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सुप्रीम कोर्ट में अपने छोटे से कार्यकाल में बड़ी लकीर खींचने में जुटे सीजेआइ यूयू ललित


नई दिल्ली। शांत एवं सौम्य, लेकिन फैसलों में दृढ़ दिखने वाले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) यूयू ललित छोटे कार्यकाल में बड़ी लकीर खींचने में जुटे हैं। सीजेआइ का कार्यभार संभालने के बाद से ही उन्होंने ज्यादा से ज्यादा मुकदमों विशेषकर पुराने लंबित मुकदमों को सुनवाई पर लगाने और उनका निस्तारण सुनिश्चित करने की दिशा में तेजी से काम शुरू किया है। जस्टिस ललित आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे और सीजेआइ के रूप में उनका कार्यकाल 74 दिन का है। लिहाजा वह मुकदमों को सुनवाई पर लगाने की व्यवस्था को सरल और सुचारू करने के साथ ही न्यायिक कार्य समय का एक-एक पल उपयोग करने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।

आठ नवंबर को सेवानिवृत्ति से पूर्व कई अहम मामलों में दे सकते हैं फैसला

सेवानिवृत्ति से पहले वह दूरगामी परिणाम वाले कई प्रमुख मामलों में फैसला सुना सकते हैं, जिनमें आर्थिक व धार्मिक आरक्षण और पीएफ पेंशन का मुद्दा शामिल हो सकता है। सामान्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट शनिवार को बंद रहता है, लेकिन जस्टिस ललित तीन सितंबर को आम्रपाली में घर खरीदारों की याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। उस दिन सुनवाई के लिए उनकी अध्यक्षता में विशेष पीठ बैठेगी।

शनिवार को छुट्टी वाले दिन करेंगे आम्रपाली मामलों की सुनवाई

ज्यादा से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई सुनिश्चित करने में लगे सीजेआइ की कार्यशैली आजकल चर्चा में है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अभी तक मुकदमों की सुनवाई की चल रही व्यवस्था में थोड़ा परिवर्तन किया है। कोर्ट की सुनवाई को अलग-अलग खंडों में बांटा है, जिसमें सबसे बड़ा बदलाव नियमित सुनवाई के दिन मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को लगने वाले रेगुलर और मिसलेनियस मामलों की सुनवाई को लेकर किया गया है।

जस्टिस ललित ने सुबह से लेकर लंच तक पुराने लंबित रेगुलर मामलों को सुनवाई पर लगाने का निर्णय लिया है और दिन के दूसरे भाग यानी लंच के बाद मिसलेनियस यानी नए मुकदमों पर सुनवाई की जाएगी। ऐसा शायद इसलिए किया गया है ताकि नए मुकदमों के कारण पुराने लंबित रेगुलर केस की सुनवाई न पिछड़े। जबकि पूर्व की व्यवस्था में इन दिनों में शुरुआत में मिसलेनियस मामले सुने जाते थे और उसके बाद दिनभर रेगुलर मामलों पर सुनवाई होती थी।

एक सितंबर यानी गुरुवार को सीजेआइ की अदालत में बहुत से महत्वपूर्ण मामले लगे हैं जिनमें एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण और परिणामी वरिष्ठता का मामला भी शामिल है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 25 अप्रैल, 2019 को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था जिसके कारण सरकारी विभागों में प्रोन्नतियां रुकी हुई हैं। एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने 28 जनवरी को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसमें कहा था कि प्रोन्नति में आरक्षण के लिए क्वांटीफेबल (परिमाण या मात्रा) आंकड़े जुटाने में कैडर को एक यूनिट माना जाना चाहिए न कि संपूर्ण सेवा को।

गुरुवार को पीयूसीएल संस्था की एक याचिका सुनवाई पर लगी है जिसमें आइटी एक्ट की धारा-66ए सुप्रीम कोर्ट से रद होने के बावजूद पुलिस द्वारा इस धारा के तहत लगातार मामले दर्ज किए जाने का मुद्दा उठाया गया है। कोर्ट ने पूर्व में सभी राज्यों और हाई कोर्टो से इस पर जवाब मांगा था। तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत अर्जी भी सुनवाई पर लगी है।

हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण के विभिन्न कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका भी लगी है। सीजेआइ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने आर्थिक आरक्षण यानी ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षण (आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होने के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण) पर भी सुनवाई करने का निर्णय लिया है। 13 सितंबर से इन पर नियमित सुनवाई शुरू हो जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो साफ है कि जस्टिस ललित के सेवानिवृत्त होने से पहले यानी आठ नवंबर तक इन दोनों मामलों में फैसला आ जाएगा। इसके अलावा जस्टिस ललित की पीठ ने पीएफ पेंशन के मुद्दे पर भी सुनवाई पूरी करके अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है जिस पर कभी भी फैसला आ सकता है।