सम्पादकीय

संसदका मानसून सत्र


कोरोना की तीसरी लहरकी आहटके बीच संसदका मानसून सत्र आज सोमवार से प्रारम्भ हो रहा है, जिसके १३ अगस्त तक चलनेकी सम्भावना है। इस छोटे सत्रमें अधिकसे अधिक काम करनेकी सरकारकी पूरी कोशिश रहेगी। इसमें सफलता इस बातपर निर्भर है कि विपक्षका सदनके अन्दर कैसा रवैया रहता है। मानसून सत्रके सुचारु संचालनके लिए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने रविवारको प्रात: सर्वदलीय बैठक बुलायी और लोकसभा अध्यक्षने सायंकाल सभी दलोंके नेताओंसे वार्ता की। सरकारकी कोशिश है कि इस सत्रमें तीन अध्यादेशों सहित कुल २३ विधेयक संसदमें पारितकर लिये जायं। इनमें १७ नये विधेयक हैं, जो काफी महत्वपूर्ण हैं। भाजपा सांसद रवि किशन जनसंख्या नियंत्रण पर निजी विधेयक प्रस्तुतकर सकते हैं, वहीं राजस्थानके सांसद किरोड़ी लाल मीणा भी समान नागरिक संहितापर निजी विधेयक पेश कर सकते हैं। माता-पिता और वरिष्ठï नागरिकोंके रखरखाव और कल्याणके लिए भी विधेयक प्रस्तुत किया जायगा। देशमें ८० वर्ष से अधिक उम्रके १३.५ करोड़ बुजुर्ग हैं। उनके रखरखाव खर्चकी अधिकतम सीमा दस हजार रुपयेको हटाया जायगा। आर्थिक सुधार वाले विधेयकोंपर विशेष जोर रहेगा, जिससे कि अर्थव्यवस्थाको गति दी जा सके। इन विधेयकोंमें दीवालिया कानून संशोधनका विधेयक भी शामिल है। बिजली कानूनमें संशोधनसे सम्बन्धित बहुप्रतीक्षित विधेयक भी पेश किया जायगा। यह कानून विद्युत उपभोक्ताओंको निर्वाध आपूर्तिके साथ दूसरी सुविधाओंका भी रास्ता साफ करेगा। सत्ता और विपक्ष दोनोंने संसद सत्रके दौरान मजबूतीसे अपना पक्ष रखनेकी रणनीति बनायी है। प्रधान मंत्री ने अपने मंत्रियों और राजग के सांसदोंको पूरी तैयारीके साथ सदनमें उपस्थित रहनेका निर्देश दिया है। वहीं विपक्ष ने महंगी, पेट्रोल-डीजलके दामोंमें वृद्धि, कोरोनाके टीकों की कमी, किसान आन्दोलन, राफेल सौदा, भ्रष्टïाचार और राष्टï्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दोंपर सरकारको घेरनेकी कोशिश करेगी। तृणमूल कांगे्रस बंगाल चुनावोंका भी मुद्दा उठा सकती है और भाजपा उसका मजबूत जवाब देनेको भी तैयार है। वर्ष २०२० के बजट सत्रसे लेकर अबतक संसदका कामकाज काफी प्रभावित हुआ। बजट सत्र भी समयसे पहले समाप्त करना पड़ा। वर्तमानमें देश कोरोना महामारी सहित अनेक चुनौतियोंका सामना कर रहा है। ऐसी स्थितिमें सरकार और विपक्ष दोनोंका दायित्व है कि मानसून सत्र सुचारु रूपसे चले और समय की बर्बादी कदापि नहीं हो। राष्टï्रहितसे जुड़े मुद्दोंपर संवेदनशीलताके साथ कार्य करनेकी जरूरत है, इसका ध्यान दोनों पक्षोंको रखना होगा।

मध्यस्थताका महत्व

सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी-रमणका विवादको मध्यस्थता से हल करनेका सुझाव सामयिक और प्रासंगिक है। सीजेआई रमण ने शनिवारको मध्यस्थताके महत्वको रेखांकित करते हुए कहा कि सौहार्दपूर्ण ढंगसे शांति पाना हिंसासे बेहतर है। हर विवादके समाधानके लिए ‘मध्यस्थताÓ अनिवार्य रूपसे पहला कदम होना चाहिए। प्रधान न्यायाधीशका यह वक्तव्य भी काफी मायने रखता है कि किसी भी समाजमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक सहित अन्य कारणोंसे संघर्ष अपरिहार्य है, ऐसे में संघर्ष समाधानके लिए तंत्र विकसित करनेकी जरूरत है। भारत और कई एशियाई देशोंमें विवादोंके सहयोगात्मक और सौहार्दपूर्ण हल निकालने की लंबी और समृद्ध परम्परा रही है। उन्होंने भारतीय अदालतोंमें ४.५ करोड़ लम्बित मामलोंके आंकड़ोंपर आपत्ति जतायी और कहा कि इसे न्यायापालिका की लम्बित मामलोंको निबटानेमें असमर्थताके तौरपर देखा जाता है। न्यायमें देरीके लिए लम्बित मामलोंको दोष देना अतिशयोक्ति है। दरअसल आरामदेह मुकदमेबाजी इसका प्रमुख कारण है जिसके जरिये साधन सम्पन्न लोग न्याय प्रक्रियाको हताश करते हैं जिससे न्यायमें विलम्ब होता है। देशमें कानूनी सहायता कार्यक्रम सराहनीय है। इसके जरिए ७० फीसदी आबादीकी न्याय तक आसान पहुंच उल्लेखनीय उपलब्धि है। न्यायमें विलम्बसे अदालतोंमें मुकदमोंका बोझ बढ़ता जा रहा है जो गम्भीर चिंताका विषय है। संसाधनोंकी कमी पूरा करनेकी राहमें आ रही दिक्कतोंसे निबटनेके लिए विकल्प तलाशना होगा। इस दिशामें मध्यस्थताका सुझाव अनुकरणीय है। इससे धन और समयकी बचत तो होगी ही, साथ ही वादी और प्रतिवादीको तनाव और अनावश्यक दौड़धूपसे मुक्ति भी मिलेगी।