Latest News नयी दिल्ली राष्ट्रीय सम्पादकीय

UP Election Results: समाजवादी पार्टी ने EVM पर उठाए सवाल, क्‍या हैक हो सकती है वोटिंग मशीन,- एक्‍सपर्ट व्‍यू


नई दिल्‍ली, । EVM Machine News: पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव के नतीजों के पहले समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं। इसके पूर्व भी राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर कई बार सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग ने हर मंच पर इसका जवाब दिया है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी इसकी विश्‍वसनीयता सुनिश्चित की गई है। आइए जानते हैं कि ईवीएम के उन सवालों के बारे में जो आपके मन में भी उठ रहे होंगे। जैसे ईवीएम को क्‍या हैक किया जा सकता है? ईवीएम कैसे काम करता है? दुनिया के कितने देशों में ईवीएम का इस्‍तेमाल किया जाता है?

1- वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में इन मशीनों पर सवाल उठे थे। अमेरिका स्थित एक हैकर ने दावा किया है कि वर्ष 2014 के चुनाव में मशीनों को हैक किया गया था। इस चुनाव में भाजपा के नेतृत्‍व वाले गठबंधन ने भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी। हालांकि, निर्वाचन आयोग ने इन दावों का खंडन किया था, लेकिन ईवीएम मशीनों में तकनीक के इस्‍तेमाल को लेकर आशंकाए जाहिर की गई है। यह मामला भारतीय अदालतों तक पहुंचा, लेकिन चुनाव आयोग प्रत्‍येक मौके पर मशीनों को हैकिंग प्रूफ बताता रहा है। बता दें कि भारत के चुनाव में 16 लाख ईवीएम मशीनें प्रयोग की जाती है। एक ईवीएम मशीन में अधिकतम दो हजार मत डाले जाते हैं। चुनाव आयोग ईवीएम मशीनों को पूरी तरह से सुरक्षित होने का दावा करता आया है।

2- हालांकि, समय-समय पर इन मशीनों के हैक होने की आशंकाएं सामने आती रही हैं। भारत की संस्‍थाओं ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा था कि मशीन में छेड़छाड़ करना असंभव है। हालांकि, अमेरिका के मिशिगन यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं का दावा रहा है कि मशीन के नतीजों को बदला जा सकता है। इसमें दावा किया गया था कि रिसिवर सर्किट और एक एंटीना को मशीन के साथ जोड़कर ऐसा किया जा सकता है। चुनाव आयोग का दावा है कि भारतीय वोटिंग मशीनों में ऐसा कोई सर्किट ऐलीमेंट नहीं हैं। आयोग का कहना है कि इतने व्यापक स्तर पर हैकिंग करना लगभग नामुमकिन है।

3- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि दुनिया पीछे नहीं जाती है, आगे जाती है। निश्चित तौर पर हम कह सकते हैं तकनीक के दौर में लोकतंत्र मजबूत हुआ है। इसका ताजा उदाहरण ईवीएम मशीन है। ईवीएम मशीन को लेकर आरोप-प्रत्‍यारोप एक अलग बात है, लेकिन ईवीएम के चलते चुनावों को पारदर्शी और भरोसे मंद बनाने के लिए सही दिशा में काम हो रहा है। खासतौर पर मह‍िलाओं के लिए इस तकनीक का बेहतर इस्‍तेमाल हुआ है। यह गरीब तबके के लिए वारदान साबित हुआ है। पहले वह भय के कारण वोट नहीं डाल पाते थे। उन्‍होंने कहा कि भारत की आबादी को देखते हुए लोकतंत्र के लिए तकनीक का इस्‍तेमाल जरूरी हो गया है।

वोटिंग मशीन पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश

चार वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि सभी वोटिंग मशीनों में वीवीपैट मशीनें भी लगी होनी चाहिए। वीवीपैट मतदान से जुड़ी रसीदें छापने वाली मशीन है। इन मशीनों में वीवीपैट के लगे होने पर जब एक मतदाता अपना मत डालता है तो मत दर्ज होते ही प्रिंटिंग मशीन से एक रसीद निकलती है, जिसमें एक सीरियल नंबर, उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न दर्ज होता है। यह सूचना एक पारदर्शी स्क्रीन पर सात सेकेंड के लिए उपलब्ध रहती है। सात सेकेंड के बाद यह रसीद निकलकर एक सीलबंद डिब्बे में गिर जाती है। चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुख एसवाई कुरैशी ने कहा था कि मतदान रसीदों की वजह से मतदाताओं और चुनावी दलों की आशंकाएं समाप्‍त होनी चाहिए। गौरतलब है कि वर्ष 2015 से सभी विधानसभा चुनावों में वीवीपैट मशीनों का प्रयोग हो रहा है। क़ुरैशी का कहना था कि इन चुनावों में एक भी मौका ऐसा नहीं आया है जब नतीजों में अंतर पाया गया हो।

ईवीएम का विवादों से गहरा नाता

दुनिया के करीब 33 देशों में किसी न किसी तरह से इलेक्‍ट्रानिक वोटिंग की प्रक्रिया को अपनाते हैं। अमरीका में वोटिंग मशीनों को लगभग 19 वर्ष पूर्व इस्तेमाल में लाया गया था। हालांकि, उन मशीनों की प्रामाणिकता पर सवाल उठते रहे हैं। वर्ष 2017 में वेनेजुएला में चुनाव पर सवाल उठे थे। अर्जेंटीना के एक चुनाव में ईवीएम के नतीजों में छेड़छाड़ की आशंका जताई गई थी। इसके बाद ई वोटिंग कराने की योजना से किनारा कर लिया गया। वर्ष 2018 में इराक में चुनाव के बाद इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी की खबरों के बाद मतों की आंशिक गिनती दोबारा करवाई गई थी। वर्ष 2018 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो में ई-वोटिंग से पहले मशीनों की टेस्टिंग न किए जाने की खबर सामने आने के बाद ई-वोटिंग मशीनें विवाद का विषय बनी थीं।

कैसे काम करती हैं ये मशीन

मतगणना स्‍थल पर मतदाताओं को वोट करने के लिए एक बटन दबाना होता है। मतदान अधिकारी भी एक बटन दबाकर मशीन बंद कर सकता है, ताकि मतदान केंद्र पर हमला होने की स्थिति में जबरन डाले जाने वाले फर्जी मतों को रोका जा सके। मतदान से जुड़े रिकार्ड्स रखने वाली मशीन पर मोम की परत चढ़ी होती है। इसके साथ ही इसमें चुनाव आयोग की ओर से आने वाली एक चिप और सीरियल नंबर होता है। इस मशीन को अब तक 120 से ज्‍यादा विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल किया जा चुका है। इन मशीनों के प्रयोग से मतगणना का काम बहुत तीव्र होता है। एक लोकसभा सीट के लिए डाले गए मतों को महज तीन से पांच घंटों में गिना जा सकता है, जबकि बैलट पेपर के दौर में इसी काम को करने में 40 घंटों का समय लगता था।