हृदयनारायण दीक्षित
सावन वर्षाका माह है। मेघ धरतीतक उतर आते हैं। यह शिव उपासनाका समय है। शिव अनुभूतिके निराले देवता हैं। शिव महादेव हैं। वैदिक देव सोम वनस्पतियोंके राजा हैं। शिव अपने मस्तकपर सोम धारण करते हैं।
सभी देवता सिर्फ देव हैं। शिव महादेव हैं। पौराणिक शिवके गले में सर्पोंकी माला है। वे विषपायी भी हैं। ऋ ग्वेदके देवता हैं रूद्र। वे तीन मुंह वाले हैं। रूद्र, ‘त्रयम्बकं यजामहे सुगंन्धिं पुष्टि वर्धनम्Ó-पोषण संवर्धन करते हैं। अकाल मृत्यु नहीं होने देते। मोक्ष भी दिलाते हैं। रूद्र शिव सर्वत्र लोकप्रिय महादेव हैं। कुछ पश्चिमी विद्वानोंने हड़प्पा सभ्यताकी खोज के आधारपर शिवको वैदिक रूद्र देव से अलग देवता बताया। मार्शल का कथन (मोहनजोदड़ो एण्ड दि इंडस सिविलाइजेशन, खण्ड) है वैदिक देवरूद्रकी उपासना शिव से मिला दी गयी। लेकिन यह बात गलत है। शिवरूद्र यहां ऋ ग्वेद से लेकर उत्तर वैदिक कालीन उपनिषदोंमें है। रामायण, महाभारत एवं परवर्ती साहित्यमें भी है। शिव आस्था और उपासनामें सांस्कृतिक निरंतरता है। यजुर्वेदके १६वें अध्याय में भी शिव आराधन है। ऋ षि रूद्र देवका निवास पर्वत की गुहा में बताते हैं। उन्हें नमस्कार करते हैं। चौथे मन्त्र में वे रूद्र ‘शिवेन वचसाÓ है, शिव हैं। वे प्रमुख प्रवक्ता हैं। नीलकण्ठ ‘नमस्ते अस्तु नीलग्रीवायÓ हैं। वे सभारूप हैं। सभापति भी हैं। सेना और सेनापति भी हैं। वे सृष्टिरचना के आदिमें प्रथम पूर्वज हैं। वे ग्राम गली में विद्यमान हैैं। वे कूप और नदी में भी हैं। वायुप्रवाह, प्रलय, वास्तु, सूर्य, चन्द्र में भी शिव की उपस्थिति हैं। वे द्युलोक, अन्तरिक्ष व पृथ्वी तक व्याप्त हैं। मन्त्र ४९ में वे रूद्र शिव- ‘या ते रूद्रशिवाÓ हैं। भारतीय संस्कृति की त्रयी Óसत्य, शिव और सुंदरÓ में प्रकट हुई है। इस त्रयीमें शिव का अर्थ लोक मंगल है।
रूद्र देव अथर्ववेद में भी हैं। यहां ११वें अध्याय में ‘रूद्र सूक्तÓ है। रूद्र यहां ‘भव’ (उत्पत्ति) हैं। उनके हजारों शरीर और आंखें हैं। वे अन्तरिक्ष मण्डल के नियन्ता हैं। उनको नमस्कार है। वे ‘समदर्शीÓ- सबको एक समान देखते हैं। ऋ षि अथर्वा रूद्र (शिव) के प्रति भावविभोर जान पड़ते हैं ”नमस्तेऽस्तवायते नमो अस्तु परायते। नमस्ते रूद्र तिष्ठत आसीनायोत ते नम:- हमारी ओर आती शिवशक्ति, हमारी ओर से लौटती शिवशक्ति, हमारे पास बैठी, खड़ी शिवशक्तिको सभी परिस्थितियोंमें नमस्कार है। सायं नमस्कार, प्रात: नमस्कार, रात्रि-दिवा और प्रतिपल नमस्कार। अथर्ववेद में उनसे सुरक्षा की प्रार्थनाएं हैं। यहां शिव वैयक्तिक सत्ता नहीं है। शिवत्व ने समूचे अस्तित्व को व्याप्त कर रखा है। शिव नटराज हैं। भरत मुनि के लिखे ‘नाट्यशास्त्रÓ में उल्लेख हैं कि ब्रह्मा ने शिव से भरतके नाटक देखनेका आग्रह किया। शिवने नाटक देखे, इनमें नृत्य और संगीत नहीं था। शिव ने ब्रह्मासे कहा, संध्याके समय नृत्य करते हुए मैंने नृत्य का निर्माण किया। मैंने इसे अंगहारोंसे, जो कारणों से मिलकर निर्मित होते हैं, जोड़ते हुए और भी सुन्दर बनाया है। तुम इन अंगहारोंका नाटक की पूर्व रंग विधि में प्रयोग करो। भरत मुनि के नाट्यशास्त्रमें शिव ही नृत्यके आदि रचनाकार हैं। नृत्य आनन्दरस की भावपूर्ण, रसपूर्ण देह-अभिव्यक्ति है। भरतमुनि के नाट्शास्त्रके अनुसार, ‘शिव ने रेचक, अंगहार तथा पिंडिबन्धों के सृजन-कार्य को पूर्ण करने के पश्चात् उन्हें तंडु मुनि को प्रदान किया। इन्ही तंडु ने गान वाद्य से संयुक्त कर जिस (नए) नृत्त प्रयोग की सर्जना की वह ताण्डव नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाभारत (अनुशासन पर्व १४.५६) में शिवनृत्य और संगीतका वर्णन है। वे अपने हास्य, नृत्यसंगीत उल्लासमें सबको सम्मिलित करते हैं, ‘हंसते, गायते, च वे नृत्यते च मनोहरम्। वाद्ययत्यति वाद्यानि विचित्राणि गणैमुता:।Ó वे अपने गणोंके साथ भी हंसते गाते नृत्य करते हैं। शिव शास्त्र ही नहीं लोक आनंद के भी देवता हैं।
श्वेताश्वातरोपनिषद् उत्तर वैदिक काल की है। इसके तीसरे अध्यायकी शुरूआतमें कहते हैं, जो ईश्वर जगतके अधिपति ‘ईशत ईशनीभि:Ó हैं, उनको जानकर लोग अमर हो जाते हैं। शिवत्व का बोध अमरतत्व की प्राप्ति है। फि र बताते हैं ‘एको हि रूद्रो न द्वितीययाय-वे एक ही रूद्र हैं। कोई दूसरा नहीं। उनकी आंखें सब जगह हैं। सब जगह मुख हैं। हाथ हैं, पैर हैं। यहां रूद्र इन्द्रादि देवताओं को उत्पन्न करने वाले हैं। ‘इस उपनिषद् में यजुर्वेदके रूद्रसम्बन्धी मन्त्र हैं। श्लोक ८ में यजुर्वेदका दोहराव है, ‘वे मृत्यु-बन्धन के दु:ख से मुक्ति दिलाते हैं।
महाकवि कालिदास शिव आस्तिक थे। वे ‘कुमारसम्भव’ में कहते हैं, ‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश एक ही मूर्तिके तीन रूप हैं। कभी शिव विष्णुसे बढ़ जाते हैं, कभी ब्रह्मा इन दोनों से और कभी ये दोनों ब्रह्मा से बढ़ जाते हैं। यहां ब्रह्मा भी शिवमहिमा गाते हैं, शंकर अंधकार से पार रहने वाले परम तेज हैं। अविद्या उन्हें छू नहीं पाती। हम और विष्णु उनकी महिमा का ठिकाना नहीं लगा पाए। कालिदास शिवभक्त थे। ब्रह्मवादी थे। ब्रह्म को शिव मानते थे। तुलसीदास भी दार्शनिक स्तरपर ब्रह्मवादी थे। भक्तिमें रामभक्त थे। समूची सृष्टिको सीयराममय देखते थे लेकिन उन्होंने अपने अराध्य श्रीराम से शंकर की उपासना करवाई। शिवद्रोही मम दासको स्वप्नमें भी नापसंद करने की बात स्वयं श्रीराम ने कही। महाभारत की रचना तुलसी की रामचरितमानस से पुरानी है। जैसे श्रीराम मर्यादापुरूषोत्तम होकर भी शिव उपासक हैं, वैसे ही श्रीकृष्ण भी शिव-उपासक थे। महाभारत (अनुशासन पर्व) में कृष्णकी शिव उपासनाका वर्णन है। कृष्ण की एक पत्नी जाम्वंती के पुत्र नहीं हुए। कृष्ण पुत्र की इच्छा से तपके लिए हिमालय गए। उनकी भेंट शिवभक्त उपमन्यु से हुई। उपमन्यु ने कृष्ण को बताया, आप भगवान शिवको खुश कीजिए। आप अपने समान पुत्र पाएंगे (अनुशासन पर्व)। सारे देवता अमर हैं परन्तु शिव की बात दूसरी है। वे पाशुपत अस्त्र से युक्त हैं। इस अस्त्र के लिए ब्रह्मा और विष्णु भी अबध्य नहीं हैं। ब्रह्मा ने रथंतर साम के जरिए शिव आराधना की थी। इन्द्र ने भी शतरूद्री पढ़ी।
श्री कृष्ण ने तप किया। श्री कृष्णको शिव के दर्शन मिले। श्री कृष्ण ने कहा, सहस्त्रों सूर्यों जैसा तेज दिखा। अर्जुनने श्री कृष्ण का विश्वरूप देखकर जो शब्द कहे थे, ठीक वही शब्द दिव्य सूर्य सहस्त्राणि श्री कृष्ण ने शिवदर्शन के बाद कहे। श्रीकृष्ण फि र कहते हैं, ‘जब मैंने भगवान हर (शिव) को देखा, मेरे रोंगटे खड़े हो गए। १२ आदित्य, ८ वसु, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार आदि देव महादेव की स्तुति कर रहे थे। इन्द्र और विष्णु अदिति और ब्रह्मा शिव के निकट रथंतर सामगान कर रहे थे। यहां कृष्ण ऋ ग्वैदिक परम्परावाले देवताओंके नाम दुहराते हैं। आगे कहते हैं, पृथ्वी, अंतरिक्ष, ग्रह, मास, पक्ष, ऋ तु संवत्सर, मुहूर्त, निमेष, युग, चक्र तथा दिव्य विद्याएं शिव को नमस्कार कर रहे थे। यहां विज्ञान की टाइम-स्पेस दिक्काल धारणा भी है। काल की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी इकाई शिव आराधक है। यहां काल भी शिव आराधन से शक्ति लेते हैं। शिव महाकाल है। शिव बड़े निराले देवता हैं। वे कृपालु हैं। भोलेनाथ हैं। वे संपूर्णणताके महादेव है। महायोगी है। सौन्दर्य उनकी अनुमतिसे खिलता है। काम उद्दीपक बसंत उनके अनुशासनमें हैं। रामचरित मानसके अनुसार कामदेवने वसन्त फैलाया। उन्होंने तीसरी आँख खोली। काम भस्म। कामपत्नी रति बहुत रोई। शिवने काम को पुनर्जीवन दिया। वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। परम योगी हैं। नर्तक भी हैं। नटराज हैं। अभिनेता भी हैं। परम शक्तिशाली भी हैं। सावन माह में पूरा भारत शिव उपासना करता है। उन्हें नमस्कार है।