सम्पादकीय

सकारात्मक सोच 


जग्गी वासुदेव

जोउनके लिए सुविधाजनक है और जिसे वह सकारात्मक कहते हैं। इससे वह बेकार हो गये हैं। उन्हें हर चीज बहुत जल्दी चाहिए। किसी भी चीजके लिए कोई समर्पित भाव उनमें नहीं है। यदि कोई वैज्ञानिक होना चाहता है तो उसे कई सालोंतक पढऩा पड़ेगा। हो सकता है कि वह अपनी पत्नी और बच्चोंतकको भूल जाय। तभी भौतिकतामें भी, उसके लिए कोई बात खुलती है। ऐसा स्थिर फोकस आजके आधुनिक संसारमें ज्यादातर देखनेको नहीं मिलता क्योंकि आजकल जो बात बहुत सिखायी जाती है, वह है, चिंता मत करो। खुश रहो। हर चीज बढिय़ा है। बस मजे करो! इस तरहकी खुशी जरूर ही खत्म हो जायगी और लोगोंको मानसिक बीमारियां हो जायंगी। कृपया ऐसा करके दिखाये तो जरा! कुछ भी हो, आप इसी पलमें हैं। आप और कहां हो सकते हैं। सभी लोग यह बात करते हैं क्योंकि इस विषयपर ऐसे लोगोंके द्वारा बहुत सारी किताबें लिखी गयी हैं और बहुत सारे कार्यक्रम किये गये हैं जिन्हें इस बारेमें न कोई अनुभव है न समझ। यदि आप उन लोगोंको देखें जो हमेशा खुश रहिये कहते रहते हैं तो उनकी जीवनशैलीके आधारपर वह कुछ ही सालोंमें हताश, डिप्रेस्ड हो जाते हैं। निश्चित रूपसे यह आपको बहुत गहराईतक चोट पहुंचायगा क्योंकि आपकी ऊर्जाएं आपके कर्म बंधनोंकी संरचनाके अनुसार अलग-अलग संभावनाओंके लिए बंटी हुई रहती हैं। दर्द, दुख, आनंद, प्यार वगैरह सबके लिए कुछ न कुछ है। इसे प्रारब्ध कर्म कहते हैं। यह सिर्फ आपके मनमें ही नहीं है। कर्म डेटाकी तरह है। आपकी ऊर्जा इस डेटाके अनुसार काम कर रही है। प्रारब्ध एक कुंडली बनी हुई स्प्रिंगकी तरह है। इसको अपनी अभिव्यक्ति पानी ही है। यदि यह चीजें अभिव्यक्त नहीं होतीं, यदि आप इन्हें दबाते हैं तो वह बिलकुल अलग रूपमें जड़ पकड़ लेंगी। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आप किसी चीजको वैसे ही देखें जैसी वह है। आप किसी चीजसे इनकार न करें। यदि दुख आता है तो दुख। उदासी आती है तो उदासी। आनन्द आता है तो आनन्द। उल्लास होता है तो उल्लास। जब आप यह करते हैं तो आप किसी चीजसे इनकार नहीं कर रहे या किसी चीजको रोकनेकी कोशिश नहीं कर रहे। ऐसेमें हर चीज हो रही है, परन्तु आप उससे मुक्त हैं। मनका स्वभाव ऐसा ही है कि यदि आप कहते हैं, मैं यह नहीं चाहता तो आपके मनमें सिर्फ वही बात होगी। जब आप कहते हैं, मैं कोई नकारात्मक चीज नहीं चाहता तो सिर्फ वही बात होगी। आप सकारात्मक या नकारात्मकके बारेमें बोल ही क्यों रहे हैं। आप चीजोंको इस तरहसे क्यों देखना चाहते हैं। आप हर परिस्थितिको वैसे क्यों नहीं देखते जैसी वह है। कोई परिस्थिति सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती। किसी तरहके रवैये या किसी खास दार्शनिकताको बढ़ानेकी कोशिश न करें।