पूर्वी लद्दाखमें भारत-चीनके बीच लम्बे समयसे जारी गतिरोधपर कड़ा रुख अपनाते हुए चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल विपिन रावतने दो-टूक कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बहाल नहीं हुई तो भारत कड़ा कदम उठा सकता है। जनरल रावतका पूर्वी लद्दाखमें सेनाको किसी भी दुस्साहसके लिए हर समय तैयार रहनेका निर्देश चीनको कड़ा सन्देश है। थिंक टैंकके एक कार्यक्रममें शुक्रवारको उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाखमें भारत और चीन सामान्य तरीकेसे पुरानी स्थिति बहाल करनेमें सक्षम हैं जो क्षेत्रमें शान्ति और स्थिरताके लिए दोनों देशोंके हितमें है। एलएसीपर भारत और चीनको पिछले साल अप्रैलसे पहलेकी स्थिति बनानेका प्रयास करना चाहिए। चीन इस दिशामें सार्थक कदम उठायेगा ऐसी सम्भावना बहुत कम है। चीनकी नीयतमें खोट है जिससे दोनों देशोंके सैनिकोंकी वापसी सैन्य स्तरके समझौतेके बाद भी अधरमें है। चीनकी कुचालोंसे भारतीय सेना प्रमुख अनभिज्ञ नहीं हैं। उन्होंने आशंका जतायी है कि चीन एलएसीपर पुरानी आक्रामक स्थिति बना सकता है, इसलिए सेनाको पहलेकी तरह हालातके मुताबिक जवाबी काररवाईके लिए तैयारी रखनी होगी। एलएसीपर चीनकी गतिविधियोंपर भारतकी सतर्क निगाह है। साथ ही कोई भी अप्रत्याशित कदम उठाने और जवाब देनेके लिए पूरी तरह तैयार भी है। भारतने पैंगोंग लेक इलाकेमें चीनको जिस तरह मुंहतोड़ जवाब दिया था उसी तरह भविष्यमें भी करनेमें सक्षम है। भारतकी मजबूत होती सैन्य शक्ति और वैश्विक स्तरपर बढ़ती साखने पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तानकी नींद उड़ा दी है। इसके साथ ही विश्वकी बड़ी शक्तियोंका भारतके साथ खड़े होनेसे उनकी बेचैनी बढ़ी है। जम्मू-कश्मीरमें चुनावके लिए परिसीमनकी प्रक्रियाके गति पकडऩेसे पाकिस्तान बौखला गया है। घाटीमें सामान्य होती स्थितिको फिरसे अशांत करनेके लिए आतंकी गतिविधियोंमें तेजी आयी है। ड्रोन हमलेको लेकर एक नयी चुनौती सामने आयी है। बम गिराते ड्रोन भारतके लिए बड़ा खतरा है। इसके खिलाफ तकनीकके उपयोगकी जरूरत है। दूसरी ओर इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोगकी ड्रोनसे जासूसी चिन्ताका विषय है। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी भारतीय मिशनकी इस तरह जासूसी की गयी हो। इसकी वैश्विक स्तरपर भत्र्सना की जानी चाहिए। लद्दाखमें जो स्थिति बन रही है उसके लिए चीन जिम्मेदार है। उसके विस्तारवादी नीतिसे टकरावका माहौल बन रहा है। भारतको इन दोनों देशोंसे निबटनेके लिए कड़े कदम उठानेकी जरूरत है।
सामयिक पहल
देशमें बढ़ती जनसंख्या एक गम्भीर समस्या बन गयी है। बढ़ती हुई जनसंख्या देशके संसाधनोंपर भारी पड़ रही है, जिससे देशका विकास भी प्रभावित हो रहा है। जनसंख्या वृद्धिपर रोक नहीं लगायी गयी तो बेरोजगारी, भुखमरी सहित अनेक समस्याएं देशमें बढ़ेगी इसलिए जनसंख्या वृद्धिपर रोक लगानेके लिए प्रभावी उपाय आवश्यक हो गया है। हालांकि कई राज्योंने इस दिशामें कदम उठाये हैं। असमके बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेशमें जहां जनसंख्या नियंत्रणके लिए कानूनोंका अध्ययन शुरू कर दिया गया है वहीं बिहार सरकारने दोसे अधिक बच्चोंवालेको चुनावसे वंचित करनेका निर्णय कर स्वागतयोग्य और सामयिक पहल की है। बिहार सरकार त्रिस्तरीय पंचायत और ग्राम कचहरियोंके चुनावमें दोसे अधिक बच्चेवालोंको अयोग्य घोषित करनेका मसौदा तैयार कर रही है। हालांकि पंचायतीराज नियमावलीमें इस तरहका कोई प्रावधान वर्तमानमें नहीं है। इसके लिए कानूनमें संशोधन किया जायगा। सरकारका मानना है कि जनताको जागरूक करनेके लिए पंचायत प्रतिनिधियोंसे उम्दा माध्यम और कोई नहीं हो सकता है। कानूनमें संशोधनसे बिहारके १२ करोड़ लोगोंको बड़ा सन्देश जायगा। जनसंख्या नियंत्रणके लिए दो बच्चोंकी नीतिने १९७५ में आपातकालके दौरान जोर पकड़ा था। लोगोंकी जबरदस्ती नसबंदी की गयी, जिसका विपरीत असर पड़ा। आपातकाल हटनेके बाद देशकी जनसंख्यामें तेज उछाल देखनेको मिला था। इसलिए कानूनके साथ महिलाओंकी शिक्षा, परिवार नियोजनके प्रति जागरूकता और गर्भ निरोधककी आसान उपलब्धताके लिए अभियान भी जरूरी है। टैक्समें छूट, यात्रा सब्सिडी, स्वास्थ्य बीमाके लाभ और उच्च शिक्षणमें प्राथमिकता जैसी सुविधा देनेसे लोगोंमें जागरूकता बढ़ेगी। दोसे अधिक बच्चेवालोंको सरकारी योजनाओंके लाभसे वंचित करनेका निर्णय भी जनसंख्या नियंत्रणमें सहायक होगा। इसका राजनीतिक विरोध किसी भी दशामें उचित नहीं है, क्योंकि राष्टï्रके सन्तुलित विकासके लिए आबादीका सन्तुलित होना बहुत जरूरी है।