सुखदेव सिंह
उत्तराखंडके चमोलीमें ग्लेशियर फटनेसे मची तबाहीसे पूरे विश्वको सबक लेनेकी जरूरत है। यह त्रासदी देशवासियोंके लिए भारी पड़ी है। इससे पूर्व केरल एवं तमिलनाडुमें भी प्राकृतिक आपदाके कहरसे खूब जान-मालकी हानि हो चुकी है, परन्तु इसके बावजूद हम लोगोंने प्रकृतिसे छेड़छाड़ किये जानेकी अपनी आदत नहीं छोड़ी है। नतीजा चमोली त्रासदीके रूपमें देखा जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओंसे निबटनेके लिए आम जनमानसको अब तैयार रहना होगा। चमोली हादसेके मलबेमें दबे लोगोंकी तलाश अभी चल ही रही है कि इस बीच जिला मंडीके सराजमें ठीक ऐसी ही घटनाकी पुनरावृत्तिने दिलको दहला दिया है। पहाड़ किस कदर घातक बन रहे हैं, इस हादसेसे जरूर सीख लेनी होगी। नीचे सड़कपर एक जीपमें सवार होकर लोग गुजर रहे थे कि इस बीच ऊपरकी पहाड़ीसे अचानक मलबा उनकी गाड़ीपर गिरनेसे वे नीचे गहरी खाईंमें जाकर गिरे। इस दर्दनाक हादसेमें तीन लोगोंकी मौकेपर मौत हो चुकी है और अन्योंको स्थानीय प्रशासन और लोगोंकी मददसे अस्पतालमें भर्ती करवाया गया है। बढ़ती जनसंख्याके चलते अब विकासकी गति भी उतनी ही जरूरी है जितनी प्रकृतिकी सुरक्षा करना। यह सभीकी जिम्मेदारी बनती है। हिमाचल प्रदेशमें सड़क विस्तारीकरण नियमोंको ताकपर रखकर किया जा रहा है जिसके चलते ऐसी प्राकृतिक घटनाओंमें वृद्धि हो रही है।
हरे पेड़ोंको काटकर जंगलके बीचोंबीच सड़क विस्तारीकरणका काम चल रहा है। सड़क निर्माण कार्योंमें जुटे कर्मचारी स्वयं अपनी सुरक्षाकी चिंता नहीं करते तो आम जनमानसकी आखिर कौन सोचे, आज बड़ा सवाल है। जंगलोंको जेसीबी मशीनोंसे काटकर पहाड़ोंके अस्तित्वको हिलानेकी कोशिश की जा रही है। नतीजतन मामूली बारिश पडऩेपर जंगलका मलबा सड़कोंपर गिरकर सदैव यातायातको अवरुद्ध करके राहगीरोंके लिए परेशानीका सबब बन जाता है। सड़क निर्माण सुरक्षायुक्त बने और जंगलोंका अस्तित्व भी बरकाकर रहे, आज यह सोचना होगा। जंगलोंमें इस कदर कुल्हाड़ी चली कि अब ज्यादातर खरपतवारके पौधे ही नजर आने लगे हैं। प्रत्येक वर्ष बेशक पौधारोपणके नामपर सरकारें करोड़ों रुपये खर्च करके वाहवाही लूटती रहें, परन्तु सचाई किसीसे छिपी नहीं है। जंगलोंमें मौजूद पेड़ बड़े पहाड़ोंको अपनी जड़ोंसे जकड़कर रखते थे जिसकी वजहसे पहले कोई भूस्खलनकी घटनाएं घटित नहीं होती थी। एक तो जंगलोंमें पेड़ रहे नहीं जिसकी वजहसे पहाड़ बिल्कुल हिलकर रह चुके हैं। वहीं सड़क निर्माण कार्योंमें जंगलोंको जेसीबी मशीनोंसे काटना भी सुरक्षा लिहाजसे ठीक नहीं है। पहाड़ी क्षेत्रोंमें बननेवाली सड़कोंके किनारे पक्के डंगे बनाये जानेसे ही भूस्खलनकी रोकथाम कुछ हदतक की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालयने अब हिमाचल प्रदेशमें अवरुद्ध पड़ी परियोजनाओंके कार्योंको हरी झंडी दिखा दी है। यदि समय रहते अब भी सुरक्षाको पहल नहीं दी गयी तो इसका खामियाजा भी जनताको भुगतनेके लिए कमर कसनी होगी। जंगलोंमें पानीके चैकडैम बनाकर भी विकास कार्य गिनाये जानेके दावे किये जा रहे हैं। क्या इस तरहके निर्माण कार्य किये जानेसे जंगलोंका अस्तित्व चिरकालतक रह सकता है, कोई सोचनेको तैयार नहीं है। सचाई यह भी कि अब विश्वस्तरपर ही मौसममें जमीन-आसमानका बदलाव आ रहा है।
बारिशें बेमौसमी होनेकी वजहसे ऐसी प्राकृतिक आपदाओंकी वृद्धि सभीके लिए परेशानीका सबब बन रही है। जंगलोंकी जमीन अवैध निर्माणकी वजहसे दिनोंदिन घटती जा रही है। राजनीतिक पहुंच रखनेवालोंने सरकारी जमीनोंपर आवासीय मकान सहित रेस्टोरेंट और होटल बनाकर सरकारी नियमोंकी सरेआम धज्जियां उड़ायी हैं। बरसातके दिनोंमें इंद्र देवता हमेशा अपना रौद्र रूप दिखाते हैं, परन्तु स्वार्थी लोगोंके दिलोंसे भगवानका भयतक खत्म हो चुका है। खड्डों और नालोंमें पानी बहाववाली जगहोंपर लोगों द्वारा अवैध निर्माण किये जानेसे बरसात प्रत्येक वर्ष जानलेवा बनती जा रही है।
सरकारें अवैध निर्माण हटाये जानेकी बातें तो जरूर करती हैं, परन्तु रसूखदार लोगोंके खिलाफ प्रशासन काररवाई करनेमें सफल नहीं होता है। खड्डों, नालोंमें अवैध खननकी वजहसे जमीनोंका खूब दोहन हो रहा है और जल स्रोत सूखनेकी कगारपर पहुंच गये हैं। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि जमीनका जल स्तर नीचे चला गया है। जेसीबी मशीनोंसे खड्डों एवं नालोंका अवैध खनन किये जानेसे कई फुट गहरी और लंबी खाइयां बन चुकी हैं। नतीजतन किसानोंकी कीमती जमीनें पानीके गलत बहावकी वजहसे पानीमें बहती जा रही हैं। सरकारोंने जितने जल स्रोत जनताके सुपुर्द किये, ठीक पानीकी समस्या उतनी ही ज्यादा बढ़ी है। हालात इस कदर नाजुक बनते जा रहे हैं कि जल स्रोतोंमें पानी सूख जानेकी वजहसे लोगोंको हर बार खासकर पानीकी समस्याओंका सामना करना पड़ रहा है। सड़कोंके विस्तारीकरणके साथ प्रकृतिकी सुरक्षा करना भी सभीकी जिम्मेदारी होनी चाहिए।