सम्पादकीय

जलवायुके दुष्प्रभावसे खेती सुरक्षा

प्रमोद        अर्थव्यवस्थाके अन्य क्षेत्र जब नकारात्मक विकास दर दिखा रहे हों, तब देशके किसानोंका योगदान किसी वरदानकी तरह है। देशके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाका योगदान लगभग ४५ फीसदी है। इसी वजहसे उन प्रवासी मजदूरोंको ग्रामोंमें रोजी-रोटी मिल पायी। हालांकि गैरकृषि कार्योंसे देशके ८० करोड़ लोगोंकी आजीविका चलती है, लेकिन इसमें बड़ा योगदान […]

सम्पादकीय

शाही मानसिकताके तले पिसता लोकतंत्र

श्यामसुन्दर मिश्र स्वतन्त्रता प्राप्तिके बाद अधिकांश नेता देशसेवा एवं देशभक्तिकी भावनासे लबरेज रहे। किन्तु कुछ चोटीके नेताओंने अपनी धमक एवं धनबलके चलते उन्हें अपने इरादोंमें कामयाब नहीं होने दिया। फलस्वरूप लोकतंत्र एक पार्टी एवं एक परिवारकी विरासत बनकर रह गया। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनके कार्यकालमें विकास कार्य नहीं हुए किन्तु वह […]

सम्पादकीय

शब्दोंका सौन्दर्य

श्रीश्री रविशंकर जब हम शब्दोंकी शुद्धताको अनुभव करते हैं तो हम जीवनकी गहराईको अनुभव करते हैं और जीवन जीना आरंभ कर देते हैं। हम सुबहसे राततक शब्दोंको ही जीते हैं। हम इनके पीछेके उद्देश्योंको खोजनेमें सारे उद्देश्य भूल जाते हैं। यह इतना गंभीर हो जाता है कि नींद ही खो बैठते हैं। रातभर उन शब्दोंके […]

सम्पादकीय

दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण

असम और मिजोरमके बीच सोमवारको सीमा विवादको लेकर नागरिकों और पुलिसके बीच हुई हिंसक झड़प अत्यंत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। दो पड़ोसी राज्योंके बीच हुई हिंसाकी घटनामें छह जवान शहीद हो गये और पुलिस अधीक्षक सहित ५० से अधिक लोग घायल हो गये। दोनों राज्योंकी पुलिस और नागरिकोंके बीच कछार जिलेमें लगभग ४० मिनटतक […]

सम्पादकीय

पेगासस जासूसीसे हंगामा

अवधेश कुमार      पेगासस जासूसीको लेकर तत्कालीन सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसादने अक्तूबर २०१९ में ही बाजाब्ता ट्विटरपर ह्वïाट्सएपसे इसके बारेमें जानकारी मांगी थी। यह अलग बात है कि उसके बाद आगे इसपर काम नहीं हुआ। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि इसरायली कम्पनी एनएसओके पेगासस नामके इस हथियारका दुनियाकी अनेक सरकारें उपयोग करती हैं। […]

सम्पादकीय

असाधारण उपलब्धि

आर.के. सिन्हा      शिल्पा शेट्टी अपने पति राज कुंद्राके बचावमें कह रही हैं कि उनके पति बेकसूर हैं और वह पोर्न नहीं इरोटिक फिल्में बनाते थे। क्या मतलब होता है इरोटिकका। क्या शिल्पा शेट्टीको पता है कि इरोटिकका अर्थ होता है कामुक या कामोत्तेजक। क्या भारत जैसे देशमें जहांपर अब भी समाज आधुनिकताके नामपर नग्नताको अस्वीकार […]

सम्पादकीय

जनसंख्या जनगणना नीतिके निहितार्थ

 राघवेन्द्र सिंह हमारे देशकी यह नीति इस आधारपर काम कर रही है कि वर्ष २०४५ तक देशमें बढ़ती आबादीपर लगाम लग सके, इस दिशामें ही हमारी सरकार कई कार्यक्रम तेजीसे चला रही है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है, जब आगे आनेवाले वर्षोंमें शिशु जन्मदरमें कमी आयेगी, उसके साथ युवा आबादी भी बुजुर्ग होती […]

सम्पादकीय

सार्थकता

ओशो महावीरने कहा है जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरोंके लिए भी चाहो और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वह दूसरोंके लिए भी मत चाहो। तुम एक महल बनाना चाहते हो तो तुम चाहोगे कि दूसरा कोई एेसा महल न बना ले। यदि सभीके पास वैसे ही महल हों तो फिर तुम्हें […]

सम्पादकीय

सीमापर मुस्तैदी

तू डार-डार, मैं पात-पात की तर्जपर भारत चीनकी किसी भी कुटिल चालका उसीकी भाषामें जवाब देनेके लिए सीमापर न सिर्फ पूरी तरह मुस्तैद है, बल्कि अपनी सैन्य ताकतको और मजबूत करनेके लिए रक्षा उपकरणोंको बढ़ानेकी दिशामें निरन्तर अग्रसर भी है। इसी कड़ीमें शीघ्र ही देशमें निर्मित पहले विशालकाय स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांतको चीनी […]

सम्पादकीय

संसदमें भी चाहिए सुशासन

डा. सुशील कुमार सिंह    लोकतंत्रकी धारासे जनताके हित पोषित होते हैं लेकिन जिस तरह संसदमें हो-हल्ला हो रहा है उसे देखते हुए लगता है कि हंगामेसे यह मानसून सत्र तर-बतर रहेगा। वैसे इस बातका पहले ही अंदाजा था कि संसदमें कई मुद्दोंपर संग्राम होंगे। परन्तु यह नहीं मालूम था कि शासन चलानेवाले ही अनुशासन और […]