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शीर्ष न्यायालयकी चिन्ता


कोरोना महामारीका कहर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। लोगोंकी चिन्ता और परेशानी भी बढ़ रही है, लेकिन इसमें धैर्य और संयमसे काम लेनेकी जरूरत है। कोरोनाकी भयावह स्थिति और जनताकी परेशानीसे चिन्तित सर्वोच्च न्यायालयने शुक्रवारको एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है, जिसमें कहा गया है कि सोशल मीडियापर आक्सीजन, बेड, दवाओं आदिकी पोस्ट करनेवालोंपर कोई काररवाई नहीं होगी। कोई भी सरकार किसी भी नागरिककी ओरसे सोशल मीडियापर डाली गयी जानकारीपर काररवाई नहीं करेगी। शीर्ष न्यायालयने यह भी कहा है कि यदि अफवाह फैलानेके नामपर कोई काररवाई की गयी तो हम अवमाननाका मामला चलायेंगे। न्यायमूर्ति चन्द्रचूडऩे यह भी कहा कि हमने कई मुद्दोंकी पहचान की है, जिसमें आक्सीजनकी आपूर्ति भी शामिल है। राज्योंको कितनी आपूर्ति की जा रही है और इसका मैकेनिज्म क्या है? कोरोनाको काबूमें करनेके लिए केन्द्र किन प्रतिबन्धों और लाकडाउनपर विचार कर रहा है? सिलिण्डरोंकी उपलब्धता बढ़ानेके सन्दर्भमें क्या प्रयास किये गये हैं। रेमेडेसिविर जैसी दवाएं कब उपलब्ध करायी जायंगी? झारखण्डको बंगलादेशसे यह दवा लानी पड़ी। रेमेडिसिविरके आवण्टनकी क्या प्रणाली है। शीर्ष न्यायालयने सरकारपर अनेक सवाल किये हैं, जिनका सम्बन्ध कोरोना महामारीसे है। टीकाकरणका भी मुद्दा उठाया गया और कहा गया कि जो लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं अथवा इण्टरनेटसे अवगत नहीं हैं, उनके लिए टीकाकरणकी क्या व्यवस्था है। शीर्ष न्यायालयने सरकारके समक्ष जो प्रश्न रखे हैं, वह अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सरकार कोरोना महामारीसे निबटनेके लिए हरसम्भव प्रयास कर रही है। आक्सीजन, टीका, दवाओंकी आपूर्तिमें कुछ सुधार भी हो रहा है लेकिन इस दिशामें अभी काफी कुछ करनेकी जरूरत है। टीकाकरणका तीसरा चरण आजसे शुरू हो रहा है जिसमें १८ से ४४ आयु वर्गके लोगोंका टीकाकरण किया जायगा। महामारीमें टीकाकरण आवश्यक आवश्यकता है और टीकाके लिए लोग उत्सुक भी हैं। दो दिनोंके अन्दर २.२८ करोड़ लोगोंने इण्टरनेटके माध्यमसे अपना पंजीकरण कराया है। पंजीकरणका क्रम बना हुआ है। पहली मईसे इसकी गति और बढ़ेगी। इसलिए टीकेकी पर्याप्त उपलब्धताके लिए सतत प्रयास करना होगा। यह बड़ा अभियान है, जिसे पूरी तरहसे सफल बनानेके लिए भगीरथ प्रयास करने होंगे।

विकास दरमें वृद्धि जरूरी

कोरोना संकटने एक बार फिर देशकी अर्थव्यवस्थाको प्रभावित किया है। दिल्ली, मुम्बई जैसे शहरोंसे बड़ी संख्यामें श्रमिकों, कामगारोंके पुन: पलायनसे औद्योगिक उत्पादन जहां प्रभावित हुआ है, वहीं विकास दरके नीचे गिरनेकी आशंका बढ़ गयी है। बढ़ती महंगी और बेरोजगारी कोढ़में खाजका काम कर रही है, ऐसेमें विकास दरको आठ प्रतिशतपर पहुंचना सरकारके लिए बड़ी चुनौती होगी, जबकि भारतमें गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवाओंमें सुधार और शिक्षा सुविधाओंके विस्तारके लिए संसाधन जुटानेके लिए कमसे कम आठ प्रतिशत विकास दर आवश्यक है। यही कारण है कि नीति आयोगके उपाध्यक्ष राजीव कुमारने अर्थव्यवस्थाको गति देनेमें निजी क्षेत्रकी भूमिकाको महत्वपूर्ण माना है। उन्होंने कहा है कि निजी क्षेत्रको अब इस देशकी आर्थिक वृद्धिकी मुख्य शक्ति बनना होगा। इसके लिए निजी क्षेत्रको सरकारके साथ विश्वास बनाना चाहिए। यह समयकी मांग है। १९९० में चीनकी प्रति व्यक्ति आय भारतके बराबर ही थी, परन्तु आज यह भारतसे पांच गुना अधिक है। इस असमानताको दूर करनेके लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के और बड़े हिस्सेके बराबर निवेश आवश्यक हो गया है। इसके साथ ही भारतको निर्यात बाजारमें भी अपना हिस्सा बढ़ाना होगा। आर्थिक वृद्धि तेज करनेके लिए निजी क्षेत्रोंको बड़ी भूमिका निभानी होगी। पहले आर्थिक वृद्धिका इंजन सार्वजनिक क्षेत्र हुआ करता था, परन्तु अब ऐसा नहीं है अब निजी क्षेत्रको आगे आना होगा। निजी क्षेत्र तब ही आगे आयंगे, जब सरकार उन्हें प्रोत्साहन देनेके साथ उनकी पूरी मदद करेगी। सरकारको निजी क्षेत्रोंके साथ कृषि क्षेत्रका भी आधुनिकीकरण करना होगा, तभी हम अपने लक्ष्यतक पहुंचनेमें कामयाब होंगे। सरकारको महंगीपर अंकुश लगानेके लिए जहां विशेष प्रयास करने होंगे, वहीं बेरोजगारीकी विकट समस्यासे निजातके लिए व्यापक कार्य योजना बनानी होगी। अर्थव्यवस्थाको रफ्तार देनेके लिए यह जरूरी है। नीति आयोगके उपाध्यक्षका सुझाव प्रासंगिक है, सरकारको इसपर विशेष ध्यान देनेकी जरूरत है।