विश्राम या ध्यान हो पाता है। ध्यानका अर्थ कुछ सोचनेका प्रयास करना नहीं। ध्यान गहराईसे विश्राम करना है। यदि आप समस्यापर ध्यान दे रहे हैं तो आप विश्राम नहीं कर रहे हैं। हम क्या करें, हम बस जाने दें, यह लगभग नींदकी तरह है परन्तु नींद नहीं। सुदर्शन क्रियाके बाद यही होता है, जब आप लेटे होते हैं तो मनमें क्या चल रहा होता है। कुछ भी नहीं। यह खाली होता है। यह ध्यान है या फिर जब आप सचमें खुश होते हैं, जब आप विश्राम कर रहे होते हैं, क्या अवस्था होती है। वही ध्यानावस्था है या जब आप गहरे प्रेममें होते हैं और आप प्रेममें डूबे हुए होते हैं वह ध्यान है। ध्यान अतीतके क्रोध, अतीतकी घटनाओं और भविष्यकी योजनाओंको छोड़ देता है। योजना बनाना आपको अपने भीतर गहराईमें डूबनेसे रोकता है। ध्यान इस क्षणको स्वीकार करना और क्षणको गहराईके साथ पूर्णत: जीना है। बस यह ज्ञान और निरंतर कुछ दिनोंतक ध्यानका अभ्यास हमारे जीवनके स्वरूपको बदल सकता है। जब आप सब कुछ जाने देते हैं और केंद्रित होकर स्थिर हो जाते हैं तो उस समय जिस आनंदकी अनुभूति होती है, वह आपके भीतरकी गहराईसे उठता है यही ध्यान कहलाता है। वास्तवमें ध्यान कोई क्रिया नहीं, यह कुछ भी न करनेकी कला है। ध्यानमें विश्रांति आपके द्वारा ली गयी गहनतम निद्रासे भी गहन होती है, क्योंकि ध्यानसे आप सभी कामनाओंसे परे चले जाते हैं। यह दिमागको इतनी शांति प्रदान करता है और यह सारे शरीर और मन रूपी ढांचेकी मरम्मतके समान है। चेतनाकी तीन अवस्थाओं जाग्रत, सुप्त और स्वप्नावस्थाकी सर्वश्रेष्ठ तुलना प्रकृतिसे ही हो सकती है। प्रकृति सोती, जागती और स्वप्न लेती है। जागना और सोना सूर्योदय और सूर्यास्तके सामान है, स्वप्न इनके बीच कि गोधूलीकी बेला है और ध्यान इस बाहरी अंतरिक्षमें उड़ानके सामान है, जहां कोई सूर्योदय और सूर्यास्त नहीं होता, कुछ भी नहीं।