सम्पादकीय

स्वास्थ्य विभागकी लचर व्यवस्था


दीपकुमार शुक्ल   

पूर्णतया पंगु हो चुकी देशकी स्वास्थ्य सेवाओंका स्वत: संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालतने कहा कि इस विकट परिस्थितिमें हम मूकदर्शक नहीं रह सकते। मद्रास तथा इलाहाबाद हाईकोर्टने इस विभीषिकाके लिए चुनाव आयोगको दोषी माना है। जबकि दिल्ली हाईकोर्टने ऑक्सीजन संकटपर सवाल उठाते हुए प्रदेश सरकारसे कहा कि अब हमारा विश्वास डगमगा गया है। आक्सीजन संकटपर इलाहबाद हाईकोर्टने भी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बेहद शर्मकी बात है कि आजादीके सात दशक बाद भी हम लोगोंको आक्सीजन नहीं दे पा रहे हैं। अदालतोंकी यह टिप्पणियां सिद्ध करती हैं कि कोरोनाकी दूसरी लहरको शुरुआती दौरमें गम्भीरतासे नहीं लिया गया। इसका पता सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहताके उस बयानसे स्वत: लग जाता है, जो उन्होंने सुप्रीम कोर्टमें सुनवाईके दौरान दिया है। तुषार मेहताने अदालतसे कहा कि कोरोनाकी पहली लहर २०१९-२० में आयी थी लेकिन इस दूसरी लहरका अन्दाजा किसीको नहीं था। उनके इस बयानका निष्कर्ष यही है कि न तो देश-प्रदेशकी सरकारोंने कोरोनाकी दूसरी लहरको गम्भीरतासे लिया और न ही स्वास्थ्य महकमेने। आज जब हालात बेकाबू हो चुके हैं तब सब ओर अफरा-तफरी मची हुई है। चुनाव आयोगकी कार्य प्रणाली देखकर तो ऐसा लग रहा है मानो कोरोना जैसा कुछ है ही नहीं।

चुनावी सभाओंसे लेकर मतदान केन्द्रोंतकमें कोविड नियमोंकी खुलेआम धज्जियां उड़ रहीं हैं। जिसका परिणाम सबके सामने है। कोरोनाकी दूसरी लहरका संकट जैसे ही समाने आया वैसे ही कारके अन्दर भी मास्ककी सख्त अनिवार्यता तो लागू कर दी गयी परन्तु चुनावी सभाओंमें लाखोंकी भीड़ जुटानेपर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा। अब सरकार हर एक जान बचानेको वरीयता देनेका डंका भले ही पीट रही हो परन्तु जमीनी हकीकत इससे बिलकुल इतर है। किसी भी अस्पतालके पास महामारीसे निबटनेके लिए समुचित संसाधन नहीं हैं। चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट। कोरोनाका सर्वाधिक अटैक श्वसन तन्त्रपर हो रहा है। ऐसेमें हर मरीजको आक्सीजनकी सख्त आवश्यकता पड़ रही है। जिसका घोर संकट है। परिजनोंके सामने ही लोग तड़प-तड़प कर जान गवां रहे हैं। जिन्हें वेंटीलेटरपर होना चाहिए वह अस्पतालोंके बाहर अन्तिम सांसे गिन रहे हैं। उनके हताश और बदहवाश परिजन डाक्टरोंसे बारम्बार मिन्नतें कर रहे है। परन्तु संसाधनके अभावमें डाक्टर भी विवश हैं और चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। वैक्सीन लगवानेके लिए लोगोंको इस दावेके साथ प्रेरित किया जा रहा है कि इससे वह कोविड-१९ से पूर्णतया सुरक्षित हो जायेंगे। परन्तु वैक्सीन लगवानेके बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं। वैक्सीनका पहला डोज ले चुके अनेक लोग सांसकी तकलीफके चलते मृत्युका शिकार हो रहे हैं। ऐसे मामलोंका संज्ञान या तो लिया नही जा रहा है या फिर लेनेसे बचा जा रहा है। देशके वर्तमान हालात देखकर यही कहा जा सकता है कि आजादीके बहत्तर वर्ष बाद भी हम अपने नागरिकोंको स्वास्थ्य सेवा जैसी बुनियादी सुविधा देनेमें सक्षम नहीं बन पाये हैं। जबकि प्रगतिके नामपर हम चन्द्रमा और मंगल मिशनपर अरबों रुपया पानीकी तरह बहा रहे हैं। सोलह-सोलह सौ करोड़ रुपयेके राफेल विमान खरीदकर महाशक्ति बननेका दावा कर रहे हैं। आजादीके बादसे ही यदि स्वास्थ्य सेवाओंको बेहतर बनाना सरकारोंकी प्राथमिकतामें रहा होता तो शायद आज इस विभीषिकाका यह रूप न होता। स्वास्थ्य विभागके अनुसार २८ अप्रैलकी सुबहतक कोविड-१९ के गम्भीर मरीजोंका आंकड़ा २९,७८,७०९ पहुंच चुका है। जबकि इस बीमारीसे अबतक मरनेवालोंकी कुल संख्या २,०१,१८७ बतायी गयी है। मरनेवालोंमें अधिकतर वही लोग हैं जिन्हें वेंटीलेटर जैसी सुविधा नहीं मिल पायी। बीते बहत्तर वर्षोंमें यदि सभी सरकारोंने मिलकर स्वास्थ्य सेवाको प्राथमिकता दी होती और प्रतिवर्ष दस हजार वेंटीलेटर ही जुटानेका लक्ष्य रखा होता तो आज देशमें सात लाखसे अधिक वेंटीलेटर मौजूद होते। जबकि इण्डियन सोसायटी ऑफ क्रिटिकल केयरके अध्यक्ष धु्रव चौधरीके मुताबिक देशमें मात्र ४० हजारके लगभग एक्टिव वेंटीलेटर हैं। जो ज्यादातर सरकारी मेडिकल कालेजों, मेट्रो शहरोंके निजी अस्पतालों तथा सेमी मेट्रो शहरोंके अस्पतालोंमें उपलब्ध हैं। आम तौरपर दुनियाभरमें एक वेंटीलेटरकी कीमत पांचसे बीस लाख रुपयेतक बतायी जाती है। जबकि आईआईटी रुड़कीके वैज्ञानिकोंने केवल ढाई लाख रुपये कीमतका तथा बेंगलुरुकी एक कम्पनी डायनामेटिक टेक्नोलॉजीजने मात्र २,५०० रुपये कीमतका वेंटीलेटर तैयार करनेका दावा किया है।

सरकार द्वारा १६०० करोड़ रुपयेकी दरसे ३६ राफेल विमान खरीदनेको जितनी प्राथमिकता दी गयी उतनी ही प्राथमिकता स्वास्थ्य सेवाओंको भी देते हुए यदि ढाई लाख रुपये कीमतके देशी वेंटीलेटर ही खरीद लिये जाते तो भी १६ विमानोंके बराबर बजटमें दो लाखसे ऊपर वेंटीलेटर आज देशके अस्पतालोंमें लगे होते। तब निश्चित ही इतने लोग असमय कालके गालमें न समाते। कोरोना संक्रमणके लिए सीधे तौरपर चुनाव आयोगको दोषी मानते हुए इलाहबाद हाईकोर्टने उसे दण्डित करने तथा मद्रास हाईकोर्टने हत्याका मुकदमा दर्ज करानेकी बात कही है। इसके पहले दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा भी आक्सीजनकी सप्लाई रोकनेवालोंको फांसीपर लटका देनेकी बात कही जा चुकी है। निश्चित ही ऐसे सभी दोषियोंपर हत्याका मुकदमा दर्ज होना चाहिए। चाहे वह चुनाव आयोग हो, चाहे स्वास्थ्य विभाग हो और चाहे सरकारके जिम्मेदार मन्त्री हों। क्योंकि स्वास्थ्य सेवा जैसी बुनियादी सुविधाके प्रति इन सबके लचर रवैयेकी कीमत देशका आम आदमी आज अपनी जान देकर चुका रहा है।