दीपचंद
विलियम शेक्सपियरका चिंतन है, अधिकतर लोगोंके दुख एवं मानसिक अवसादका कारण दूसरोंसे अत्यधिक अपेक्षा है। अत्यधिक अपेक्षा आपसी रिश्तोंमें दरार पैदा कर देती है। प्रत्येक मनुष्यको यह बात भली-भांति समझ लेनी चाहिए कि हम स्वयं पूर्ण नहीं हैं तो दूसरा कैसे पूर्ण हो सकता है। इस धरतीपर शायद ही कोई मनुष्य हो जो हमारी सभी अपेक्षाओंकी पूर्ति कर दे। वास्तवमें हमारे दुख, मानसिक तनाव हमारी गलत अपेक्षाओंका परिणाम होते हैं। हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि हम इस दुनियामें दूसरोंकी अपेक्षाके अनुसार जीने नहीं आये हैं, ऐसे ही दूसरे भी हमारी अपेक्षाओंपर जीवन नहीं जी सकते। यही अपेक्षा पारिवारिक विघटनका मूल कारण है। हमारे संबंधोंमें भी खटास इसीसे आती है। मनुष्यके जीवनमें यदि आनंद एवं शांति नहीं है तो उसकी सारी भौतिक समृद्धि व्यर्थ है। अपेक्षाओंका निर्धारण अपनी सीमाओंमें रहकर करें। अपनी अपेक्षाओंमें कटौती करें। अपेक्षाओंके मिथ्या भ्रम जालसे निकलकर स्वयंपर निर्भर रहें। जीवनमें सुख, प्रसन्नताका यही मंत्र है। महात्मा बुद्धने मनमें पलनेवाली इसी अत्यधिक अपेक्षाको कामना या इच्छाकी परिभाषा देते हुए कहा है, यही मनुष्यके जीवनको वास्तविक लक्ष्यसे भ्रमित करके मानसिक रूपसे दरिद्र बना देती है। हर व्यक्तिकी योग्यता अलग है और प्रत्येक व्यक्तिका मानसिक दृष्टिकोण भी अलग है। यह आवश्यक नहीं है कि अमुक व्यक्ति हमारे विचारसे सहमत हो। यही अपेक्षा है। जब यह अपेक्षा पूरी नहीं होती तो उसी समय हमारा मानसिक संतुलन भी बिगड़ जाता है। हमारी अपेक्षाओंकी उड़ान अप्रत्याशित नहीं होनी चाहिए। विवेकी मनुष्य वही है जो अपेक्षाकी भी उपेक्षा करके वास्तविकताके धरातलपर अपना जीवन जीता है। इस अत्यधिक अपेक्षा रूपी दलदलमें धंसनेसे बचनेका उपाय है स्वयं अपने जीवनकी राह चुनें। अपने लक्ष्यके प्रति स्वयं जाग्रत रहें और अपनी अपेक्षाको दूसरोंके कंधोंपर न लादकर स्वयं योग्य एवं आत्मनिर्भर बनें। आत्मविश्वास जाग्रत करें। दूसरोंके सामने अपनी अपेक्षाओंकी पूर्तिकी भिक्षा न मांग कर स्वयं सशक्त बनें, यही आनन्दमय जीवनका सूत्र है। हमारा प्रत्येक दिन एक अपेक्षासे शुरू होता है और जब वह पूर्ण नहीं होती तो दुखके अनुभवके साथ समाप्त होता है। अत्यधिक अपेक्षाओंका यही चक्रवात मनुष्यकी मानसिक शांति एवं आनंदको तहस-नहस कर देता है। जो दूसरोंके माध्यमसे भी पूर्ण नहीं हो सकती, ऐसी व्यर्थकी अपेक्षाओंको मनमें आने ही नहीं दें। ऐसी प्रवृत्तिसे ही जीवनमें स्थायी शांति एवं आनन्दका संचार होता है।