सम्पादकीय

स्वास्थ्य सेवाको सुदृढ़ करना होगा


योगेश कुमार सोनी   

दिल्लीमें तेरह हजार बेडकी सुविधा है और पर्याप्त वेंटिलेटर भी मौजूद हैं जिससे लोगोंको घबरानेकी जरूरत नहीं है। जैनने स्वास्थ्य सुविधाओंको लेकर अन्य तमाम बातें भी कहीं लेकिन सवाल यही है कि राजधानी कि इतनी बिगडती स्थितिमें मंत्री किस आधारपर अपनी प्रशंसा कर रहे हैं। दिल्लीके सभी सरकारी अस्पतालोंमें हाल इतना खराब है कि कोरोनासे पीडि़त रोगीको दवा एवं उपचारतकको मिल नही रहा और यह लोग कह रहे हैं कि बेड उपल्बध है। इसके अलावा हालात यह हैं कि अन्य बीमारियोंसे ग्रस्त रोगियोंका इलाज नहीं हो पा रहा है। उपचार न मिलनेकी वजहसे हालात बदसे बदतर होने लगे हैं जिसकी वजहसे लोगोंकी जाने जा रही हैं। किसी भी अस्पतालमें एडमिट करानेके लिए लोग इस तरह सिफारिश ढूंढ़ रहे हैं मानों न जाने कितना बड़ा काम करवाना हो। दिल्ली, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़के अलावा देशके तमाम राज्योंमें एक बार फिर कोरोना बम फूटा है। देश एक बार फिर संकटसे झूझ रहा है जिसकी वजहसे लोग स्वास्थ्यके क्षेत्रमें परेशानी महसूस कर रहे हैं। यदि प्राइवेट अस्पतालोंकी चर्चा करें तो वह पूर्ण रूपसे अपनी जिम्मेदारियोंसे भागते नजर आ रहे हैं।

कोरोनाके मरीजको तो वह दूरसे ही भगा देते हैं एवं अन्य रोगियोंको इलाज करनेसे बच रहे हैं। जो लोग नियमित रूपसे डायलिसिस एवं अन्य बीमारियोंका इलाज करवा रहे हैं उनको भी इलाज नही मिल पा रहा। केजरीवाल सरकारको न जाने प्राइवेट अस्पतालोंपर काररवाई करनेमें किस बातका डर है। जब देशमें इस तरहका संकट है तो क्यों अपना फर्ज क्यों नहीं निभाया जा रहा। दिल्लीके मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवालने कहा था कि जरूरी हो तो अस्पताल जायं। अब कोई मुख्य मंत्रीसे पूछे कि बिना जरूरीके अस्पताल कौन जाता है। यदि किसीको छोटी-मोटी समस्या या बीमारी होगी तो वह क्षेत्रीय डाक्टरके पास ही जाता है और समस्या बड़ी होती है तो ही वह किसी अस्पताल जाता है और यदि गर्भवती महिलाओंकी चर्चा करें तो जब कोई महिला गर्भवती होती है और यदि वह सरकारी अस्पतालमें प्रसव कराना चाहती है तो उसको तीन महीनेकी गर्भवती होनेपर अस्पतालमें पंजीकरण करवाना अनिवार्य होता है। प्रसव होनेतक पूरा इलाज संबंधित अस्पतालमें चलता है। वहीं दूसरी ओर अधिकतर मध्यमवर्गीय परिवार या पूंजीपति प्राइवेट अस्पतालोंमें प्रसव कराते हैं और जैसा कि शुरुआतसे लेकर प्रसवतक वह भी उस अस्पतालसे जुड़े रहते हैं। लेकिन अब कोरोनाके फिरसे बढ़ते हुए मामलोंकी वजहसे ऐसे परिवारोंको परेशानी यह आ रही है कि सरकारी अस्पतालमें डाक्टर नहीं हैं और अधिकतर प्राइवेट अस्पतालके मालिकोंने कोरोनाके डरसे फिरसे अस्पताल बंद कर दिये और जो खुले हैं वह डिलीवरी केस नहीं ले रहे। दोनों ही स्थितिमें इस तरहको लोगोंको समस्याओंका सामना करना पड़ रहा है। सरकारी अस्पताल प्रशासनका कहना है कि हमारे पास पहलेसे ही अपनी क्षमतासे अधिक केस होते हैं और यदि किसीने अपना पंजीकरण पहलेसे नही कराया हो तो उसका प्रसव हमारे यहां कानूनी तौरपर संभव नहीं है। ऐसी स्थितिमें कई लोग परेशान हो रहे हैं।

आखिर करें तो क्या करें। गर्भवती महिलाओंको भारी परेशानीका सामना करना पड़ रहा है। ऐसे तमाम परिवारों सरकारी अस्पतालोंके बाहर परेशान होते दिखाई दे रहे हैं। बीते दिनों दिल्ली स्थित देशके दो नामचीन अस्पताल गंगाराम एवं एम्समें करीब सत्तर डाक्टर कोरोना पॉजीटिव पाये गये और यह वह डाक्टर थे, जिन्हें गंभीर बीमारियोंका इलाज एवं आपरेशन करते हैं लेकिन इन सभीको कोरोना होनेकी वजहसे सभी ऑपरेशन स्थगित हो गये और इन अस्पतालोंमें ऑपरेशनकी तारीखका छह महीनेसे लेकर एक सालतक इंतजार करना होता है। जो लोग इतने लंबे समयसे इन्तजार कर रहे थे और जब आगे फिर सालभर बादकी तारीख मिल गयी तो उनको कितना प्रभावित होना पड़ रहा है। यहां केंद्र एवं राज्य सरकारोंको बेहद गंभीरतासे काम करनेकी जरूरत है। इस बातमें कोई दो राय नहीं हैं कि कोरोनाके मरीजोंकी संख्यामें अचानक इजाफा होनेसे स्वास्थ्य विभागके हाथ-पैर फूल गये लेकिन अस्पतालोंकी व्यवस्थाको सही करना चाहिए चूंकि बाकी मरीजोंको बिना वजहसे मरना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। दिल्लीका जनसंख्याके आधारपर राजधानीके सभी अस्पतालोंमें वेंटिलेटरकी सामान्य तौरपर भी बहुत कम है जिसके लिए केजरीवालको कई बार अवगत कराया जा चुका बावजूद इसके कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है और ऐसे कठिन समयपर उनके मंत्री यह कह रहे हैं कि पर्याप्त बेड और वेंटिलेटर हैं। जब बात मानव जीवनपर हो तो राजनीति नहीं काम करना चाहिए।