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कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में बस्तर क्षेत्र के वनौषधियों से संबंधित परंपरागत ज्ञान के अभिलेखीकरण*


*कांगेर घाटी राष्ट्रीय उर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में बस्तर क्षेत्र के वनौषधियों से संबंधित परंपरागत ज्ञान के अभिलेखीकरण की दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यशाला में बस्तर संभाग के सभी जिलों से वैद्यराजों को आमंत्रित किया गया है। कार्यशाला के पहले दिन श्री धम्मशील गणविर, निदेशक, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ एम एल नायक, श्री कमल नारायण राजपूत, एसडीओ, श्री राम प्रसाद निषाद वैद्यराज, लखनलाल वैद्यराज, रेंज अफसर, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान स्टाफ, व अन्य वैद्यराज मौजूद थे।धम्मशील ने बताया कि वनौषधियों से संबंधित परंपरागत ज्ञान के अभिलेखीकरण की आवश्यकता है क्योंकि पहले वैद्यराज मुख्य रूप से अपने शिष्य को ज्ञान हस्तांतरित करते थे। जंगल के वनस्पतियों का सवार्धिक ज्ञान वैद्यराज को होता है। इसके अभिलेखीकरण से जनजागरूकता भी बढ़ेगी व पेटेंट राइट की भी संभावनाएं बढ़ेंगी। अगली पीढ़ी को यह ज्ञान हस्तांतरित करके वनौषधियों को संरक्षित कर सकते हैं।

सत्र में विशेषज्ञ व्याख्यान के अंतर्गत डॉ एम एल नायक ने वनौषधियों के महत्व पर प्रकाश डाला। पेटेंट कानून के बारे में भी विशेष चर्चा की गई जहां यह बताया गया कि सामुदायिक पेटेंट का भी कानून है। इसके बाद वैद्यराजों ने अपने-अपने क्षेत्र के दुर्लभ, विलुप्तप्राय एवं संकटापन्न वनौषधियों के बारे में विस्तार से चर्चा की और विदोहन को रोकने के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।

अभिलेखीकरण के अंतर्गत सभी वैद्यराजों ने अपने-अपने क्षेत्र के वनौषधियों के महत्व एवं उनके उपयोग का दस्तावेजीकरण करवाया।