हमारे पास कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हैं। वहीं तस्वीरका दूसरा रुख यह कि कोरोनाकी दूसरी लहरका कहर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। चिकित्सा क्षेत्रसे जुड़े अनुभवी लोग भी कोरोनाकी बदले हुए रूपको लेकर भ्रमित है। संक्रमणकी तीव्रता मरीज और डाक्टर दोनोंका बचाव और संभलनेका अवसर ही नहीं दे रही है, नतीजन मौतका आंकड़ा लगातार बढ़तकी ओर है। नयी लहरके पीछे हम सब और सारी व्यवस्था कसूरवार है। लेकिन अब इन बातोंपर विचार करनेका समय अब बीत चुका है। अब सामने खड़ी समस्यापर विचार करना ही श्रेयस्कर होगा। एक सालसे कोरोनाको झेलते और इसकी विभीषिकाको जानते हुए भी आम आदमी बचावके नियम नहीं मान रहा है, यह बड़ा दुखद पहलू है। वास्तवमें जब कोरोनाकी पहली लहर आयी तो सरकारने सख्त कदम उठाते हुए पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया। हमारे देशमें उतने मामले नहीं आये, जितने आने चाहिए थे। दूसरे देशोंने भी भारतकी सराहना की। लेकिन जब लॉकडाउन हटा तो लोगोंकी आवाजाही खूब बढ़ी। एक तो हम घनी आबादीवाले देश हैं, दूसरा यहां लोकतंत्र है। इसलिए लोगोंकी आवाजाही और आयोजनोंको जबरन रोका नहीं जा सकता। जब लॉकडाउन हटा तो लोगोंको लगा कि कोरोना चला गया। शादी-ब्याह, दूसरे उत्सव मनाये जाने लगे। मंदिर दर्शन, धार्मिक आयोजन और पांच राज्योंमें चुनावको देखते हुए राजनीतिक रैलियां हुईं। चुनाव भले ही पांच राज्योंमें हुए, परन्तु कई राज्योंसे लोग आये और गये। हजारों-लाखोंकी भीड़ जुटने लगी। इसलिए दूसरी लहर आयी तो ज्यादा तीव्रताके साथ आयी।
दुनियामें आबादीके लिहाजसे हमारा नम्बर दूसरा है। १३५ करोड़की आबादीको चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा पाना किसी भी सरकारके बूतेकी बात नहीं है। कोरोना वायरसकी रोकथामको लेकर किये जा रहे तमाम उपाय अब दम तोड़ते दिख रहे हैं। अस्पतालोंमें बिस्तर कम पड़नेसे लाखों लोगोंको मजबूरन घरोंमें रहकर इलाज करने बाध्य किया जा रहा है। जीवनरक्षक इंजेक्शन और ऑक्सीजनकी कमीने लोगोंमें घबराहट पैदा कर दी है। यह आरोप भी खुलेआम लग रहे हैं कि शासन-प्रशासन नये संक्रमणके साथ ही मरीजों और मौतोंकी संख्या छिपा रहे हैं। सैकड़ों मरीज अस्पतालके बाहर ही जान गंवा बैठे क्योंकि वहां बिस्तर उपलब्ध नहीं थे। ऑक्सीजनके अलावा गंभीर मरीजोंको लगनेवाले इंजेक्शनकी आपूर्ति भी गड़बड़ा गयी है। कुल मिलाकर स्थिति चिंताजनक है और कोई भी दावेके साथ यह बता पानेमें असमर्थ है कि हालत सामान्य होनेमें कितना समय लगेगा। तस्वीरका सुखद पहलू यह है कि कोरोनाकी दूसरी लहरके समानान्तर टीकाकरण देशभरमें जारी है। अब देशवासियोंमें टीकेके प्रति व्याप्त प्रारंभिक हिचक भी खत्म हो गयी है। लेकिन इस सबसे अलग बात है हमारी अपनी सोच। क्योंकि कोरोनाका जो नया रूप आया है उसके फैलनेके पीछे हमारी अपनी लापरवाही बड़ी वजह है। यह कहना कहींसे भी गलत न होगा कि संक्रमणकी पहली लहरकी वापसीका अहसास होते ही जिस तरहकी लापरवाही देखने मिली उसका यह नतीजा होना स्वाभाविक ही था। बीते कुछ दिनोंसे जो आंकड़े आ रहे हैं उनकी वजहसे भयका माहौल तो है लेकिन अब भी बड़ी संख्या ऐसे लोगोंकी है जो स्थितिकी गम्भीरताको समझनेसे दूर भाग रहे हैं। बीते २४ घण्टेमें कोरोनाका दूसरा हमला यदि शुरुआतमें ही तेज हो गया तो उसके पीछे ऐसे ही लोग हैं जिनको न अपनी चिंता है और न अपने परिवारकी। मौजूदा हालातोंमें सरकार और चिकित्सा जगत जो कर रहे हैं उनमें ढेर सारी खामियां हैं जिनकी आलोचना करने बैठे तो समय कम पड़ जायगा। लेकिन ऐसे समयमें जनताका अनुशासित होना सबसे ज्यादा जरूरी है। जिन देशोंके लोगोंने कोरोनासे जुड़े अनुशासनका पालन किया वहां हालात काबूमें बने रहे।
दूसरी ओर अनेक विकसित देशोंमें लोगोंको अपने यहांकी चिकित्सा सुविधापर बड़ा घमंड था। इसलिए वह बेहद लापरवाह रहे जिसकी वजहसे वहां मौतका तांडव हुआ। फिलहाल जो टीका लगाया जा रहा है वह भी कोविड-१९ पर तो कारगर था किन्तु उसके नये रूपपर उसका कितना असर होगा इसपर चिन्तन-मंथन चिकित्सा जगतमें जारी है। लेकिन एक बात जो दुनियाभरके विशेषज्ञों स्वीकार की है और वह यह है कि बचावके परम्परागत तरीकोंसे कोरोनाको हरानेमें सफलता मिल सकती है। विश्वभरके चिकित्सा विशेषज्ञ समवेत स्वरमें कह रहे हैं कि मास्क और सैनीटाईजरका उपयोग, शारीरिक दूरी, भीड़भाड़में जानेसे परहेज और हाथ धोते रहने जैसे उपाय कोरोना और उस जैसे अन्य संक्रमणोंसे ९० फीसदी बचाव करनेमें सक्षम है। विषम हालातोंके बीच भी मीडियाके माध्यमसे ऐसी तस्वीरें और खबरें सामने आ रही हैं कि देशमें अब भी बड़ी संख्या ऐसे लोगोंकी है जिनके लिए उक्त सभी उपाय फालतूकी चीजें हैं। यह हालात तब हैं जब देशमें प्रतिदिन डेढ़ लाखसे अधिक कोरोना संक्रमित सामने आ रहे हैं और आठ सौसे ज्यादा जानें यह घातक वायरस ले रहा है।
पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने राज्योंके मुख्य मंत्रियोंसे मीटिंगके दौरान टेस्ट, टे्रसिंग और ट्रीटमेंटका सुझाव दिया। देखा जाय तो ये सुझाव कई बार पहले भी दिये जा चुके हैं। प्रधान मंत्री और मंत्रियोंने आग्रह भी किये हैं। यदि देशका प्रधान मंत्री बार-बार आश्वासन देता रहे और सड़कोंपर गरीब, बेरोजगार मजदूरोंके पलायनके दृश्य चलते रहे तो उनके क्या लाभ हैं? बेशक समयके साथ इस लहरका भी ‘पीकÓ आना है और उसके बाद हालात पहलेकी तरह सामान्य होने लगेंगे, लेकिन प्रधान मंत्रीके आह्वान भी बेमानी हैं क्या? महाराष्टï्रमें पांच लाख खुराकें बर्बाद कर दी गयीं। कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, गुजरात आदि राज्योंमें भी टीकोंको खराब किया जा रहा है और कई राज्योंमें लोग टीकाकरणकी लाइनोंमें लगे हैं। इस समय क्षुद्र राजनीतिसे सबको तौबा करके नागरिकोंकी प्राण रक्षाका संकल्प लेना चाहिए। देशमें बने टीकेके कारण आम जनताका आत्मविश्वास भी बढ़ा। लेकिन उसके अति आत्मविश्वासमें बदल जानेसे लौटती हुई मुसीबतके कदम वापस घूम पड़े और जबतक हम कुछ समझ और संभल पाते उसने हमें चारों तरफसे घेर लिया।
एक तरफ तो टीकाकरण चल रहा है दूसरी तरफ संक्रमण दोगुनी और चौगुनी ताकतसे हमला करनेपर आमादा है। ऐसेमें आवश्यक हो जाता है कि हर व्यक्ति इस विषम परिस्थितिमें बजाय भयभीत होने या व्यवस्थाको कोसते रहनेके अपनी प्राण रक्षाके लिए जो वह खुद कर सकता है, उतना तो करे ही। महामारी विशेषज्ञ पद्मश्री डाक्टर रमन गंगा खेडकरका कहना है कि यदि कोरोनासे बचावके लिए जारी गाइडलाइनको देशके ९५ फीसदी लोग मानेंगे तो मेरे ख्यालसे दो हफ्तेमें हम इससे उबर सकते हैं, लेकिन हमने यदि मास्क, सोशल डिस्टेंसिंगकी गाइडलाइनको नहीं माना तो फिर दूसरी लहर कितना कहर बरपायगी, कुछ नहीं कहा जा सकता। लॉकडाउन लगे या न लगे लेकिन ये मानकर चलना चाहिए कि कोरोना नामक मुसीबतसे छुटकारा पानेमें अभी समय लगेगा और तबतक छोटीसे भी लापरवाही बड़े नुकसानका कारण बन सकती है। पिछली बार लॉकडाउन अचानकसे लगाना पड़ गया था, परन्तु सालभरमें सरकार कोई वैकल्पिक प्लान नहीं बना पायी, यह भी दुखद पहलू है।