सम्पादकीय

सुरक्षित भविष्यकी आवश्यकता


डा. श्रीनाथ सहाय 

कोविड-१९ ने पुन: राज्यके समक्ष बड़ी चुनौती पेश की है। यह माना जा रहा था कि २०२१ कोरोनाके सफायेका साल होगा, लेकिन मार्च माहमें संक्रमितोंकी बढ़ती संख्याने इस अनुमानको मिथ्या साबित कर दिया है। दिनोंदिन मरीजोंकी संख्यामें वृद्धि हो रही है। गंभीर रूपसे संक्रमित मरीजोंकी तादाद तो बढ़ी ही है, मृतकोंकी संख्यामें भी इजाफा डरा रहा है।  सरकारी अमलेका सारा जोर वर्तमान स्थितिको सुधारनेमें है। लेकिन जिस तरीकेके हालात हमारे सामने हैं उसमें यह बात काफी हदतक जरूरी है कि भविष्यकी आवश्यकताओंको ध्यानमें रखकर हमें अपनी तैयारियां करनी चाहिए। इस समय सबसे ज्यादा हाहाकार आक्सीजनको लेकर देशभरमें मचा है। आक्सीजनके संकटके कारण बीते कुछ दिनोंके भीतर ही हजारों जानें चली गयीं। बवाल मचा तो आनन-फाननमें युद्धस्तरपर प्रयास किये जाने लगे। विदेशोंतकसे आयात किया जाने लगा। निजी क्षेत्रके उद्योगों द्वारा भी अपने कामकी आक्सीजन अस्पतालोंको दी जा रही है। देशभरमें आक्सीजन उत्पादनमें जबरदस्त वृद्धि हो रही है।

सरकारी और निजी अस्पताल अपने यहां संयंत्र लगानेमें जुटे हुए हैं जिससे भविष्यमें ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होनेपर चिकित्सा व्यवस्था इस तरह विकलांग होकर न खड़ी हो जाये। इसके अलावा छोटे घरेलू सिलेंडर भी तेजीसे बाजारमें आ रहे हैं। देशमें आक्सीजनकी कोई कमी नहीं है, लेकिन यह खराब तत्वों द्वारा पैदा की गयी स्थिति है। काले बाजारके कारोबारी इस जटिल व्यवसायमें शामिल हो गये हैं, क्योंकि अस्पतालोंमें आक्सीजनकी भारी मांग है। जब मांग बढ़ जाती है तो वह सक्रिय हो जाते हैं। हमारे देशमें भ्रष्टïाचार चरमपर है। भ्रष्टï लोगोंकी आम लोगोंके जीवनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, वह चाहे मरें या जियें। इन्हें तो केवल अपने पैसे और अपने जीवनसे मतलब होता है। ऐसे लोग इस देशको दीमककी तरह चाट रहे हैं। इसलिए सरकारको ऐसे संदिग्ध तत्वोंपर पकड़ मजबूत करनी चाहिए क्योंकि वह राष्टï्रके विकासमें बाधक बनते हैं। ऐसी जानकारी है उसके मुताबिक जनवरीमें विभिन्न राज्योंके सरकारी अस्पतालोंमें १६२ संयंत्र लगानेके लिए उक्त कोषसे दो सौ करोड़ रुपये जारी किये गये किन्तु अपवाद स्वरूप छोड़कर या तो संयंत्रका काम शुरू नहीं हुआ अथवा मंथर गतिसे चल रहा है। गत दिवस प्रधान मन्त्री नरेंद्र मोदीने देशके ५५१ जिलोंके सरकारी अस्पतालोंमें आक्सीजन संयंत्र लगानेके लिए राशि स्वीकृत कर दी है जिनके प्रारम्भ हो जानेके बादसे देशके तकरीबन सभी हिस्सोंमें आक्सीजनकी आपूर्ति और परिवहन आसान हो जायगा। हालांकि जिस तरहकी परिस्थितियां बीते कुछ दिनोंमें बनीं उसके बाद इसे आग लगनेपर कुंआ खोदनेका प्रयास ही कहा जायगा लेकिन दूसरी तरफ यह भी सही है कि जो राज्य पूर्वमें धन मिलनेके बावजूद समय रहते आक्सीजन संयंत्र नहीं बना सके उनसे उसका कारण तो पता किया जाना ही चाहिए।

कुल मिलाकर रेमिडिसिविर इंजेक्शनके बाद अब आक्सीजन देशमें सबसे चर्चित विषय बन गया। यह अच्छी बात हुई कि जिस तेजीसे समस्या पैदा हुई उतनी ही तेजीसे उसका समाधान निकालनेकी कोशिशें भी सफल हो रही हैं। इस दौरान एक बार फिर यह साबित हो गया कि भारतकी मिट्टीमें उद्यमशीलता और सृजनशीलता समायी हुई है। लेकिन उसीके साथ जो सबसे बड़ा दुर्गुण यह है कि उसका उपयोग समयपर नहीं हो पानेसे अक्सर जरूरतके समय वह काम नहीं आती। कोविड-१९ और भ्रष्टïाचारकी लहर साथ दौड़ रही है। एक तरफ जहां लोगोंको कोरोनाने परेशान किया है वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टïाचारने भी कोई कमी नहीं छोड़ी। चाहे वह मास्क, सैनिटाइजर या अन्य दवाइयोंकी बिक्री, बंद शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस वसूल करने, भर्तियोंके फर्जीवाड़े या ट्रैफिक चालान काटनेमें ही क्यों न हो। अब तो अस्पतालोंमें आक्सीजन एवं वैक्सीनकी कमीके चलते इन्हें मनचाहे दामोंमें बेचकर लोगोंकी मजबूरीका फायदा उठाया जा रहा है।

आज कोरोना महामारीके संकटमें कुछ लोग बेईमानी, लालच और कालाबाजारी जैसी बुरी प्रवृत्तियोंको बढ़ावा दे रहे हैं। कोरोनाकी दूसरी भयावह लहर इनसानोंको बुरी तरहसे लील रही है। वहीं कोरोनासे बचावके लिए न केवल दवाओंकी कालाबाजारी की जा रही है, मनमाने दाम भी वसूले जा रहे हैं और कोई दवाओंको लूट रहा है। कहीं लापरवाहीसे आक्सीजन आपूर्ति रुक रही है, कहीं अस्पतालवाले पैसे जमा न करानेपर शवोंको नहीं दे रहे हैं। ऐसे कृत्य विकट एवं विषम समयमें गिरावटका प्रमाण देते हैं। इस आपदाके दौरान रेमडेसिविर इंजेक्शनोंकी कालाबाजारीने यह तो साबित कर दिया है कि आपदाको लाभके अवसरमें बदलनेकी कोशिशमें इन लोगोंका कितना नैतिक पतन हो चुका है। इस आपदाके दौरान भी लाभ-हानिके गणितमें मानवीय मूल्योंको कलंकित कर रहे हैं। चंद लोगोंकी वजहसे न केवल मानवता शर्मसार हो रही है, बल्कि सरकारके सारे प्रयास धूल-धूसरित हो रहे हैं। सरकारको अब सख्त कदम उठाने चाहिए। भारतमें कोरोना वायरसका एक बड़ा उछाल है। यह अब नियंत्रणसे बाहर लग रहा है। लॉकडाउन अब संभव नहीं है क्योंकि इससे हमारे देशकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जायगी और यह बेरोजगारी तथा भुखमरी पैदा करेगा। इसलिए हमें कोविड और अर्थव्यवस्थाके बीच संतुलन बनाना होगा। इसके लिए दोनों पक्षों, सरकार और जनता द्वारा प्रयास किया जाना चाहिए। टीकाकरणको और ज्यादा तेज गतिसे किया जाना चाहिए। जनताको इस महामारीको राष्टï्रीय खतरेके रूपमें लेना चाहिए। सावधानीकी जरूरत है। सवाल यह है कि क्या इससे कोई सबक लिया जायगा या फिर जैसी कि आशंका जतायी जा रही है तीसरे हमलेके समय भी हम ऐसे ही असहाय खड़े रहेंगे? जितनी फुर्ती आक्सीजनके उत्पादन और परिवहनमें अब जाकर दिखाई जा रही है ऐसी ही आपाताकालीन तैयारियोंके लिए जरूरी अन्य क्षेत्रोंमें भी दिखाई जानी चाहिए क्योंकि यह देशके सुरक्षित भविष्यकी सबसे बड़ी जरूरत बन गयी है।