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स्वच्छता जरूरी, उत्तराखंड में कूड़ा निस्तारण एक बहुत बड़ी समस्या ही नहीं, चुनौती भी


उत्तराखंड में कूड़ा निस्तारण एक बहुत बड़ी समस्या ही नहीं, चुनौती भी है। हालांकि, बीते कुछ वर्षो में इस समस्या को गंभीरता से लिया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर अब भी खास बदलाव नजर नहीं आ रहा। दरअसल उत्तराखंड हिमालयी राज्य होने के साथ ही मेला, कौथिग व उत्सवों का प्रदेश भी है। धार्मिक आयोजन तो यहां आए दिन होते रहते हैं, जिनमें लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। चारधाम समेत अन्य तीर्थ स्थलों में भी यही स्थिति रहती है।

श्रवण मास की कांवड़ यात्रा में तो श्रद्धालुओं की संख्या चार करोड़ का आंकड़ा पार कर जाती है। इस बार तो यह आंकड़ा पांच करोड़ के आसपास पहुंच गया। जाहिर है इतनी भीड़ जुटेगी तो गंदगी भी होगी ही और यही देखने को मिल भी रहा है। कांवड़ यात्र संपन्न होने के बाद हरिद्वार व ऋषिकेश से लेकर नीलकंठ महादेव मंदिर तक गंदगी का अंबार लग गया। गंगा के घाट कूड़े-कचरे के ढेरों से पट गए। इसके बावजूद जिम्मेदारों ने इसकी सुध तब जाकर ली, जब कांवड़ यात्र संपन्न होने के बाद गंदगी से सड़ांध उठने लगी।

नीलकंठ महादेव मंदिर परिक्षेत्र में तो अभी भी भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक के खाली केन और वस्त्र आदि यहां-वहां बिखरे हुए हैं। स्थिति यह है कि कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था न होने के कारण उसे नीलकंठ महादेव मंदिर के पास से बहने वाली मधुमति व पंकजा नदी में बहाया जा रहा है। ये नदियां आगे जाकर गंगा में मिलती हैं, जाहिर है इनकी गंदगी भी गंगा में ही समा रही है। इससे नदी व जल राशि संरक्षण के दावों की भी कलई खुल गई है।

ठीक है कि हो-हल्ला मचने पर इस कूड़े के उठान के लिए जिम्मेदार एजेंसियां सक्रिय होने लगी हैं, लेकिन सवाल वहीं का वहीं है कि कांवड़ यात्र शुरू होने से पहले इस बारे में क्यों नहीं सोचा गया। जबकि, सरकार के साथ ही कांवड़ मेला प्रशासन को भी अंदाजा था कि श्रवण में करोड़ों की संख्या में कांवड़ यात्री हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकंठ आदि स्थानों पर पहुंचेंगे। क्यों नहीं कूड़ा एकत्र करने के लिए जगह-जगह व्यापक स्तर पर कूड़ेदान लगाए गए।