पटना

बेगूसराय: 5 वर्षों में चार जिला शिक्षा पदाधिकारी का हुआ तबादला


बेगूसराय (आससे)। जिला शिक्षा पदाधिकारी बेगूसराय की बनी शर्मिला राय। बताते चलें कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी शिवहर से तबादला हो कर बेगूसराय जिला शिक्षा पदाधिकारी बनाई गई है। वही वर्तमान जिला शिक्षा पदाधिकारी रजनीकांत प्रवीण को बेतिया का जिला शिक्षा पदाधिकारी बनाया गया है। बेगूसराय में जिला शिक्षा पदाधिकारी 5 वर्षों में चार बने। लेकिन इनका कार्यकाल 19 महीना रहा है। जबकि जिला शिक्षा पदाधिकारी का कार्यकाल किसी भी जिला में 3 वर्ष का होता है। लेकिन यह जिला ही एक ऐसा जिला है जहां 5 वर्षों में चार जिला शिक्षा पदाधिकारी बनाए गए।

इसके पीछे कई कारण रहे जिसमें शिक्षकों की राजनीति सबसे अहम मानी जा रही है। जो भी जिला शिक्षा पदाधिकारी शिक्षकों के गुटबाजी में फंसे मानो उनका पतन का काल निकट आ गया हो। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि 16 फरवरी 2016 से 31 जनवरी 2022 तक 5 जिला शिक्षा पदाधिकारी बेगूसराय में आये। बताते चलें कि 2016 में 307 शिक्षकों का स्थानांतरण और प्रोन्नति किया गया था। जिसमें 62 शिक्षकों का विवाद था। जिसमें भी शिक्षकों की गुटबाजी थी।

एक गुट को खुश करने के चक्कर में तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी दिनेश साफी के ऊपर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। जिसके कारण उनके खिलाफ कई आंदोलन भी हुए थे। जिसके बाद उनके ऊपर हाइकोर्ट में केस दर्ज करवाया गया।जिसके बाद शिक्षा विभाग ने उन्हें निलंबित कर दिया था और तत्कालीन तिथि से और स्थापना डीपीओ श्याम बाबू राम को 14 अक्टूबर 2017 को प्रभार के रूप में दे दी गई थी।

पुनः पूर्णरूपेण जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर 12 मई 2018 को बनाए गए थे। लेकिन यह भी विवादों से बच न सके और डीपीओ स्थापना नसीम अहमद और श्याम बाबू राम के बीच कागजी दौड़ शुरू हो गई। जिसके कारण विभाग में कई कार्य भी प्रभावित होने लगे थे। जिसके बाद उन्हें स्थानांतरित करते हुए पूर्णिया भेज दिया गया तो वही देवेंद्र कुमार झा को बेगूसराय जिले का जिला शिक्षा पदाधिकारी बनाया गया।अब यह विवाद धीरे-धीरे थमने लगी लेकिन विभागीय विवाद में नहीं आए। लेकिन शिक्षकों के गुटबाजी के चक्कर में फस गए।

जहां एक गुट इनसे खुश चल रही थी तो वहीं दूसरी गुट नाखुश चल रहे थे। यही नहीं कई शिक्षकों का मानना है कि बेगूसराय में जो भी जिला शिक्षा पदाधिकारी पदभार ग्रहण करते हैं तो वह 18 से 20 माह से भी ज्यादा टिक नहीं पाते हैं। यह वाकया वाकई में चरितार्थ होती दिख रही है। जुलाई 2020 में बेगूसराय के जिला शिक्षा पदाधिकारी के पद पर रजनीकांत प्रवीण का तबादला हुआ था। इनके कार्यकाल में कई कार्य होते देखने को भी मिला। लेकिन इनके साथ लोकडौन डीईओ का तमगा जरूर लगा। लेकिन अपने कार्यकाल में इन्होंने जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय जो कि जर्जर अवस्था में थी उसे बेहतर रंग रूप देकर निर्माण करवाएं।

साथ ही जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में सही हालात में शौचालय भी नहीं थे जिसका इन्होंने निर्माण करवाया। वही इन्होंने गोल्डन ऐप लांच कर शिक्षकों को समय पर विद्यालय भेजने का कार्य भी किया। तो वही इंटर और मैट्रिक की परीक्षा में मनमाफिक परीक्षा केंद्रों पर ड्यूटी लगने की परंपरा को समाप्त कर दी। शिक्षक का नियोजन कार्य भी शांति पूर्ण करवाने में सफल रहे। यह भी दिगर सत्य है कि अपनी बौद्धिक कला से शिक्षकों को अपना चेहता बना लेते थे। किसी भी कार्य को सरल स्वभाव से निस्तारित करने में माहिर थे। इनका कार्यकाल बेहतर माना जा रहा है। वही एक गुट छुपा रुस्तम की तरह इनके कार्यशैली पर उंगली उठाते रहे है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि जिला शिक्षा पदाधिकारी के पद पर बेगूसराय आ रही शर्मिला राय किस तरह से जिले में अपनी कार्यशैली का प्रदर्शन कर पाती है। यह किसी से छिपा नहीं है कि यहां जो भी जिला शिक्षा पदाधिकारी के पद पर आए हैं उन्हें  शिक्षक संगठनों का कोपभाजन बनना पड़ा है। अब देखना यह होगा कि यह विभिन्न संगठनों को कैसे नियंत्रित कर बेहतर कार्य कर पाती है।

फिलहाल शिक्षकों के बीच में यह चर्चा का विषय जरूर बना हुआ है कि यह कार्य गति को आगे बढ़ा पाती हैं या नहीं। फर्जी शिक्षकों के मामले में यह किस तरह से कार्य कर पाती हैं यह भी देखना दिलचस्प होगा। लेकिन इनके कार्यकुशलता की जाँच इंटर और मैट्रिक की परीक्षा से ही दिखने लगेगी। देखना यह भी दिलचस्प होगा कि अन्य जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यकाल की भांति इनका कार्यकाल भी संक्षिप्त ही रहेगा या फिर 2 वर्षों से अधिक जिला में कार्य कर पाती है या नहीं।