बंडारू दत्तात्रेय
देशके लिए यह संकट काल है, युद्ध काल है। अब जो प्रश्न हमारे सामने सबसे ऊपर है, वह है कि कैसे हम पूर्ण रूपसे इस वैश्विक महामारीसे निबट पायंगे। हम अपने रोजमर्राके जीवन व्यवस्थाको कैसे पटरीपर ला सकते हैं, क्योंकि यदि यह स्थिति और लंबे समयतक चली तो अर्थव्यवस्था, बेराजगारी, शिक्षासे लेकर विकासका ढांचा तो प्रभावित होगा ही, समाजकी नकारात्मकता हमारे मनोबलपर विपरीत असर डाल सकती है। आज बुनियादी ढांचेकी जो परिस्थितियां हमारे सामने हैं, उसके लिए हम किसी एकको दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। आजादीके ७३ वर्षों बाद भी हम स्वास्थ्य सुविधाओंका मजबूत ढांचा ग्रामीण स्तरतक खड़ा नहीं कर पाये। अब समय है जब हमें ग्रामीण क्षेत्रों एवं जनजातीय एवं पर्वतीय क्षेत्रोंकी ओर विशेष ध्यान देनेकी आवश्यकता है। स्वास्थ्य उपकेंद्रोंको सुदृढ़ करनेकी आवश्यकता है। जहां मेडिकल एवं पेरामेडिकल स्टाफके साथ बुनियादी सुविधाएं जुटायी जानी चाहिए। कोरोना कालमें यह जरूरी है कि प्रदेश स्तरपर स्वयं इस ओर निर्णय लिये जायं। आंकड़ोंपर नजर डालें तो भारतके ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्रमें लगभग २.३७ लाख स्वास्थ्य कर्मियोंकी कमी है, जो भारतमें स्वास्थ्यकी स्थितिको दर्शाती है। इस समय सबसे अधिक आवश्यकता केंद्र एवं राज्य सरकारोंको मिलकर सहयोग करने की है। यह कोरोना महामारीकी दूसरी लहर है। तीसरी लहरके लिए समय रहते अधोसंरचना तैयार होनी चाहिए। कमसे कम प्राथमिक स्तरपर ढांचागत विकास जरूरी है। अधोसंचना विकासके लिए सबसे जरूरी है बजटमें स्वास्थ्य क्षेत्रमें धन आवंटनको बढ़ाना। अभीतक ज्यादातर प्रदेश सरकारें स्वास्थ्य क्षेत्रमें कुल बजटका करीब ३ से ३.५ प्रतिशत बजट व्यय करती हैं। केरल और मेघालय जैसे राज्य बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जहां करीब-करीब आठ प्रतिशततक स्वास्थ्य क्षेत्रके लिए बजटमें प्रावधान किया गया है। जबतक सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्रके लिए बजटमें लगभग आठ-दस प्रतिशततकका प्रावधान करनेकी व्यवस्था नहीं की जाती, तबतक बुनियादी सुविधाओंके लिए इसी तरह जूझना पड़ेगा। इसपर केंद्र एवं राज्य सरकारोंको सोचनेकी आवश्यकता है। वित्त वर्ष २०२१-२२ के केंद्रीय सरकारके बजटमें स्वास्थ्य क्षेत्रके लिए ७१२६८.७७ करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं जो पिछले वर्षके बजट अनुमानोंसे लगभग दस प्रतिशत अधिक है।
वित्त वर्ष २०२० के बजट अनुमानमें केंद्र और राज्यों द्वारा कुल बजटीय व्यय ६०.७२ लाख करोड़ रुपये था। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भमें वित्त वर्ष २०२० के बजटमें स्वास्थ्य सेवापर सरकारका खर्च १.६ प्रतिशत था जो वित्त वर्ष २०१९ के मुकाबले १.५ प्रतिशत छोटी-सी वृद्धिका अनुमान है। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकारें इस दिशामें सोच नहीं रही हैं। हालमें हरियाणा सरकारने ५० गांवोंमें आइसोलेशन सेंटर बनानेका निर्णय लिया है। यदि किसी व्यक्तिको आइसोलेशनकी जरूरत पड़ती है और उसके घरमें जगह नहीं है तो गांवमें ही आइसोलेशन सेंटरमें ठहराया जायगा। हरियाणा राज्यके इस मॉडलको अन्य राज्य भी अपना सकते हैं। कोरोनाकी दूसरी लहरमें जहां कई प्रदेश आक्सीजनकी कमीको झेल रहे थे, वहीं छत्तीसगढ़ राज्यने कोरोनाकी प्रथम लहरके दौरान ही इस स्थितिकी गंभीरताको समझते हुए १५ नये आक्सीजन जेनरेशन प्लांट स्थापित कर कई राज्योंको इसकी आपूर्ति सुनिश्चित बनायी। यह उदाहरण पूरे देशके अन्य राज्योंके लिए भी है। कोरोनाके टीकाकरणको व्यवस्थित किये जानेकी आवश्यकता है। हमें याद होगा कि कैसे पोलियो अभियानको बिना किसी रुकावटके पूरे देशमें सुचारू रूपसे कार्यान्वित किया गया था। ठीक वैसी ही व्यवस्था अब भी लागू की जा सकती है। आंगनवाड़ी, आशावर्कर, स्वयं सहायता समूह इत्यादिकी भूमिका ग्रामीण क्षेत्रोंमें काफी अधिक है। वह टीकाकरण, जांच, दवाई देना और जागरूकता जैसे कार्योंकी व्यवस्थाएं अधिक प्रभावशाली तरीकेसे कर सकती हैं। कोरोना महामारीसे बचावमें लॉकडाउनकी बंदिशोंने सबसे अधिक प्रभावित प्रवासी मजदूरों, गरीब एवं छोटे व्यापारियोंको किया है। आज तत्काल जरूरत इस बातकी है कि उन्हें खाद्यान्न, जरूरी चीजोंके अलावा राहत राशि मिलनी चाहिए ताकि वह अपनी रोजमर्राकी जरूरतोंको पूरा कर सकें।
कोरोना महामारीके खिलाफ टीका ही सुरक्षाका सबसे मजबूत हथियार बना है। हम अपने वैज्ञानिकोंका अभिनंदन करते हैं, विशेषकर भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियाके वैज्ञानिक, जिन्होंने दिन-रात शोध कर एक सालके भीतर वैक्सीनको तैयार किया ताकि दवा निर्माणके क्षेत्रमें देशकी छविको और निखारा जा सके। इन कंपनियों द्वारा विकसित वैक्सीनके उत्पादनको बढ़ानेके लिए इनकी मल्टीलैबको विस्तार देनेकी आवश्यकता है। देशमें टीकारण अभियान तेजीसे आगे बढ़ रहा है। कोरोनासे मुकाबलेके लिए सरकार इस सालके अंततक पूरी आबादीका टीकाकरण करना चाहती है। इस लक्ष्यको पूरा करनेके लिए तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं। हमें कुछ बातोंपर विशेष ध्यान देना है, जैसे वायरसको फैलने नहीं देना है। सरकारोंको जितनी पाबंदियां लगानी पड़े, लगाये ताकि लोगोंकी कीमती जानें बचायी जा सकें। दो, लॉकडाउनको मानव दृष्टिसे लगाया जाना चाहिए। इसमें मानवीय पहलू होना चाहिए। तीन, गरीब एवं प्रवासी मजदूरोंके लिए सामाजिक सुरक्षापर ध्यान दिया जाना चाहिए। चार, मास्क पहनें, उचित दूरी रखें और हाथोंको सेनेटाइज करते रहें। ग्रामीण स्तरतक स्वास्थ्यका बुनियादी ढांचा मजबूत करने, टीकाकरणको बढ़ाने, स्वास्थ्य परीक्षणपर जोर तथा आइसोलेशनसे आईसीयूतकके गोल्डन पीरियडको कैसे संभाल कर रखना है, इसपर ध्यान देनेकी आवश्यकता है। इस महामारीसे निबटनेके लिए हमें मिलकर कार्य करना है। आपसी सहयोग, समन्वय और योगदानसे ही हम इस महामारीपर विजय प्राप्त कर सकते हैं।