सम्पादकीय

जब भारतकी सुरक्षाको सर्वोपरि रखा गया


अभिनय आकाश
सत्ताके लिए नैतिकताके मूल्य जानबूझकर तोड़े गये, भाषाकी मर्यादा भी टूटती रही। महाभारत क्या है। सत्ताके लिए निरन्तर टूटती मर्यादाएं। महाभारतके युद्धके वक्त तमाम तरहके कायदे तय हुए थे जैसे सूर्यास्तके बाद कोई शस्त्र नहीं उठायेगा, स्त्रियों, बच्चों और निहत्थोंपर कोई वार नहीं करेगा। महाभारत तो परम्पराओंकी कहानी है लेकिन हिन्दुस्तानकी सबसे बड़ी परम्परा लोकतंत्रमें भी कई ऐसी कहानियां हैं जिसने समय-समयपर यह साबित किया है कि राजनीतिमें भी कई राजनेता ऐसे भी होते हैं जिसने सियासतकी काली कोठरीमें पांच दशक बितानेके बाद भी अपने दामनपर कभी भी एक दागतक नहीं लगने दिया। इसके साथ ही जिसने राजनीतिको एक नये सिरेसे रंगा, लिखा, समझा और देशहितके लिए चुनावी मुद्दोंको तिलांजलि देना सहजतासे स्वीकार भी किया।
यह १९९६ की बात है गर्मियोंका महीना चल रहा था। केंद्रकी सत्तापर काबिज नरसिम्हा रावकी सरकार अपने अंतिम वर्षसे गुजर रही थी। देशमें आम चुनाव होने थे और राजनीतिक दलोंका चुनाव प्रचार अभियान अपने चरमपर था। एक समाचारपत्रने खबर चलायी कि सुखोई लड़ाकू विमानका समझौता साइन होनेसे पहले लगभग ३५ करोड़ डालर रूसी सरकारको दिये गये। इस रिपोर्टमें आशंका जतायी गयी कि पैसा एक तरहसे घूसके रूपमें सत्ताधारी पार्टीको वापस मिल गया क्योंकि उन्हें चुनावी मैदानमें जाना था। इस खबरके सामने आते ही भाजपाने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। लेकिन तभी भाजपा डीलको लेकर किए जा रहे विरोधसे एकाएक पीछे हट गयी। पूर्व आईएएस अधिकारी शक्ति सिन्हा द्वारा लिखी पुस्तकके अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इस मुद्देको नहीं उठानेका फैसला किया गया। अंग्रेजी अखबारमें प्रकाशित इस पुस्तकके कुछ अंशके मुताबित वाजपेयीको लगा कि इस मुद्देको उठानेसे भारतकी सुरक्षा जरूरतोंसे समझौता किया जायगा। नरसिम्हा रावका मानना था कि उन्होंने विवादास्पद लेकिन सही निर्णय लिया। देशमें आम चुनाव हुए और कांग्रेस चुनाव हार गयी। लेकिन बादमें बनी संयुक्त मोर्चा सरकारके रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादवने यह सौदा पूरा कर लिया।
अब आते हैं इस डिफेंस डीलवाली कहानीके विस्तारपर। यह खबर प्रकाशित होनेके बाद थोड़ी देरके लिए ही सहीपर चर्चामें रही कि नरसिम्हा राव सरकारके अंतिम दिनोंमें जल्दबाजीमें डील फाइनल हुई। इसके साथ ही सरकारने कोई अंतिम कीमत तय किये बिना एडवांसके रूपमें ३५ करोड़ डालरकी राशिका भुगतान किया। डील साइन करनेके पीछे हड़बड़ाहटकी भी बात उठी। लेकिन बादमें ऐसी भी बातें सामने आयी कि रूसके राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिनने खुदके देशमें चुनाव नजदीक होने और सुखोई फैक्टरी उनके क्षेत्रमें आनेकी बात रावको बतायी। इसके साथ ही हालत खराब होनेसे स्टाफको वेतन नहीं दिया जा रहा है। ऐसी स्थितिमें भारतके एडवांस पेमंटसे उन्हें वेतन दिया जा सकेगा और यह बात जादूकी तरह चुनावमें असर भी करेगा।
मसला जो भी रहा हो लेकिन अक्सर जैसा कि कई रक्षा समझौतोंके साथ होता रहा है, गंभीर आरोप लगाये जाते रहे, बड़ा चुनावी मुद्दा भी बना और कई सरकारें भी गंवानी पड़ी। लेकिन भाजपाने इस मामलेमें चुप्पी साध ली। पुस्तकके अनुसार वाजपेयीको इस बातका भय था कि यदि यह अच्छा एयरक्राफ्ट है तो घोटालेकी अप्रमाणित बातोंसे डील खराब हो सकती है। जिसके बाद १९९६ के लोकसभा चुनाव अभियानमें वाजपेयीने इस मुद्देको नहीं उठानेका फैसला लिया। क्योंकि वाजपेयीको लगा कि भारतकी सुरक्षा जरूरतोंसे समझौता नहीं किया जा सकता। वर्तमान समयमें इस तरहकी घटनाएं रक्षा सौदोंपर राजनीतिक लड़ाईके विपरीत एक प्रस्ताव पेश करती है। नरसिम्हा रावकी शब्दोंमें कहे तो श्विवादास्पद लेकिन सही निर्णयके बाद कांग्रेस चुनाव हार गयी। फिर यह सौदा सपा सदस्य और संयुक्त मोर्चा सरकारमें रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादवने पूरा किया। आजके दौरमें जब संसद परिसर राजनीतिक दलोंके आरोप.प्रत्यारोप और सियासी अखाड़ा बना रहता है। ऐसे दौरमें किसी अच्छे कामकी सराहना तो दूरकी बात है उसको लेकर मंशातकपर गंभीर सवाल उठाये जाते हैं। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयीने संसदमें मुलायम सिंहकी सराहना की और उनकी प्रशंसाके कुछ शब्द तो भाजपाके कई सदस्योंको आश्चर्यतकित कर गये थे।