प्रणय कुमार
प्रधान मंत्री बंगलादेशकी यात्रापर हैं। कोविड महामारीके बाद यह प्रधान मंत्री मोदीका पहला विदेश यात्रा है। वह बंगलादेशके राष्ट्रीय दिवसपर मुख्य अतिथिके रूपमें उपस्थित रहनेवाले हैं। बंगलादेश तथा अपने मित्र एवं पड़ोसी देशोंके प्रति प्रधान मंत्री मोदीकी प्राथमिकता एवं प्रतिबद्धताको भी दर्शाता है। अंतर्बाह्य तमाम चुनौतियों एवं जटिलताओंके बावजूद भारत अपने पड़ोसी देशोंके साथ सतत संपर्क, संवाद, संबंध एवं मैत्रीपूर्ण सहयोगके प्रति प्रतिबद्ध रहा है। इस कोविडकालमें भारत पड़ोसी देशों समेत दुनियाके अनेक देशोंका भरोसेमंद साथी बनकर उभरा है, उसने अन्य देशोंको कोविड वैक्सीन प्रदान कर अपनी मित्रता एवं उदारताका परिचय दिया है, वहीं दूसरी ओर बंगलादेश भी अब संयुक्त राष्ट्रके सबसे कम विकसित देशोंकी सूचीसे निकलकर विकासशील देशोंमें उपस्थिति दर्ज करा रहा है। इस दौरेका दोनों देशोंके सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं व्यापारिक हितों एवं साझेदारीपर गहरा एवं सकारात्मक असर पड़ेगा। इस संदर्भमें परराष्टï्रमंत्री एस. जयशंकरका यह बयान गौरतलब है कि भारत और बंगलादेशके संबंध केवल सामरिक दृष्टिकोणसे ही मजबूत नहीं हुए है, बल्कि उससे भी आगे जा चुके हैं। सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, वरन पूरे इंडो-पेसिफिक क्षेत्रमें दोनों देश महत्वपूर्ण सहयोगी एवं साझेदार बन चुके हैं।
दो देशोंके बीच रिश्तोंमें उतार-चढ़ाव, आपसी हितोंमें टकराव आदि आम बात है। परन्तु तमाम राजनीतिक सीमाओं और मजहबी दुराग्रहोंमें बंटे होनेके बावजूद यदि दो देशोंके नागरिकोंके बीच मुहब्बतका स्वाद घुला हुआ हो तो केवल मानचित्रके आधारपर जमीन और जनता बंट नहीं जाती। तमाम प्रकारके आरोपित भेदभावों और मजहबी ताकतोंकी लगातार साजिशोंके बीच भी यदि दोनों देशोंके नागरिकोंमें शांति एवं सौहाद्र्रका रिश्ता कायम रहा है तो उसकी कुछ ठोस वजहें हैं। वर्ष १९७१ में बंगलादेशको मिली मुक्तिमें भारतीय सेनाकी निर्णायक भूमिकाको न वहांकी सरकार भुला सकती है, न वहांकी जनता। उसके बाद भी भारतने वहांके नागरिकोंको राहत एवं सहयोग प्रदान करनेमें कभी कोई संकोच नहीं दिखाया। दोनों देश लगभग ४०९६ किलोमीटरकी लंबी सीमाकी साझेदारी करते हैं। फेनी नदीपर बने मैत्री सेतुके निर्मित होने तथा २६ जनवरीको नयी दिल्लीके राजपथपर बंगलादेशकी सैन्य-टुकड़ीके परेडमें हिस्सा लेनेसे दोनों देशोंके संबंधोंको नयी दिशा, ऊर्जा एवं गति मिली है। त्रिपुराके दक्षिणी छोर सबरूम और बंगलादेशके रामगढ़को जोडऩेवाले इस १.९ किलोमीटर लंबे सेतुका दोनों देशोंके राजनयिक एवं सामरिक संबंधोंकी दृष्टिसे अत्यधिक महत्व है। इसके अलावा जानकारोंका कहना है कि इस मैत्री सेतुके प्रारंभ होनेके पश्चात त्रिपुराके सबरूमसे चिट्टागोंग बंदरगाहकी दूरी केवल ८० किलोमीटर रह जायगी, जिससे यातायात एवं कारोबार सुगम होगा। इससे पूर्वोत्तर भारतके किसान एवं व्यापारी सुगमतासे अपना सामान सीमाके आर-पार ले जा सकेंगें। उल्लेखनीय है कि जहां भारत बंगलादेशसे कागज, तैयार कपड़े, धागा, नमक और मछली जैसी चीजोंका आयात करता है, वहीं प्याज, सूत, कपास, स्पंज आयरन और मशीनोंके कलपुर्जे जैसी तमाम रोजमर्राकी वस्तुएं उसे निर्यात भी करता है। कोरोना महामारीके कारण दोनों देशोंके बीच होनेवाले व्यापारपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। प्रधान मंत्रीकी यात्रासे इसमें सुधारकी प्रबल संभावना है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कुछ लोग प्रधान मंत्रीके इस दौरेको असम एवं पश्चिम बंगालके चुनावसे जोड़कर देख रहे हैं। दो देशोंके बीचके राजनयिक एवं सांस्कृतिक संबंधोंको चुनावी लाभ-हानिसे जोड़कर देखना सतही और संकीर्ण मानसिकताका परिचायक है। यदि प्रधान मंत्री इस यात्राके दौरान भारतीय दृष्टिकोणसे महत्वपूर्ण किसी धार्मिक केंद्र या श्रद्धास्थलपर जाते हैं तो ऐसा पहली बार तो नहीं होगा। कला, संगीत, साहित्य, संस्कृति, श्रद्धा, आस्था जैसे विषयों एवं केंद्रोंको अकारण राजनीतिमें घसीटना अनुचित होगा। क्या द्विपक्षीय संबंधोंमें प्रगाढ़ता लानेके लिए दोनों देशोंके मध्य सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक स्तरपर समझौते-संबंध अनुचित हैं। यदि वह मतुआ महासंघके संस्थापक हरिचंद्र ठाकुरके ओरकांडी स्थित मंदिर एवं बारीसाल स्थित सुगंधा शक्तिपीठ जाते हैं तो इसमें आपत्तिजनक क्या है। सच यही है कि प्रधान मंत्रीकी इस यात्रासे दोनों देशोंके आपसी संबंधोंमें सुधार होगा। सीमावत्र्ती क्षेत्रोंमें आतंकवादी वारदातोंमें कमी आयगी, आतंकवादपर प्रभावी अंकुश लगेगा, शांत-स्थिर-अपराधमुक्त सीमा-प्रबंधनको बल मिलेगा, सीमापर बाड़ लगानेकी लंबित योजनाओंको गति मिलेगी, सीमापर असैनिक लोगोंके जान-मालकी हिफाजत होगी, भूमि-पानी-आसमानमें सहयोग और संयोजकताको बढ़ावा मिलेगा, रोहिंग्या मुसलमानोंको लेकर दोनों देशोंके मध्य उत्पन्न गतिरोध समाप्त होगा, नागरिकता संशोधन विधेयकको लेकर भ्रम एवं संशय दूर होगा।