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समाजवादी पार्टी और सुभासपा के ‘सियासी तलाक’ के पीछे की कहानी तो कुछ और निकली


गाजीपुर ।  हाल ही में हुए विधान परिषद चुनाव के समय ही समाजवादी पार्टी (सपा) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के बीच ‘तलाक’ की पटकथा लिख दी गई थी। इस चुनाव में सुभासपा की भागीदारी को दरकिनार करने से दोनों दलों में कड़वाहट इतनी बढ़ गई कि नतीजा गठबंधन तोड़ने तक जा पहुंचा।

विधानसभा चुनाव में 33 सीटों पर चुनाव लड़कर आठ सीटें जीतने वाले राष्ट्रीय लोक दल अध्यक्ष जयंत चौधरी को राज्यसभा और 18 सीटों पर लड़कर छह सीटें जीतने वाली सुभासपा के खाते में विधान परिषद की एक सीट तक न मिलने का दर्द ‘राजभर परिवार’ को टीसता रहा। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भले ही भाजपा से दो-दो हाथ करने को सुभासपा के साथ गांठ जोड़ी थी, लेकिन वह जहूराबाद से विधायक ओमप्रकाश राजभर के मन, मिजाज व महत्वाकांक्षा को भांपने में चूक गए।

विधानसभा चुनाव से पहले सपा, सुभासपा, रालोद व अपना दल (कमेरावादी) ने गठबंधन कर जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी गठबंधन के स्टार प्रचारक रहे। चुनाव के दौरान उन्होंने अपने जहूराबाद विधानसभा क्षेत्र में कम और दूसरे क्षेत्रों में गठबंधन के प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार में अधिक समय दिया। रातनीतिक रणनीतिकारों के मुताबिक उनका साथ गाजीपुर, आजमगढ़, बलिया, जौनपुर सहित पूर्वांचल के कई जिलों में सपा को बढ़त दिलाने में मददगार साबित हुआ, जबकि सुभासपा को इसका कोई सीधा लाभ न मिला।

सपा-सुभासपा में दरार तभी आनी शुरू हो गई थी जब विधान परिषद की 13 सीटों पर हुए चुनाव में सपा ने चार सीटों पर वादा करने के बाद भी सुभासपा को एक सीट नहीं दी। तब ओमप्रकाश राजभर ने सुभासपा को एक भी सीट न देने पर कहा था कि अखिलेश यादव ने अति पिछड़ों की आवाज उठाने वाले को तवज्जो नहीं दी। सूत्रों के मुताबिक ओमप्रकाश अपने बेटे के लिए एक सीट चाहते थे, जो अखिलेश ने नहीं दी।

इसको लेकर शुरू हुई खटास लगातार बयानबाजियों से बढ़ती गई। अंततः दरार को पाटना मुश्किल हो गया। ओमप्रकाश के बेटे और सुभासपा के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता अरुण राजभर कहते हैं कि सपा से इसलिए गठबंधन किया गया था कि अतिपिछड़ों, गरीबों को राजनीतिक भागीदारी मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पदाधिकारियों से विचार-विमर्श के बाद अगली रणनीति तय की जाएगी।