सम्पादकीय

ध्यानकी महत्ता


ओशो

पुराने संतोंका कहना है करुणापर गौतम बुद्धका जोर एक बहुत ही नयी घटना थी। गौतम बुद्धने ध्यानको अतीतसे एक ऐतिहासिक विभाजन दिया है, उनसे पहले ध्यान अपने आपमें पर्याप्त था, किसीने भी ध्यानके साथ करुणापर जोर नहीं दिया और उसका कारण था कि ध्यान संबुद्ध बनाता है, ध्यान तुम्हारे होनेकी चरम अभिव्यक्ति है। इससे ज्यादा तुम्हें और क्या चाहिए। जहांतक व्यक्तिका संबंध है, ध्यान पर्याप्त है। गौतम बुद्धकी महानता इस बातमें समाहित है कि तुम ध्यान करनेसे पहले करुणासे परिचित हो जाओ। तुम अधिक प्रेमपूर्ण, दयावान, करुणावान हो जाओ। इसके पीछे एक छिपा हुआ विज्ञान है। इससे पहले कि व्यक्ति संबुद्ध हो यदि उसके पास एक करुणासे भरा हृदय हो तो संभावना बनती है कि ध्यानके उपरांत वह दूसरोंको वही सौंदर्य, वही ऊंचाई, वही उत्सव जो उसने खुद हासिल किया है, पानेमें मदद कर सके। गौतम बुद्धने संबोद्धिको संक्रामक बना दिया है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति महसूस करे कि वह घर लौट आया है तो फिर किसी औरकी क्या चिंता लेनी। बुद्धने पहली बार आत्मज्ञानको नि:स्वार्थ बनाया है, उन्होंने इसे सामाजिक जिम्मेदारी बनाया है। यह एक महान परिवर्तन है। लेकिन आत्मज्ञानसे पहले करुणा सीख लेनी चाहिए। यदि इसे पहले सीखा न गया तो आत्मज्ञानके उपरांत कुछ भी सीखनेको नहीं बचता। जब कोई अपने आपमें उन्मादसे भर जाता है तो करुणातक उसकी खुदकी प्रसन्नतामें बाधा बन जाती है, उसके उन्मादमें एक प्रकारका विघ्न पड़ जाता है, इसलिए सैकड़ों आत्मज्ञानको उपलब्ध हुए हैं, परंतु सद्गुरु बहुत कम। संबुद्ध हो जानेका मतलब जरूरी नहीं कि तुम सद्गुरु भी हो जाओ। सद्गुरु हो जानेका अर्थ यह कि तुममें अनंत करुणा है और तुम अपने भीतरकी उस परमशांतिके सौंदर्यमें अकेले जानेसे शर्मिंदगी महसूस करते हो, जो तुमने आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त की है। तुम उन लोगोंकी मदद करना चाहते हो जो अंधे हैं, अंधकारमें हैं। उनकी मदद करना आनंददायी है, न कि कोई बाधा। असलियतमें तो जब तुम अपने आस-पास बहुत सारे लोगोंको खिलते देखोगे तो यह एक और ज्यादा समृद्ध आनन्द बन जाता है, तुम एक बंजर जंगलमें अकेले वृक्ष नहीं हो जो उग गया है, जहां कोई और वृक्ष नहीं उग रहा। जब तुम्हारे साथ सारा जंगल खिलता है तो आनन्द हजारों गुना बढ़ जाता है, तुमने अपने आत्मज्ञानको दुनियामें क्रांति लानेके लिए उपयोग किया। गौतम बुद्ध केवल आत्मज्ञानी नहीं हैं, लेकिन एक आत्मज्ञानी क्रांतिकारी। उनकी चिंता इस दुनियाके लोगोंके प्रति गहरी है। वह अपने शिष्योंको सिखाते थे कि जब तुम ध्यान करो और उससे तुम्हें मौन और शांति मिले, तुम्हारे भीतर गहरे आनन्दके बुलबुले उठने लगें तो उसे रोको मत, उसे पूरे संसारमें बांटो और कोई चिंता न लो, क्योंकि जितना तुम दोगे उतना ही तुम और देनेके लिए सक्षम हो जाओगे। देनेका भाव बहुत महत्व रखता है, तुम कुछ खोते नहीं, बल्कि इसके विपरीत यह तुम्हारे अनुभवोंको कई गुना बढ़ा देता है।