कोरोनासे गम्भीर रूपसे आक्रांत ब्राजीलका एक छोटा शहर सेरेना है, जिसकी आबादी मात्र ४५ हजार है। सेरेनामें ९५.७ प्रतिशत लोगोंका टीकाकरण हुआ है और यह शहर पूरी तरहसे संक्रमण मुक्त है। सेरेना विश्वके लिए न केवल एक प्रेरक नजीर है, बल्कि इस शहरने यह भी सन्देश दिया है कि टीकाकरण हर व्यक्तिका होना अत्यन्त जरूरी है तभी कोरोनाको मात दी जा सकती है। भारतमें भी विश्वका सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। इसे कई चरणोंमें आयु वर्गके हिसाबसे चलाया जा रहा है। भारत सरकारकी मंशा है कि देशके हर नागरिकका टीकाकरण हो। यह सुरक्षाका सबसे बड़ा कवच है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने सभी राज्योंसे कहा है कि वे टीकाकरणकी गति बढ़ायें। साथ ही अपने राज्यमें स्वास्थ्य ढांचाकी भी मजबूती प्रदान करें। प्रधान मंत्रीका यह भी कहना है कि कोरोना संक्रमणसे लडऩेके लिए प्रमुख हथियार टीकाकरणमें किसी प्रकारकी कमी नहीं आनी चाहिए। यह आवश्यक भी है। देशमें दूसरी लहरने भयावह कोहराम मचाया है। नये संक्रमितों और मृतकोंका आंकड़ा हर रोज अपने पुराने रिकार्डको तोड़ रहा है। इसके साथ ही तीसरी लहरका भी खतरा मंडराने लगा है। गम्भीर चुनौतियां सामने हैं जिसका मजबूतीके साथ मुकाबला करना है। टीकाकरणके रफ्तारमें कमी आयी है। सभी केन्द्रोंको पर्याप्त मात्रामें टीके नहीं मिल पा रहे हैं। व्यवस्थागत खामियां भी हैं, जिन्हें दूर करनेकी जरूरत है। टीकेका उत्पादन तेज गतिसे करनेकी जरूरत है क्योंकि अभी जो दो टीके उपलब्ध कराये जा रहे हैं वह देशकी आबादीको देखते हुए पर्याप्त नहीं है। इसलिए सरकार निजी कम्पनियोंको टीका बनानेकी अनुमति देनेपर विचार कर रही है। केन्द्र सरकारको मौजूदा पेटेण्ट कानूनोंके तहत यह अधिकार है कि वह आपात जन-स्वास्थ्यकी परिस्थितियोंके चलते दूसरी कम्पनियोंको टीका बनानेकी अनुमति दे सकती है। ऐसा होना भी चाहिए। तीन सरकारी कम्पनियोंने टीका उत्पादनकी घोषणा भी कर दी है। इससे टीकेके उत्पादनमें तेजी आयेगी और टीकाकरणके मार्गमें संसाधनोंका संकट भी दूर होगा। भारतने वैश्विक स्तरपर एक अच्छी पहल यह भी की है कि टीकेके उत्पादनको बौद्धिक सम्पदा अधिकारसे मुक्त किया जाय। अमेरिकाने इसका जोरदार समर्थन किया है। अन्य राष्टï्र भी इसके लिए आगे आ सकते हैं। इससे पूरी दुनियामें सस्ती दरोंपर टीके उपलब्ध होंगे और कोई भी व्यक्ति इससे वंचित नहीं रहेगा। मानवताकी सेवामें भारतकी यह बड़ी पहल है।
मूल्यवृद्धिपर अंकुश जरूरी
कोरोना संक्रमणके कारण जहां लोगोंकी आमदनी घट रही है और खर्चे बढ़ रहे हैं, वहीं बढ़ती महंगी लोगोंकी भारी परेशानीका सबब बन रही है। पांच राज्योंके चुनावके दौरान तो पेट्रोलियम पदार्थोंके मूल्य स्थिर रहे लेकिन चुनाव खत्म होते ही इनके दामोंके बढऩेका सिलसिला एक बार पुन: शुरू हो गया, जो स्थितिको और विकट बना रहा है। अनाज, दाल, दलहन, चीनी, फल, सब्जी, दूध आदि आवश्यक वस्तुओंकी कीमतें आसमान छू रही हैं। वैसेमें बिजलीके औसत दाममें ५३ प्रतिशतकी वृद्धि हाहाकार मचानेवाली है। बिजली बाजार इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) में विद्युतका औसत हाजिर मूल्य अप्रैलमें ५३ प्रतिशत बढ़कर ३.७० रुपये प्रति यूनिट पहुंच गया। देशभरमें लाकडाउनके समय अप्रैल २०२० में बिजली मूल्यमें काफी कमी आयी थी, लेकिन लाकडाउन खुलनेके बादसे लगातार मांगमें वृद्धिको देखते हुए इसके दामोंमें वृद्धि की गयी है। बिजली और पेट्रोल-डीजलके दामोंमें वृद्धिसे महंगीसे राहत मिलनेके आसार कम है, जबकि औद्योगिक उत्पादनके प्रभावित होनेसे महंगी और बढऩेकी आशंका बढ़ गयी है। ऐसा नहीं है कि महंगीका कहर कोई पहली बार टूटा हो। महंगी पहले भी होती थी लेकिन थोड़े समय बाद नीचे आ जाती रही है। परन्तु इस समय बाजारमें आग लगी हुई है। वस्तुओंकी लागत और उनके बाजार भावमें कोई संगति नहीं रह गयी है। इसका बड़ा कारण आवश्यक सामानके व्यापारी और दुकानदार हैं जो संक्रमण कालमें मुनाफाखोरी और कालाबाजारीका अवसर तलाशनेसे बाज नहीं आ रहे हैं जिससे महंगीका दंश लोगोंको परेशान कर रहा है। शीघ्र ही मूल्यवृद्धि नियंत्रणके उपाय नहीं किये गये तो स्थिति और विस्फोटक होनेवाली है। महंगीपर अंकुश लगाना जरूरी है। इसके लिए सरकारोंको जहां विशेष प्रयास करने होंगे वहीं जिला प्रशासनोंको भी सड़कपर उतरकर कालाबाजारीपर रोक लगानेके प्रभावी काररवाई करनी होगी। केन्द्र सरकारको पेट्रोलियम पदार्थोंकी कीमतोंमें कमी लानेके प्रयास करने होंगे, तभी महंगीसे कुछ राहत मिल सकेगी।