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हाथरस कांड : सीबीआईकी चार्जशीट ने खोली यूपी पुलिसकी पोल


हाथरस । हाथरस गैंगरेप और हत्या मामले में शुक्रवार को दाखिल अपनी चार्जशीट में सीबीआई ने पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी चार्जशीट में इस बात का जिक्र किया है कि स्थानीय पुलिस ने इस मामले में शुरू से लेकर कई कदम पर लापरवाही बरती। चार्जशीट के मुताबिक, पहली लापरवाही 14 सितंबर 2020 को घटना के दिन ही हुई, जब पीडि़ता का भाई उसे पुलिस स्टेशन ले गया। पीडि़ता के भाई ने चांदपा पुलिस स्टेशन में आरोपी संदीप के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. उसने कहा कि पीडि़ता को जब उसकी मां ने देखा, तभी आरोपी मौके से भाग गया था. चार्जशीट के अनुसार, पीडि़ता ने ‘जबरदस्ती’ शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन पुलिस ने इसे नजरअंदाज किया और मेडिकल जांच नहीं कराई. चांदपा थाने के पुलिसकर्मियों ने यौन हिंसा के आरोपों को छोड़कर धारा 307 (हत्या का प्रयास) और एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज की थी.पीडि़ता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर उसी दिन उसकी गंभीर हालत को देखते हुए बिना मेडिकल या लीगल रिपोर्ट तैयार किए, दिन के 12.10 बजे उसे अलीगढ़ अस्पताल रेफर कर दिया गया. 3.40 बजे पीडि़ता को अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां 4.10 बजे उसकी मेडिको-लीगल रिपोर्ट तैयार की गई. 19 सितंबर को अस्पताल में ही पीडि़ता का बयान दर्ज किया गया जहां उसने ‘छेडख़ानी’ शब्द का इस्तेमाल किया, लेकिन यहां भी पुलिस ने लापरवाही बरती और यौन हिंसा की जांच का आदेश नहीं दिया. बस धारा 354 (किसी महिला को अपमानित करने के इरादे से हमला या बलप्रयोग करना) और जोड़ दी. 21 सितंबर को पीडि़ता का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह कह रही थी कि संदीप और चार अन्य ने उसके साथ रेप किया और जब उसकी मां के आने की आवाज सुनी तो भाग गए. उसी वीडियो में लड़की ने कहा कि संदीप और रवि ने उसके साथ पहले भी रेप की कोशिश की थी, लेकिन वह किसी तरह बच गई. सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में पाया है कि पुलिस की लापरवाही से साफ तौर पर पीडि़ता पर यौन हिंसा की जांच और बाद में फोरेंसिक जांच में देरी हुई. चार्जशीट में कहा गया है।