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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, मुफ्त की रेवड़ि‍यों पर केंद्र सरकार क्यों नहीं बुलाती सर्वदलीय बैठक


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ‘मुफ्त रेवड़ि‍यों’ के मामले को महत्वपूर्ण और गंभीर मुद्दा बताते हुए इस पर व्यापक विचार-विमर्श और बहस पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुला कर चर्चा क्यों नहीं करता। जब तक राजनीतिक दलों में इसको लेकर आम सहमति नहीं बनती है कि ‘मुफ्त की रेवड़ि‍यां’ देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देंगी और इस पर रोक लगनी चाहिए, तब तक कुछ नहीं हो सकता है।

मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे राजनीतिक दलों द्वारा ही किया जाता है, व्यक्तियों द्वारा नहीं। शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने जा रहे प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान उक्त टिप्पणियां की।

कहा-जब तक सभी दलों में इस पर रोक को लेकर सहमति नहीं बनती, तब तक कुछ नहीं हो सकता

पीठ में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे। सर्वदलीय बैठक बुलाने के पीठ के सवाल पर केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले ही कई राजनीतिक दल कोर्ट आ चुके हैं जो मुफ्त की रेवड़ि‍यों पर रोक का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में सर्वदलीय बैठक में कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है। अभी मुद्दा यह है कि रेखा कहां खींची जाए। चुनाव आयोग यह मसला देखे या केंद्र सरकार तय करे। मेहता ने कहा कोर्ट केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता आदि के सुझावों को देखते हुए एक विशेषज्ञ समिति गठित करे जो मामले पर विचार करके रिपोर्ट दे।

सेवानिवृत्त सीजेआइ के नेतृत्व में समिति बनाने का सुझाव सुनवाई शुरू होने पर याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि उनका सुझाव है कि समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश को करनी चाहिए। सेवानिवृत सीजेआइ आरएम लोधा को विशेषज्ञ समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया जाना चाहिए। सेवानिवृत सीएजी विनोद राय भी अध्यक्ष नियुक्त किए जा सकते हैं।

देश में सेवानिवृत्त व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं : सीजेआइ

विकास सिंह के सुझाव पर जस्टिस रमणा ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि इस देश में सेवानिवृत या सेवानिवृत होने जा रहे व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं है। पीठ ने कहा कि अभी हमने ये भी नहीं तय किया है कि कमेटी का दायरा क्या होगा। कुछ याचिकाओं में चुनाव के अलावा भी मुफ्त रेवड़ि‍यों की घोषणा के मुद्दे उठाए गए हैं। बड़ी समस्या यह भी है कि प्रस्तावित कमेटी की अध्यक्षता कौन करेगा।

राजनीतिक दल वादे करते हैं और चुनाव लड़ते हैं व्यक्तिगत तौर पर वादे नहीं किये जाते। सीजेआइ ने कहा कि अगर वह चुनाव लड़ेंगे तो 10 वोट भी नहीं मिलेंगे क्योंकि हमारे लोकतंत्र में पार्टी का महत्व है व्यक्ति का महत्व इतना नहीं है। इसलिए इस मुद्दे पर ऐसे ही आदेश नहीं दिया जा सकता।

वकील प्रशांत भूषण ने तीन तरह के मुफ्त के वादे गिनाए

याचिकाकर्ताओं में शामिल सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन (सीपीआइएल) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि तीन तरह के मुफ्त के वादों पर रोक लगनी चाहिए। पहला, जो भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकार के खिलाफ हों। दूसरा जिससे पब्लिक पालिसी का उल्लंघन होता हो जैसे कि बैंक से बड़ा कर्ज लेने और उसे जानबूझकर न लौटाने वालों के कर्ज माफ करना। तीसरा, जिनकी घोषणा चुनाव से ठीक पहले, सत्तारूढ़ दल द्वारा चुनाव से छह महीने पहले की गई हों।

सिब्बल ने वैधानिक वित्त आयोग गठित करने का सुझाव दिया कपिल सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक दलों के पास राज्य के बजटीय प्रबंधन के आंकड़े नहीं होते वे कैसे बता सकते हैं कि पैसा कहां से आएगा। इसीलिए उनका सुझाव है कि इसके लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनिमय का रास्ता अपनाया जाना चाहिए और एक वैधानिक वित्त आयोग का गठित किया जाना चाहिए।

मतदाताओं को मुक्त माहौल मिलना चाहिए : मेहता

सालिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि ऐसे दल हैं जो हो सकता है सत्ता में न हों पर वे मुफ्त घोषणाएं करते हैं। जैसे कोई दल सत्ता में आने पर मुफ्त बिजील देने का वादा करता है। इससे मतदाता प्रलोभित हो सकते हैं। मतदाताओं को ऐसा माहौल मिलना चाहिए जिसमें वे सोच विचार कर निर्णय ले सकें।

इस पर आम आदमी पार्टी की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कोई हमेशा जनता को मूर्ख नहीं बना सकता। हमारे यहां वयस्क मताधिकार है। यह कहना गलत है कि मतदाता इतना भोला है कि उसे आसानी से भ्रमित किया जा सकता है।

2013 के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए पीठ गठित करने के संकेत

सुनवाई के दौरान कुछ पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट के 2013 के सुब्रमण्यम बाला जी बनाम तमिलनाडु सरकार के मामले में फैसले पर सवाल उठाए और उस पर पुनर्विचार की मांग की। कोर्ट ने कहा कि वे इस पर विचार करेंगे। इसके लिए तीन जजों की पीठ गठित करने पर भी विचार करेंगे। इसमें अदालत ने कहा था कि चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को गलत नहीं ठहराया जा सकता।