सम्पादकीय

नैतिक नियमोंका पालन


श्रीराम शर्मा

प्रकृतिकी मर्यादाओंमें चलकर ही सुखी और संपन्न रहा जा सकता है। इसीको नैतिकता भी कहा जा सकता है। जिस प्रकार प्रकृतिकी व्यवस्थामें प्राणियोंसे लेकर ग्रह-नक्षत्रोंका अस्तित्व, जीवन और गति-प्रगति सुरक्षित है, उसी प्रकार मनुष्य नैतिक नियमोंका पालन कर सुखी एवं संपन्न रह सकता है। नैतिकता इसीलिए आवश्यक है कि अपने हितोंको साधते हुए उन्हें सुरक्षित रखते हुए दूसरोंको भी आगे बढऩे दिया जाय। एक व्यक्ति बेइमानी करता है और उसकी देखादेखी दूसरा भी बेइमानी करने लगें तो किसीके लिए भी सुविधापूर्वक जी पाना असंभव हो जायगा। इससे ईमानदारीको नैतिकताके अंतर्गत रखा गया है कि व्यक्ति उसे अपनाकर अपनी प्रामाणिकता, दूरगामी हित, तात्कालिक लाभ और आत्मसंतोष प्राप्त करता रहे तथा दूसरोंके जीवनमें कोई व्यतिक्रम उत्पन्न न करे। नैतिकताका अर्थ सार्वभौम नियम भी किया जा सकता है। सार्वभौम नियम अर्थात वे नियम जिनका सभी पालन कर सकें और किसीको कोई हानि न हो, प्रत्युत लाभ ही मिलें। जैसे दूसरोंसे अच्छाइयां ग्रहण करना। अच्छाइयोंसे अच्छाइयां बढ़ती हैं, ग्रहणकत्र्तामें कौशल और सुघड़ता आती है और इससे सब प्रकार लाभ ही होता है। किंतु दूसरोंके अधिकार या उनके अधिकारकी वस्तुएं छीननेका क्रम चल पड़े तो अव्यवस्था उत्पन्न हो जायगी, कोई भी सुखी नहीं रह सकेगा। फिर जानवरोंकी तरह ताकतवर कमजोरको दबा देगा, उसकी वस्तुएं छीन लेगा। धर्म कत्र्तव्यों, मर्यादाओं एवं नैतिक आचरणकी कसौटी यह भी है कि किसी कार्यको करते समय अंतरात्माकी साक्षी ले ली जाय। एकाएक किसीमें अनैतिक आचरणका दुस्साहस पैदा नहीं होता। जब भी कोई व्यक्ति किसी बुरे काममें प्रवृत्त होता है तो शरीरसे पसीना छूटता है और उसे प्रतीत होता है कि कोई उसे इस कार्यके लिए रोक रहा है। जब कभी ऐसा लगे तो सावधान हो जाना चाहिए। उस कामसे पीछे हट जाना चाहिए। जिस कामको करनेमें अंदरसे प्रसन्नता और आनंद महसूस न हो, समझना चाहिए वह काम नैतिकताके अंतर्गत नहीं है, उसे त्याग देना चाहिए। नैतिकता व्यक्तिके आचरणमें परिलक्षित होनी चाहिए। यह तभी संभव है जब नैतिक मूल्योंकी जानकारीके साथ उसकी मानसिक और वैचारिक पृष्ठभूमि भी उच्च स्तरकी हो। इस प्रकारके विकासमें वातावरणका बहुत बड़ा महत्व होता है। हमेशा अपने अंतर्मनकी आवाज सुननी चाहिए। ऐसे कार्यको कभी महत्व न दें, जो आपके लिए अहितकारी हो। गलत कार्यका परिणाम हमेशा गलत ही होता है। इसलिए हमेशा सोच-विचार कर ही निर्णय लें।