सम्पादकीय

जिज्ञासा


वी.के. जायसवाल
जिज्ञासा प्रकृतिमें व्याप्त ज्ञानको समझनेकी त्वरित अभिलाषा है। यह शिष्य और सतगुरुके बीच संवादके उस सेतुके समान होती है जो शिष्यके ज्ञानमें मौजूद खाईंको आध्यात्मिक संवादकी तरंगों द्वारा पार कराकर उस मंजिलतक पहुंचाती है जहां पहुंचकर जिज्ञासा न केवल शान्त हो जाती है, बल्कि यही तरंगें सोचने एवं समझनेकी क्षमताको बढ़ाकर आध्यात्मिक पथपर चलनेके लिए अनुकूल मार्ग भी प्रशस्त करती हैं। संसारमें कुछ मनुष्य अच्छे कर्मोंके सहारे अपना कायाकल्प करके ज्ञान बढ़ाते रहते हैं वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने बुरे कर्मों द्वारा समाजमें उपेक्षित हो जाते हैं। कुछ लोग जीवनमें एकदम मूर्छितसे रहते हैं परिणामस्वरूप जिज्ञासा ऐसे लोगोंमें जन्म ही नहीं ले पाती है इसी कारण यह लोग पशुके समान जीवन व्यतीत करते हैं। संसारमें कुछ अज्ञानी ऐसे भी होते हैं जो केवल अकड़से ही भरे होते हैं इसलिए झुकना ऐसे लोगोंको आता ही नहीं है। इन्हें सदैव यही भ्रम रहता है कि यह ज्ञानसे परिपूर्ण है। इन लोगोंके मस्तिष्कमें प्रश्न तो उभरते रहते हैं किन्तु जिज्ञासा पनप नहीं पाती है। मोक्ष पानेकी प्रबल आकांक्षा तो बहुतोंमें होती है किन्तु ऐसी कामना यह तब करते हैं जब इन्हें यह आभास हो जाता है कि अब जीवनके समाप्त होनेके क्षण एकदम निकट है। कुछ ऐसे भी होते हैं जो दूसरोंके बतानेपर मोक्ष प्राप्त करना चाहते है वह भी उस दशामें जब ऐसे लोगोंको मोक्षका वास्तविक अर्थतक न पता हो। ऐसी स्थितिमें यह न केवल स्वयं भ्रमित होते हैं, बल्कि दूसरोंको भी भृमित करते रहते हैं। ऐसी अभिलाषा रखनेवाले व्यक्तियोंके लिए यह आवश्यक है कि वह सर्वप्रथम ज्ञानप्राप्तिकी दिशामें अग्रसर हो। यदि उन्हें इस दिशामें जाननेपर कुछ सफलता हासिल होती है और वह अपनेको मूढ़ कहे जानेवाले व्यक्तियोंसे अलग करनेमें पूरी तरह सफल हो जाते हैं तभी वे जिज्ञासा रखने योग्य हो सकते हैं। जिज्ञासा न तो मूढ़तासे अपवित्र होनी चाहिए और न ही यह अज्ञानियोंके अज्ञान रूपी अकड़से भरी होनी चाहिए। यह तो एकदम सरल और विनम्र होनी चाहिए। जहांतक ज्ञानी व्यक्तिका प्रश्न है ऐसे व्यक्तियोंमें ज्ञानके परिपूर्ण होनेके कारण जिज्ञासा शेष ही नहीं रहती है फिर भी प्रत्येक ज्ञानी सीखनेके लिए सदैव तत्पर रहता है ऐसा व्यक्ति ज्ञानको कभी संग्रहीत नहीं करता है, बल्कि अपने अंदर इस प्रकारकी क्षमताको लगातार विकसित करता रहता है जिससे उसके ज्ञानमें और भी वृद्धि हो सके। जो व्यक्ति कुछ जाननेके लिए हर ओरसे खुला रहता है उसमें जिज्ञासाका नया नया अंकुरण होता ही रहता है इसीसे ज्ञानमें सतत् वृद्धि होती रहती है।